Pension Funds Flood D-St
भारतीय मनुष्यों की खून पसीने की गाढ़ी कमाई से बजरिये पीएफ सालाना छह हजार करोड़ रुपये विदेशी निवेशकों के हवाले
मोसाद नियंत्रित आंतरिक सुरक्षा के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती अलकायदा प्रोजेक्टेड है है,जो दरअसल यह मुक्तबाजार है।
पलाश विश्वास
सूरते हाल गुरु गोलवलकर पर्व पर यह है कि भविष्यनिधि का सारा पैसा शेयर बाजार में झोंककर भारतीय मनुष्यों की खून पसीने की गाढ़ी कमाई से बजरिये पीएफ सालाना छह हजार करोड़ रुपये विदेशी निवेशकों के हवाले करने का इंतजाम हो गया है।
इसीके साथ भारतीय जीवन बीमा निगम के बाद भविष्यनिधि बोर्ड देसी पूंजी निवेशकों में दूसरे नंबर पर सीधे एंट्री मारने जा रहा है।अब भविष्यनिधि के भरोसे बूढ़ापा बीताने का इरादा छोड़ दें।
शिक्षक मोदी के देश में जाहिर है इसपर किसी को चूं करने की फुरसत नहीं है।हालांकि यह कोई नयी नीति नहीं है आकस्मिक।गौर से यूपीेए सरकारों के वित्तमंत्रियों प्रणव मुखर्जी और चिदंबरम के बजट भाषणों को दोबारा पढ़ लें।
ये वे कार्यक्रम हैं,जो नीतिगत विकलांगकता का शिकार हो गये।
अब ययाति ने पुत्रों का यौवन उधार लिया है तो भोग का सामान भी तैयार हो जाना है।
विशुद्ध सनातन संस्कृति का यह लिव टुगेदर बिना विवाह सुहागरात जैसा ही है।
मुंह पर स्वदेश स्वदेश,राम राम मंदिर मंदिर गीता गीता और अंदरखाने विकाससूत्र के साढ़े छप्पन आसनों का योगाभ्यास।बापुओं स्वामियों का महासमागम है।
डायरेक्ट टैक्स कोड और जीएसटी के साथ साथ,सर्वक्षेत्रे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, सेवाओं उपक्रमों सेक्टरों के विनियमन विनियंत्रण विनिवेश बेसरकारीकरण का कुल मिलाकर मकसद वहीं बीमा,भविष्यनिधि,पेंशन से लेकर बैंक खातों तक का अपहरण।
गोवा के चुनांचे कि हमारे राष्ट्रीय नेता अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मार्केटिंग हरकारे हैं और उनका लक्ष्य उनके आका हर रोज,हर सीजन बढ़ाते जा रहे हैं।
वे ठेके पर बंधुआ मजदूर हैं,जिनकी सेवा कभी भी खत्म की जा सकती है।दस दस साल के प्रधानमंत्रित्व के बाद भी।लक्ष्य पूरा करने का तकादा यही है।
वे हमारे हुक्मरान हैं तो कोई और उनका हुक्मरान।
नई पेंशन योजना जो बनी,उसीके साथ भविष्यनिधि को बाजार में जोड़ने का जुगाड़ लग गया था।नई पेंशन योजना के तहत मालिकान की ओर से जोड़े जाने वाली भविष्यनिधि की आधी रकम से ही तय होगी पेंशन,जो इतना कम है कि पंद्रह हजार तक न्यूनतम सीमा बांधकर पेंशनरों की सेहत बांधी जा रही है।
एक हजार रुपये में अब आप उस बाजार में क्या कुछ खरीदेंगे जहां एक किलो चावल,एक किलो आटा,एक किलो तेल,एक किलो टमाटर,एक किलो आलू,एक किलो सरसों तेल मोबाइल,स्मार्टफोन,टीवी बराबर होने को है।
जहां बिजली करंट मारे,जहां दवाें जहर हैं,जहां अस्पताल मरघट हैं,जहा शिक्षाकेंद्र दुकान हैं और वहां संघ की शाखा का राष्ट्रीय आयोजन है सर्वसमय,जहां खेतों पर माल मल्टीप्लेक्स हब स्वर्णिम चतुर्भुज सेज स्मार्ट सिटियां गलियारा, वगैरह वगैरह है।
और बच्चे बेरोजगार भटक रहे हों,जहां बेटी की शादी का खर्च दस लाख से कम का न हो,जहां दो गज जमीन की कीमत लाखों हो और घर भी नसीब न हो,जहां हवा पानी तक खरीदना हो और मुक्त बाजार में सुहाग रात भी मुफ्त होती नहीं है,तो बताइये हजार रुपल्ली में क्या क्या खरीदेंगे।
बताइये कि हजार रुपल्ली से राशन खरीदेंगे कि बिजली कि घर का स्पेस कि दामाद खरीदेंगे कि दवाएं।
बताइये हजार रुपल्ली से सांसें खरीदेंगे कि डाक्टर खरीदेंगे कि टीचर खरीदेंगे।
बताइये कि हजार रुपये से बीवी खरीदेंगे कि पति को बांधेंगे कि घर चलायेंगे कि तीर्थयात्रा चारोंधामों की करेंगेे कि बुलेट ट्रेन का सफर करेंगेे।स्मार्ट सिटी काशीवास करेंगे या फिर।
बताइये कि हजार रुपल्ली मासिक से जापानी तेल खरीदेंगे कि विकाससूत्र चाहिए कि सेक्सी डियोड्रेंट या ड्रोन खरीदेंगे या खरीदेंगे बिना सब्सिडी गैस,डीजल,चीनी उरवरक या हथियार क्योंक आपकी जान माल को भी हर वक्त खतरा हैऔर कानून का राज नहीं है।
बताइये कि हजार रुपल्ली से कैसे एफडीआई के मुकाबले,टाटा अंबानी बिड़ला मित्तल वालमार्ट फ्लिपकार्ट अमाजेन एक मुकाबले कितनी पूंजी लगाकर कितना बड़ा कारोबार फांदकर रामावली सह राममंदिर की कारसेवा करेंगे। हजार रुपल्ली से गिरवी पर रखा खेत छुडायेंगे या दस्तकारी करेंगे या करघा चलायेंगे या खरीदेंगे वोट। या लेंगे होटल।
वह हजार रुपल्ली भी फुर्र।
कोई ऐसा आंकड़ा किसी के पास है कि कितने फीसद लोगों की मासिक आमदनी इस देश में पंद्रह फीसद है।तो आगे के वेतनमान और आमदनी की औकात भी तौल लिया जाये।
अब बताइये पेंशन की हदबंदी करने से बल्ले बल्ले क्यों हैं लोग।लेकिन जब पूरी भविष्यनिधि ही जीवनबीमा दशा होनी है,तब पेंशन किस मां की कोख से आयेगी ,बूझ लीजिये जबकि मां की कोख भी मुक्त बाजार में किराये पर हैं।
मोसाद नियंत्रित आंतरिक सुरक्षा के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती अलकायदा प्रोजेक्टेड है है,जो दरअसल यह मुक्तबाजार है।
इस मुक्त बाजार के सामने आत्मसमर्पण के अलावा क्रयशक्ति बंचित बहिस्कृत किंकर्तव्य विमूढ़ घनघोर आस्थावान आम जनता के लिए करनो को आखिर क्या है,जबकि संगठित राजनीति,मजदूर आंदोलन और आर्थिक तौर पर सशक्त लोग भी आंखें बंद किये भागवत कथा सुनते नजर आ रहे हैं।
पिछले तेईस सालों की कथा व्यथा यही है।हम अमेरिका से सावधन करते करते अब जापान से सावधान का अलख जगा रहे हैं तो बीच में आस्ट्रेलिया,यूरोप और इजराइल के फच्चर अलग है।
परमाणु संधियां न जाने किस किस के साथ होनी हैं और न जाने कौन कौन हंगे युद्ध गृहयुद्ध परमाणु युद्ध या भोपाल गैस त्रासदी या गाजा पट्टियों के साझेदार और न जाने कब तक भारत की सरजमीं पर लड़ी जायेगी यरूशलम दखल की लड़ाई और न जाने कब तक हम झुलसते रहेंगे तेलकुओं की आग में।
विदेशी आकाओं के फड़फड़ाने पर न जाने कितने लोग कब तक बनाये जाकते रहेंगे आतंकवादी और उग्रवादी और न जाने कहां कहां होती रहेगी फर्जी मुठभेड़, देशव्यापी सिखों का संहार न जाने कब कैसे दोहराया जायेगा और न जाने कहां फिर होगी भोपाल गैस त्रासदी,किस रुप में न जाने कहां होगा फिर बाबरी विध्वंस और न जाने कहां कहां होंगे फिर गुजरात के नरसंहार।
ग्लोबीकरण इसीको कहते हैं बंधु।
इससे निपटने के लिए अभिजनों की भाषा की ऐसी की तैसी।
इस ग्लोबीकरण से निपटने के लिए ऐसी की तैसी।
ग्लोबीकरण इसीको कहते हैं बंधु।
इस मुक्त बाजार में निरंकुश लंपटपूंजी और निरंकुश क्रयशक्ति की ऐसी की तैसी।
साहित्य संस्कृति के तमाम बाजारु माध्यमों की ऐसी की तैसी।
ग्लोबीकरण इसीको कहते हैं बंधु।
परिभाषाओं, प्रतिमानों,पैमानों और आंकडों की ऐसी की तैसी।
विचारधाराओं,आंदोलनों,प्रतिबद्धताओं के फरेब की ऐसी की तैसी।
ग्लोबीकरण इसीको कहते हैं बंधु।
खंड खंड अस्मिताओं की ऐसी की तैसी।
प्रतिष्ठा मान्यता समारोहो और उत्सवों की ऐसी की तैसी।
जिगरा में दम हो अगर तो बातें ऐसी करें वरना जैसे लोग बहती गंगा में हाथ धोते हुए गंगा की सफाई का कुंभ महाकुंभ करते रहते हैं,वही भगदड़ आपको मुबारक।मुबारक आपको वही जल प्रलय,सुनामी भूकंप,भूस्खलन,बाढ़,परमाणु विकिरण और सूखा।
इसी बीच राष्ट्रद्रोह की नयी परिभाषा भी तैयार है।निवेश के लिए माहौल बिगाड़ना। विनिवेश के लिए माहौल बिगड़ना,विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का माहौल बिगाड़ना,विनियंत्रण विनियमन,साँढ़ संस्कृति के लिए माहौल बिगाड़ना,कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज का माहौल बिगाड़ना,निजीकरण का माहौल बिगाड़ना भी जाहिर अपराध है।
मसलन हाथेगरम उदाहरण, नई दिल्ली में आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के भारत दौरे के खिलाफ चाणक्यपुरी स्थित दूतावास के सामने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं को गुजरी 4 सितम्बर 2014 को पुलिस ने हिरासत में ले लिया और नजदीकी थाने में बिठाए रखा. बातचीत के दौरान चाणक्यपुरी पुलिस थाने के एस पी ने आरोप लगाया कि ऐसे प्रदर्शन देश में निवेश का माहौल बिगाड़ रहे हैं।
जो निवेश का माहौल बना रहे हैं या दूसरे अर्थों में जो नियम कानून ताक पर रखकर राष्ट्रीय संसाधनों के विदेशी निवेशकों के हवाले करते हैं,जाहिर है आज के राष्ट्रभक्त वे ही हैं।राष्ट्रीय नेता भी वही जो स्वयंसेवक बहुराष्ट्रीय।खलिस स्वयंसेवक भी खारिज।
वैसे ही मनुष्य अब फैक्ट्री में गढ़ लिये जायेंगे या फिर क्लोन कर लिये जायेंगे आईटी आधारात डिजिटल देश का मकसद भी वही है और बायोमैट्रिक नागरिकता का मकसद भी वही।राष्ट्रीय क्लास रूम कामकसद भी वही।
अब कोई कैसे हिम्मत करके कह दें कि आंतरिक सुरक्षा के लिए जो सबसे भयानक चुनौती यह मुक्त बाजार है,जैसे वह कानून व्यवस्था और अमन चैन को तहस नहस करनेवाला साबित हो चुका है।
भाषा,संस्कृति,अस्मिता और धर्मन्मादी देश के हिंदुत्व राजकाजमध्ये मुक्त धर्म को भी विकृत करने में भारी कामयाबी हासिल की है मुक्त बाजार ने।
नागरिकों की आस्था का ऐसा सेक्सी कारोबार का चलन कभी रहा ही नहीं है।ऐसा गुरु गोलवलकर पर्व मनानाे का अवसर भी कभी बना नहीं है,जब धर्म नाश के लिए धर्मोन्माद का इतना व्यापक और गहरा और बारीक बहुआयामी वैज्ञानिक प्रयोग हो रहा है।
मस्तिष्क के नियंत्रण का यह पद्म प्रलय है,जब दिलों में तेजाब भर दिया जाये और दिमाग को सुन्न कर दिया जाये।ताकि भावनाओं के उन्माद में विवेक और मनुष्यता की कोई भूमिका ही नहीं रहे।
यह दिलों का कारोबार है।यह आंखों का जश्न भी है।यह हुश्न की बेनकाब बहार है।बर्बादी का आलम भी लेकिन यह है तो कयामत का आलम भी यही।बस,हमारा दिमाग काम नहीं कर रहा है।
कर्मचारियों को न विनिवेश की चिंता है,न विनियमन,न विनियंत्रण,न छंटनी,न लाकआउट,न मुद्रास्फीति और न मंहगाई की कोई परवाह है।
वह तो विकाससूत्र धारीदार और सुंगधित में धंस गया है।छठा वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हो चुकी हैं और अब सातवें आयोग का बेसब्र इंतजार है।
पीएफ का जो हो सो हो,उसकी जेबें मुक्तबाजारी सरकार ने हमेशा गर्म रखने का ख्याल रखा है।
मारे जायेंगे संगठित असंगठित क्षेत्र के ठेका मजदूर,कामगार और कर्मचारी,जिनके लिए अब श्रम कानून भी खत्म है।
इकानामिक टाइम्स की लीड खबर पर जरा गौर करने की फुरसत निकाले तो बड़ा अहसान होगा।
Sep 05 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Modi Sarkar may Let Pension Funds Flood D-St
Vikas Dhoot
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New Delhi
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Proposed change in norms may funnel Rs 6,000 cr annually into stocks, making PF body second-biggest domestic investor `
The Narendra Modi government may shatter a longstanding bar on the state-run pension fund putting money into equities, sending a flood of money — estimated at .
`6,000 crore per year at least — into the stock markets, potentially making this the biggest source of domestic institutional investment after LIC.
Such a move, which comes as attractive returns from the Indian stock markets have drawn the world’s biggest pension funds, could ease some of the concentration of risk that stems from overseas investors dominating the market, experts said.
India’s largest retirement fund, the .
`6.5-lakh-crore Employees’ Provident Fund Organisation (EP FO), has finally opened its mind about entering the stock market, after nearly a decade of vehement resistance to a finance ministry pitch to park a part of its kitty in equities. To start with, it is looking at deploying 5% of its corpus in stocks, index funds and exchangetraded funds, based on the recommendation of a high-level committee set up by EPFO that ET has reviewed.
To make this possible, EPFO has said the obsolete Indian Trusts Act, 1882, needs to be amended to allow trusts to invest in securities that are not backed by the government. The previous UPA government had introduced a Bill to carry out these changes in 2009, but it let the legislation lapse though a parliamentary panel led by BJP's Mur li Manohar Joshi had given its approval. Annual inflows into the EPFO kitty amount to about Rs 60,000 crore but are expected to go up expected to go up sharply thanks to an increase in the salary ceiling for statutory provident fund (PF) contributions from Rs 6,500 per month to Rs 15,000 per month, effective from September 1. The change of stance on equities within EPFO, the country's second-largest non-banking financial institution after Life Insur ance Corporation, is being driven by two imperatives — the need to generate better returns for members and an inability to find suitable investment options that can be compounded by the higher accretions to its corpus expected in the coming months.
पूरी खबर नीचे नत्थी है।कर्मचारी वैसे ही अंग्रेजीदां है,हिंदा में उसका तर्जुमा करने की तकलीफ नहीं उठा रहा हूं।वैसे ही समझने वाले समझ जाते हैं और कर्मचारी से ज्यादा चतुर सुजान कोई होता नहीं है।
देहात में कहावत है कि या तो नौकरी करो सरकारी या फिर बेचो तरकारी।सरकारी नौकरों का विवाह बाजार में भाव पद और वेतन के मुतबिक इतना तेज है कि बेचारे कन्या अभिभावक जिंदगी भर कमाकर भी उनकी मांगें पूरी कर नहीं सकता तो भी विवाह सरकारी नौकर के साथ ही बेटी बहन का करायेंगे।दुल्हन दूल्हे से दस बीस साल छोटी पड़ जाये.तो भी परवाह नहीं।
कर्म संस्कृति के बारे में तो निजी कंपनियों की दलील ही काफी है कि क्यों बेसरकारी करण और विनिवेश जरुरी है।
इस पर जनता की सेवा ऐसी कि आम जनता को उनसे कोई सहानुभूति नहीं कि वे मरे या जिये बल्कि अपनी मुक्त बाजार में अपनी दुर्गति के लिए वे सरकार को नहीं ,बस्कि सरकारी मुलाजिमों को ही जिम्मेदार मानते हैं।
इसीलिए भ्रष्टाचार विरोधी आरक्षण विरोधी और मुक्त बाजार के समर्थक तमाम आंदोलनों में जनसैलाब इतना।
इसीके मध्य लेकिन प्रधान स्वयंसेवक का भावी पीढ़ियों को संबोधन का स्मरणीय संजोग है और अमेरिकी विश्लेषण भी कि अमेरिका के जाने माने आतंकवाद निरोधी विशेषज्ञ ने आज कहा कि अलकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस्लाम के दुश्मन के तौर पर चित्रित करना चाहता है और भारत को उसकी धमकी को बहुत संजीदगी से लेना चाहिए। बहरहाल, अमेरिका आतंकी संगठन की क्षमताओं को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की कोशिश की। अमेरिका के शीर्ष आतंकवाद निरोधी विशेषज्ञ समक्षे जाने वाले सीआईए के पूर्व विशेषज्ञ ब्रूस रिडेल ने कहा कि इस साल (अल कायदा नेता ऐमन अल) जवाहिरी का यह पहला वीडियो है और इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। अल कायदा प्रधानमंत्री मोदी को इस्लाम के दुश्मन के तौर पर चित्रित करना चाहता है।
Sep 05 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Modi Sarkar may Let Pension Funds Flood D-St
Vikas Dhoot
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New Delhi
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Proposed change in norms may funnel Rs 6,000 cr annually into stocks, making PF body second-biggest domestic investor `
The Narendra Modi government may shatter a longstanding bar on the state-run pension fund putting money into equities, sending a flood of money — estimated at .
`6,000 crore per year at least — into the stock markets, potentially making this the biggest source of domestic institutional investment after LIC.
Such a move, which comes as attractive returns from the Indian stock markets have drawn the world’s biggest pension funds, could ease some of the concentration of risk that stems from overseas investors dominating the market, experts said.
India’s largest retirement fund, the .
`6.5-lakh-crore Employees’ Provident Fund Organisation (EP FO), has finally opened its mind about entering the stock market, after nearly a decade of vehement resistance to a finance ministry pitch to park a part of its kitty in equities. To start with, it is looking at deploying 5% of its corpus in stocks, index funds and exchangetraded funds, based on the recommendation of a high-level committee set up by EPFO that ET has reviewed.
To make this possible, EPFO has said the obsolete Indian Trusts Act, 1882, needs to be amended to allow trusts to invest in securities that are not backed by the government. The previous UPA government had introduced a Bill to carry out these changes in 2009, but it let the legislation lapse though a parliamentary panel led by BJP's Mur li Manohar Joshi had given its approval. Annual inflows into the EPFO kitty amount to about Rs 60,000 crore but are expected to go up expected to go up sharply thanks to an increase in the salary ceiling for statutory provident fund (PF) contributions from Rs 6,500 per month to Rs 15,000 per month, effective from September 1. The change of stance on equities within EPFO, the country's second-largest non-banking financial institution after Life Insur ance Corporation, is being driven by two imperatives — the need to generate better returns for members and an inability to find suitable investment options that can be compounded by the higher accretions to its corpus expected in the coming months.
In internal presentations to board members, top PF officials have said the annual EPF rate has been lower than consumer price inflation in four of the past five years, so there is a need to boost returns by considering equity, infrastructure and real estate investments that pension funds around the world use to prevent the erosion of savings through this avenue.
Over 85% of EPFO’s money is currently held in government bonds while the rest is parked in debentures or securities issued by banks and public sector enterprises.
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