राजन,बैंकिंग का टाइटेनिक बैंड बजाने लगे
RBI in Privatization mode,COO Coup to hire private sector People to trim up all its 27 departments as Govt to review senior public sector bank appointments
निजीकरण वास्ते बदलेगा आरबीआई कानून भी
पलाश विश्वास
Reserve Bank of India Act, 1934
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... TENDERS · FORMS, EVENTS, APPLICATION TRACKING SYSTEM · RBI CLARIFICATION ... Jun 13, 2014. The Reserve Bank of India Act, 1934, 689 kb ...
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RESERVE BANK OF INDIA ACT, 1934
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The Reserve Bank of India (Amendment and Miscellaneous provisions) Act, 1953. (54 of 1953). 21. The Andhra (Adaptation of Laws on Union Subjects) Order, ...
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Reserve Bank of India Act, 1934.pdf
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The Reserve Bank of India (Amendment and Miscellaneous provisions) Act, 1953. (54 of 1953). 21. The Andhra (Adaptation of Laws on Union Subjects) Order, .
आरबीआई एक स्वायत्त इकाई है।रिजर्व बैंक की स्वयत्तता अब खतरे में है। जैसे सर्वदलीय सहमति से कालेजियम बनाकर भारतीय न्याय प्रणाली में नियुक्तियां अब केंद्र सरकार ही करने वाली है,ठीक उसी तरह केंद्रीय बैंक के कर्मचारियों की सेवा शर्तों, उनकी तनख्वाह, पदोन्नति और प्रोत्साहन संबंधी मामलों में अब मुमकिन है कि आखिरी फैसला सरकार ही ले। फिलहाल इन सभी मामलों पर भारतीय रिजर्व बैंक फैसला लेता है।
इसके लिए आरबीआई कानून बदलने की तैयारी है। दूसरी ओर,आईबीईए ने बैंकिंग रिफार्म, बैंकों के मर्जर तथा रिकवरी मैनेजमेंट बॉडी के विरोध की रणनीति तैयार कर ली है। एआईबीईए ने इसके लिए 26 अगस्त से लेकर 15 अक्टूबर तक विरोध के चार दिन तय किए हैं। इन दिनों को एआईबीईए विरोध दिवस के रूप में मनाएगी। बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि अगर तय किए गए इन चार दिनों में विरोध नहीं किया जा सका तो नवंबर या दिसंबर में बैंक कर्मियों द्वारा हड़ताल की जाएगी।
बैंकिंग सेक्टर के लोग जाहिर है कि वित्तीय मामलों के सबसे ज्यादा जानकार हैं और इस सेक्टर में सारे के सारे पढ़े लिखे भी हैं जिन्हें अर्थव्यवतस्था की बेहतर जानकीरी और समझ बाकी नागरिकों के मुकाबले पेशागत विशेषाधिकार के तहत हासिल है।
विडंबना है कि बैंकिंग सेक्टर के प्रबंधन में प्राइवेट सेक्टर के आक्रामक वर्चस्व के बारे में इस सेक्टर के लोगों की कोई धारणा अभी बनी ही नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बतौर सारे सरकारी बैंकों के प्रबंधन में निजी कंपनियों से हायर किए निदेशक तैनात हो गये हैं,जो बैंकिंग में सार्वजनिक उपक्रमों का बैंड बाजा बजा रहे हैं।26 प्रतिशत तक सरकारी हिस्सा सीमाबद्ध करने से बहुत पहले बाजार में हिस्सेदारी नीलाम होने से पहले सरकारी बैंकों के निदेशक मंडल में निजी सेक्टर का वर्चस्व कायम हो गया है।
सरकारी बैकों का सारा खून हलाल हते होते बह निकला है और अब बाकी बचा मीट पकाने की तैयारी हो रही है।
बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट बदल दिये जाने से गैरसरकारी शेयरहोल्डरों का दस प्रतिशत तक सीमाबद्ध वोटिंग राइट एक झटके से अनंत हो गया।बैंकिंग सेक्टर के कर्माचारियों और उनके भारी भरकम पावरहाउस सरीखे श्रमिक संगठनों को अंदाजा ही नहीं लगा कि क्या से क्या हो गया।
अब जबकि आरबीआई कानून बदलने की तैयारी है तो बैंकिंग ट्रेड यूनियनों के नेता और आम कर्मचारी कानों में तेल डाले घोड़ा बेचकर सो रहे हैं।
सरकार बदलने के बावजूद नौकरी राजन की कैसे बची रह गयी,अब लेकिन यह पहेली बूझने का समय आ गया है।वे डूबते टाइटेनिक जहाज के बैंड मास्टर बन गये हैं,डूबते हुए बैंड बाजा बजना उनका कार्यभार है।
इसीके तहत राजन ने रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेशक बतौर आईसीआईसीआई के पूर्व मुखिया मोर को कार्यकारी निदेशक बनाकर रिजर्व बैकों के सभी सत्ताइस विभागों की ट्रिमिंग का प्रस्ताव दिया है।इस ट्रिमिंग से मतलब यह है कि सरकारी बैंकों में काम कर रहे अफसरान और कर्मचारियों को हाशिये पर डालकर प्राइवेट सेक्टर के सारे मुलाजिम हायर करके नीकतिगत और कार्यकारी सारे दैनांदिन कामकाज उनके हवाले कर दिया जाये।
ताजा स्टेटस यह है कि केसरिया नमो सरकार को राजन की यह पिछवाड़ा पद्धति समझ में नहीं आयी और वे तो अगवाड़े से मारना चाहते हैं।इसलिए तदर्थ नियुक्तियों के बदले स्ताई बंदोबस्त मुकम्मल करने वास्ते उनकी सरकार ने इस एजंडा को हासिल करने के लिए आरबीआई कानून को ही बदल डालने का फैसला कर लिया है।
बैंकिंग ट्रोड यूनियने जोर शोर से नायक कमिटी की सिफारिशों के खिलाफ लामबंद है और उनकी पूर्ण आस्था राजनैतिक नेतृत्व और संसदीय प्रणाली में है।जबकि हकीकत में मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में न राजनेताओं की कोई भूमिका है और न संसद की। राजनेता और उन्हींसे नियंत्रित संसद,दोनों को शिद्दी से काटकर बाकायदा संविधान संसोधन तक हो रहे हैं,जिसके लिए दो तिहाई बहुमत दोनों सदनों में होना जरुरी है।जो इस पद्मप्रलय मध्ये भी भारतीय संसद में सत्तादल को है ही नहीं।नवउदार जमाने में तो इससे पहले की सारी सरकारे ही अल्पमत की रही हैं और इसके बावजूद अबाध पूंजी निवेश की तरह आर्थिक नीतियों की नरंतरता जारी है।
ट्रेड यूनियन नेता कर्मचारियों के वेतन और सेवाशर्तों के बारे में सिलसिलेवार भाषण पेल रहे हैं और उन्हें गायब होते जा रहे कर्मचारियों की कोई परवाह नहीं है।जिन्हें वे संबोधित करते हैं,उनकी नौकरी बचेगी या नहीं,इसकी भी उन्हें चिंता नहीं है। जिस मैनेजमेंट के खिलाफ उनकी अविराम युद्धघोषणा है,वह अब सरकारी है ही नहीं और लोककल्याणकारी अवधारणा से उनका कोई ताल्लुक नहीं है।उस मैनेजमेंट में तमाम लोग निजी सेक्टर के भाड़े के पेशेवर टट्टू या खच्चर हैं तो इन ट्रेड यूनियन नोताओं की कौन सी प्रजाति है,आप ही तय कर लें।
ट्रेड यूनियन नेता रिजर्वेशन,प्लेसमेंट,प्रमोशन और वेज बोर्ड के गाजर लंगर के मालिकान हैं,उनकी झोली में बस उतना ही है।सदर दरवाजे की रखवाली करने वाले लोग हैं वे,लेकिन खिड़की के रास्ते या चोर दरवाजे से या चहारदीवारी तोड़कर जो डाका पड़ रहा है,उस तरफ उनका ध्यान लेकिन नहीं है।
नायक समिति की सिपारिशें लागू हो रही हैं और चरण बद्ध तरीके से इस एजंडा को ्ंजाम दिया जा रहा है।
पहले बैंकिंग एक्ट और अब आरबीआई एक्ट।
बैड लोन के लिए गाज सरकारी बैकों पर गिरायी जा रही है और अभी अभी भूषण स्टील के 40 हजार करोड़ का खूंटा एसबीआी मध्ये लगा दिया गया है।जबकि इस समय किंगफिशर एयरलाइंस, डेक्कन क्रॉनिकल, सुजलॉन, यूनिटेक, स्टर्लिंग बायोटेक, इलेक्ट्रोथर्म इंडिया, विनसम डायमंड एंड ज्वेलरी देश के बड़े डिफॉल्टर हैं और इन पर भारी कर्ज है। किंगफिशर एयरलाइंस पर 9143.51 करोड़ रुपये का कर्ज है, डेक्कन क्रॉनिकल पर 3769.75 करोड़ रुपये, सुजलॉन पर 15244.91 करोड़ रुपये, यूनिटेक पर 5217.58 करोड़ रुपये, स्टर्लिंग बायोटेक पर 2640.3 करोड़ रुपये और इलेक्ट्रोथर्म इंडिया पर 3233.38 करोड़ रुपये का कर्ज है।
सरकार हर साल कारपोरेटघरानों को पांच छह लाख करोड़ टैक्स छूट देने के अलावा उनका बैंकों का कर्ज भी राइट आफ करती है।
अभी अभी पूंजीपतियों को तीन लाख करोड़ का बैंक लोन राइट आफ हुआ है और इस बैड लोन का ठीकरा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों,उनके अफसरों और कर्मचारियों के मत्थे फोड़ दिया गया है और सारी ट्रेड यूनियनें खामोश हैं।
और सरकारी दावा,डिफॉल्ट करने वालों पर नकेल कसने के लिए मार्केट रेगुलेटर सेबी और बैंकिंग रेगुलेटर आरबीआई एक साथ आ गए हैं। सेबी और आरबीआई मिलकर ऐसे नियम बनाने जा रहे हैं जिसके बाद डिफॉल्टर कंपनियों को कहीं से भी पैसे जुटाना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। यही नहीं प्रोमोटरों को कंपनी में डायरेक्टर की कुर्सी से हाथ भी धोना पड़ेगा। दरअसल सरकारी बैंकों में एनपीए के बढ़ते स्तर से परेशान होकर रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को ये फैसला लेना पड़ा।
गौरतलब है कि कि 40 सूचीबद्ध भारतीय बैंकों का 2.4 लाख करोड़ रुपयों की आज तक वसूली नहीं पाई है। यह रकम कितनी बड़ी है इसका अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि यह हमारे देश के सकल घरेलू उत्पादन के 2 फीसद के बराबर का है। बैंको में जमा ज्यादतर रकम मध्यम वर्ग तथा उच्च मध्यम वर्ग के द्वारा जमा कराया जाता है. बड़े व्यापरी तो केवल अपने उद्योगों के लिये कर्ज लेते हैं।
जाहिर है कि छोटे जमाकर्ताओं के रकम को बड़े कारपोरेट घराने दबाये बैठे हैं, भारतीय बैंकिंग कानून की आड़ में। अन्यथा उनके नाम सार्वजनिक किये जा सकते थे। जब संसद को इस बात की जानकारी नहीं दी सक रही है कि तो इस रकम के वसूली के लिये कड़े कदम कैसे उठाये जा सकेंगे।
खुदा राजन की मार से बचाये।इस पर तुर्रा यह कि रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने 'क्रोनी कैपिटलिज्म' (सांठ-गांठ वाले पूंजीवाद) की व्यवस्था का भर्त्सना करते हुए कहा है कि इससे पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा नष्ट होती है तथा यह मुक्त उद्यमशीलता, अवसरों के विस्तार और आर्थिक वृद्धि के लिए नुकसानदेह है।
इस पर जरुर गौर करें भारतीय बैंक भी स्विस बैंकों के समान गोपनीयता का पालन करते हैं। इस कारण से भारत में वर्षों से ऋण की अदायगी न करने वाले कारपोरेट घरानों पर बकाया ऋणों के संबंध में कोई विशिष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। कम से कम कारपोरेट मामलों की राज्य मंत्री निर्मला सीतारमन की मंगलवार को राज्यसभा में दी गई लिखित जानकारी से ऐसा ही जान पड़ता है।
गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 ई एवं बैंकिंग कानूनों में यह प्रावधान है कि बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं अपने ग्राहकों के बारे में गोपनीयता बनाये रखने के लिए बाध्य हैं। ठीक इसी तरह से स्विस बैंक अपने यहां जमा काले धन की जानकारी नहीं दे सकते हैं। यह वहां का स्थानीय कानून है। अब भारतीय बैंकिग कानून के कारण उन कारपोरेट घरानों का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है जिन्होंने बैंकों का पैसा दबाया हुआ है।
सदन में जानकारी दी गई है कि “वित्तीय क्षेत्र की स्थिति में सुधार, एनपीए में कमी करना, बैंकों की परिसम्पत्ति गुणवत्ता में सुधार तथा एनपीए की स्लीपेज की रोकथाम के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्देश जारी किये हैं, जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक बैंक उनके मंडल द्वारा अनुमोदित ऋण वसूली की नीति लायेगा. नये ऋणों की मंजूरी, तदर्थ ऋणों, नये ऋणों अथवा वर्तमान ऋणों के नवीनीकरण के बारे में सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक सुदृढ़ प्रणाली लाई जायेगी, जिससे सभी समर्थ खातों के मामले में सरफेसी अधिनियम, 2002, ऋण वसूली प्राधिकरणों और लोक अदालतों जैसे कानूनी उपायों का सहारा लेते हुए तत्पर पुर्न-संरचना सहित ऋणों के खराब होने के लक्षणों का शीघ्र पता लगाया जा सके.”
बहराहाल पिछले दिनों कोलकाता में 3 व 4 अगस्त को एआईबीईए की बैठक हुई थी। बैठक में बैंकों के लिए बनाई जा रही इस प्रकार के नियमों का विरोध किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि एआईबीईए की जनरल काउंसिल की बैठक हुई।
बैठक में प्रमुख रूप से बैंकों के लिए बनाए जा रहे बैंकिंग रिफार्म, बैंकों के मर्जर किए जाने, रिकवरी करने रिकवरी मैनेजमेंट बनाने, नयाक कमेटी की सिफारिशों का विरोध तथा जल्द से जल्द वेतन समझौते को लागू किए जाने पर चर्चा हुई। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 26 अगस्त को ऑल इंडिया एंटी मर्जर डे मनाया जाएगा। इसके बाद 15 सितंबर को ऑल इंडिया अगेंस्ट बैंक ऑफ मर्जर मनाया जाएगा।
इसके बाद 25 सितंबर को ऑल इंडिया अगेंस्ट सेल ऑफ डेड लोन मनाया जाएगा। इसके साथ ही 15 अक्टूबर को रिकवरी मैनेजमेंट बॉडी के विरोध में दिवस मनाया जाएगा। उन्होंने बताया कि विरोध में बैंक कर्मचारी उस दिन बैच लगाकर या पोस्टर लगाकर , डिमान्सट्रेशन कर या रैली निकालकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। अगर किसी कारण से इन दिवसों पर विरोध नहीं हो पाया तो बैंक कर्मचारियों द्वारा नवंबर व दिसंबर में हड़ताल की जाएगी।
राजन ने मुंबई में प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी ललित दोषी की स्मृति व्याख्यानमाला में इस वर्ष का व्याख्यान देते हुए कहा, 'क्रोनी कैपिटलिज्म पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को खत्म करता है और इस मायने में यह मुक्त उद्यम, अवसर और आर्थिक वृद्धि के लिए नुकसानदेह है।'
अध्यापन की दुनिया से आकर रिजर्व बैंक के प्रमुख का पद संभाल रहे राजन ने कहा कि हाल के चुनाव में सांठ-गांठ वाला पूंजीवाद एक बड़ा मुद्दा था जिसमें आरोप था कि बिकाऊ नेताओं को चढ़ावा चढ़ाकर लोगों ने जमीन, प्राकृतिक संसाधन और स्पेक्ट्रम हासिल किए थे।
उन्होंने कहा कि क्रोनी कैपिटलिज्म से भारत जैसे विकासशील देशों में व्यवस्था पर कुछ लोगों के हावी होने का खतरा हो जाता है और पूरी अर्थव्यवस्था एक औसत आय की जाल में फंस जाती है।
राजन ने कहा कि लोग क्रोनी कैपिटलित्म को इसलिए सहन करते हैं और इस व्यवस्था को बनाये रखने वाले बिकाउ नेता को चुनते हैं क्योंकि वही नेता गरीबों और वंचितों की बैसाखी की भी भूमिका निभाता है जबकि उस व्यवस्था में गरीबों को कुछ खास हासिल नहीं होता है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि बढ़ी हुई ब्याज दरों की व्यवस्था अल्पकाल में दुखदायी हो सकती है, लेकिन दीर्घकाल में महंगाई रोकने में यह मददगार साबित होगी।
एक कार्यक्रम में राजन ने कहा, यह (ऊंची ब्याज दरें) अल्पकाल में पीड़ादायक हो सकती है, लेकिन दीर्घकाल में मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में इससे मदद मिलती है। उन्होंने कहा, लेकिन मैंने इसे (दरों को) वोल्कर (पूर्व अमेरिकी फेडरल रिजर्व चेयरमैन) जैसे स्तर तक नहीं बढ़ाया। लोग कहते रहते हैं कि आप भारतीय वोल्कर बनने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि मैं किसी भ्रम में नहीं रहता।
दूसरी ओर,बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक केंद्रीय बैंक के कर्मचारियों की सेवा शर्तों, उनकी तनख्वाह, पदोन्नति और प्रोत्साहन संबंधी मामलों में अब मुमकिन है कि आखिरी फैसला सरकार ही ले। फिलहाल इन सभी मामलों पर भारतीय रिजर्व बैंक फैसला लेता है।
सरकार लंबे समय से आरबीआई पर दबाव डालती आई है कि वह कर्मचारी नियम संविदा को आरबीआई कानून 1934 की धारा 58 के तहत शामिल करे और इसे संसद के अधिकार क्षेत्र में लाए। सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय बैंक अब इस मांग को पूरा कर सकती है और उम्मीद की जा रही है कि 9 दिसंबर को कोलकाता में बोर्ड की बैठक के दौरान इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जाए।
पिछले 3 साल से सरकार केंद्रीय बैंक पर दबाव डाल रही थी कि वह कर्मचारियों से संबंधित सभी मसलों पर चर्चा करे। हालांकि आरबीआई अब तक इसे टालता रहा है। मगर बीते दिनों सरकार ने आरबीआई से कहा कि वह केंद्रीय बैंक के कर्मचारियों की वेतन वृद्घि से पहले उससे मंजूरी ले। हालांकि केंद्रीय बैंक अब तक ऐसा नहीं करता रहा है। बाद में दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुंचे जिसके तहत केंद्रीय बैंक को वेतन वृद्घि लागू करने से पहले वित्त मंत्रालय को इस बारे में सूचित करना था। हालांकि केंद्रीय बैंक ने इस बात पर जोर दिया कि वह इस सिलसिले में सरकार से अंतिम मंजूरी नहीं लेगा।
अखिल भारतीय रिजर्व बैंक संगठन के महासचिव समीर घोष ने कहा, 'आरबीआई एक स्वतंत्र इकाई है। अगर कर्मचारी नियमन संविदा बनाने की सरकार की मांग मान ली जाती है तो केंद्रीय बैंक के कर्मचारियों से जुड़े सभी फैसले जैसे सेवा शर्तें और लाभ, जिन पर अभी आरबीआई फैसला लेती है, उनके लिए सरकार की मंजूरी जरूरी हो जाएगी।Ó घोष ने आरबीआई के गवर्नर डी सुब्बाराव और केंद्रीय बोर्ड के सदस्यों को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि कर्मचारियों के मामलों से जुड़ी स्वतंत्रता न खोई जाए। घोष ने बोर्ड के एक सदस्य को पत्र में लिखा है, 'केंद्रीय बैंक की इच्छा है कि जल्द से जल्द बोर्ड की बैठक में इसे मंजूरी मिल जाए। इससे आरबीआई के स्वायत्त इकाई के तौर पर काम करने की भूमिका धूमिल होगी।Ó इस साल कम से कम दो मौकों पर यह देखने को मिला है कि सरकार के किसी कदम से सुब्बाराव को यह बताना पड़ा है कि आरबीआई एक स्वायत्त इकाई है।
बैंकों से कर्ज लेकर नहीं चुकाने वाले कॉरपोरेट्स की अब खैर नहीं होगी। जानबूझकर । ये कदम कैसा है, क्या इससे डिफॉल्टरों पर लगाम लग पाएगी और क्या बैंकों और इकोनॉमी की मजबूती के लिए ये कदम शानदार साबित होगा, इसी पर सीएनबीसी आवाज़ की खास पेशकश।
डिफॉल्टरों की खैर नहीं है क्योंकि सेबी और आरबीआई मिलकर विलफुल डिफॉल्टर रेगुलेशन बनाएंगे। इसके तहत जानबूझकर डिफॉल्ट करने वालों को कर्ज नहीं मिल पाएगा और जानबूझकर डिफॉल्ट करने वालों की डायरेक्टर पद से छुट्टी होगी। ये दोनों ही रेगुलेटर मौजूदा कानूनी प्रावधानों की समीक्षा कर रहे हैं।
आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन डिफॉल्टरों पर कड़ाई के पक्ष में हैं और आरबीआई डिफॉल्टरों की लिस्ट तुरंत सेबी से साझा कर सकता है। नॉन-कोऑपरेटिव डिफॉल्टर की परिभाषा पर भी चर्चा हो रही है।
इस कदम के पीछे बैंकों के बढ़ते एनपीए की चिंता भी है। देश में बैंकों का एनपीए फिलहाल 2 लाख करोड़ रुपये के करीब है। मार्च 2014 तक पूरे बैंकिंग सिस्टम का एनपीए करीब 4.4 फीसदी हो गया था। टॉप 50 डिफॉल्टरों का एनपीए 40,500 करोड़ रुपये के करीब है। एनपीए से वित्तीय घाटे के मोर्चे पर सरकार की चिंताएं बढ़ती हैं।
आरबीआई और सेबी डिफॉल्ट पर सख्ती क्यों करना चाह रहे हैं इसके पीछे 4-5 कारण हैं। पीएसयू बैंकों की खराब सेहत, प्रोमोटरों का लगातार अमीर होना और कंपनियों का बदहाल होना, बैंकों में बढ़ते घूसखोरी के मामले, लोन रिकवरी की जटिल प्रक्रिया और अच्छे प्रोजेक्ट को कम कर्ज मिलना जैसे कारणों के चलते इन कड़े कदमों को उठाना पड़ सकता है।
BANKING AND INSURANCE
List of CMDs/EDs/Government Directors of PSBs
List Of Public Sector Banks, RRBs, Private Sector Banks And Foreign Banks
List of Insurance Companies
भारत में बैंकिंग
http://hi.wikipedia.org/s/xxn
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
भारत की बैंकिंग-संरचना
भारत के आधुनिक बैंकिंग की शुरुआत ब्रिटिश राज में में हुई। १९वीं शताब्दी के आरंभ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ३ बैंकों की शुरुआत की - बैंक आफ बंगाल १८०९ में,बैंक ओफ़ बॉम्बे १८४० में और बैंक ओफ़ मद्रास १८४३ में। लेकिन बाद में इन तीनों बैंको का विलय एक नये बैंक 'इंपीरियल बैंक' में कर दिया गया जिसे सन १९५५ में 'भारतीय स्टेट बैंक' में विलय कर दिया गया। इलाहबाद बैंक भारत का पहला निजी बैंक था।भारतीय रिजर्व बैंक सन १९३५ में स्थापित किया गया था और बाद में पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ़ इंडिया, केनरा बैंक और इंडियन बैंक स्थापित हुए।
प्रारम्भ में बैंकों की शाखायें और उनका कारोबार वाणिज्यिक केन्द्रों तक ही सीमित होती थी। बैंक अपनी सेवायें केवल वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को ही उपलब्ध कराते थे। स्वतन्त्रता से पूर्व देश के केन्द्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ही सक्रिय था। जबकि सबसे प्रमुख बैंक इम्पीरियल बैंक आफ इण्डिया था। उस समय भारत में तीन तरह के बैंक कार्यरत थे - भारतीय अनुसूचित बैंक, गैर अनुसूचित बैंक और विदेशी अनुसूचित बैंक।
स्वतन्त्रता के उपरान्त भारतीय रिजर्व बैंक को केन्द्रीय बैंक का दर्जा बरकरार रखा गया। उसे बैंकों का बैंक भी घोषित किया गया। सभी प्रकार की मौद्रिक नीतियों को तय करने और उसे अन्य बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा लागू कराने का दायित्व भी उसे सौंपा गया। इस कार्य में भारतीय रिजर्व बैंक की नियंत्रण तथा नियमन शक्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
अनुक्रम
बैंकों का राष्ट्रीयकरण[संपादित करें]
मुख्य लेख : भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण
भारतीय रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण स्वतन्त्रता के उपरान्त सन् 1949 में किया गया। इसके कुछ वर्षों के उपरान्त सन् 1955 ई. में इंम्पीरियल बैंक आफ इण्डिया का भी राष्ट्रीयकरण किया गया और उसका नाम बदल करके भारतीय स्टेट बैंक रखा गया। आगे चलकर सन् 1959 ई. में भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम बनाकर आठ क्षेत्रीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। वर्तमान में ये आठों बैंक भारतीय स्टेट बैंक समूह के बैंक कहे जाते हैं। इन आठों बैंकों के नाम - स्टेट बैंक आफ हैदराबाद, स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर, स्टेट बैंक आफ इन्दौर, स्टेट बैंक आफ मैसूर, स्टेट बैंक आफ ट्रावणकोर इत्यादि हैं। देशभर में इनकी लगभग 15,000 शाखायें हैं।
देश के प्रमुख चौदह बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई, सन् 1969 ई. को किया गया। ये सभी वाणिज्यिक बैंक थे। इसी तरह 15 अप्रैल, सन 1980 को निजी क्षेत्र के छ: और बैंक राष्ट्रीयकृत किये गये। इन सभी बीस बैंकों की शाखायें देशभर में फैली हैं। वर्तमान में कुल २७ राष्ट्रीयकृत बैंक हैं।
निजी व सहकारी क्षेत्र के बैंक[संपादित करें]
भारतीय रिजर्व बैंक ने जनवरी, सन् 1993 ई. में तेरह नये घरेलू बैंकों को बैंकिंग गतिविधियां शुरू करने की अनुमति दी। इनमें प्रमुख हैं यू.टी.आई., इण्डस इण्डिया, आई.सी.आई.सी.आई., ग्लोबल ट्रस्ट, एचडीएफसी तथा आई.डी.बी.आई.। देश में लगभग पाँच सौ सहकारी क्षेत्र के बैंक भी बैंकिंग गतिविधियों में संलग€ हैं। देशी बैंकों के साथ अमेरिकी, यूरोपीय तथा एशियायी देशों की बैंकें भी भारत में अपनी शाखायें खोलकर कारोबार कर रही हैं। इनकी शाखायें महानगरों तथा प्रमुख शहरों तक ही सीमित हैं। देश में ग्रामीण बैंकों का बडा संजाल फैलाया गया है। देश में लघु बैंकिंग कारोबार में इन ग्रामीण बैंकों की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
वर्तमान भारत में बैंकिंग[संपादित करें]
भारत में बैंकिंग बहुत सुविधाजनक और परेशानी मुक्त है। कोई भी (व्यक्ति, समूह या जो भी हो) आसानी से लेनदेन की प्रक्रिया कर सकता हैं जब भी किसी को आवश्यकता हो। बैंकों द्वारा भारत में दी जाने वाली आम सेवाएँ इस प्रकार हैं -
- बैंक खाते: यह बैंकिंग क्षेत्र की सबसे आम सेवा है। कोई भी व्यक्ति बैंक खाता खोल सकता है जो कि बचतखाता, चालू खाता या जमा खाता कुछ भी हो सकत है।
- ऋण खाते: आप विभिन्न प्रकार के ऋणों के लिए किसी भी बैंक का रुख कर सकते हैं। यह आवास ऋण, कार ऋण, व्यक्तिगत ऋण, शेयर के विरुद्ध ऋण और शैक्षिक ऋण या कोई भी ऋण हो सकता है।
- धन हस्तांतरण: बैंकें विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में पैसा स्थानांतरण करने के लिए ड्राफ्ट, धनाआदेश या चेक जारी कर सकते है।
- क्रेडिट और डेबिट कार्ड: सभी बैंकें अपने ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड की पेशकश करते हैं। जो कि उत्पादों और सेवाओं को खरीदने के लिये या पैसे उधार लेने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
- लाकर्स : अधिकांश बैंकों के पास लाकर्स सुविधा उपलब्ध होती है जिसमें ग्राहक अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज या क़ीमती गहने सुरक्षित रख सकता है।
अनिवासी भारतीयों के लिए बैंकिंग सेवा
अनिवासी भारतीयों या एनआरआई लगभग सभी भारतीय बैंकों में खाता खोल सकते हैं। अनिवासी भारतीय तीन प्रकार के खाते खोल सकते हैं:
- अनिवासी खाता (साधारण) - NRO
- अनिवासी (बाह्य) रुपया खाते - NRE
- अनिवासी (विदेशी मुद्रा) खाता - FCNR
विभिन्न प्रकार के वाणिज्यिक बैंक[संपादित करें]
भारत की वाणिज्यिक बैंकिंग इन श्रेणियों में रख सकते हैं-
१. केंन्द्रीय बैंक - रिजर्व बैंक ओफ़ इंडिया भारत की केंन्द्रीय बैंक है जो कि भारत सरकार के अधीन है। इसे केन्द्रीय मंडल के द्वारा शासित किया जाता है, जिसे एक गवर्नर नियंत्रित करता है जिसे केन्द्र सरकार नियुक्त करती है। यह देश के भीतर की सभी बैंकों को संचालन के लिए दिशा निर्देश जारी करती है।
२. सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक -
- भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी बैंकों को 'स्टेट बैंक समूह' कहा जाता है।
- 20 राष्ट्रीयकृत बैंक
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक जो कि मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा प्रायोजित हैं।
३. निजी क्षेत्र के बैंक
- पुरानी पीढ़ी के निजी बैंक
- नई पीढ़ी के निजी बैंक
- भारत में सक्रिय विदेशी बैंक
- अनुसूचित सहकारी बैंक
- गैर अनुसूचित बैंक
४. सहकारी क्षेत्र - सहकारी क्षेत्र की बैंकें ग्रामीण लोगों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है. इस सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित कर सकत हैं - 1. राज्य सहकारी बैंक 2. केन्द्रीय सहकारी बैंक 3. प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी
५. विकास बैंकें / वित्तीय संस्थाऐं
- आईएफसीआई
- आईडीबीआई
- आईसीआईसीआई
- IIBI
- SCICI लिमिटेड
- नाबार्ड
- निर्यात आयात बैंक ऑफ इंडिया
- राष्ट्रीय आवास बैंक
- पूर्वोत्तर विकास वित्त निगम
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- बैंक राष्ट्रीयकरण से बदली थी तस्वीर (वेबदुनिया)
Aug 14 2014 : The Economic Times (Mumbai)
In Radical Revamp, Mor may Come to RBI as COO
MC GOVARDHANA RANGAN & SANGITA MEHTA
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MUMBAI
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Central bank approves Rajan's proposal for overhaul of the institution
The Reserve Bank of India board has approved Governor Raghuram Rajan's proposal for a radical overhaul of the institution aimed at shaking up a system seen as staid and rigid, by shrinking organisational bloat and reducing overlaps. It also seeks to establish the post of chief operating officer, an executive who's likely to be made responsible for executing the central bank's reform agenda.
“RBI board has approved the broad contours of the restructuring plan, includ ing the creation of a position of a COO,“ the central bank said in response to a query from ET. The new position may not be ranked at deputy governor level as sought by Rajan, at least for the time being, said two people familiar with the matter. The next rung, or the third-highest rank at the central bank, is that of executive director.
Nachiket Mor is regarded as the most likely candidate for the COO's job. Mor is a former executive director of ICICI Bank and also headed the RBI committee on financial inclusion. Rajan wants to trim the 27 different departments at the central bank. He's also said to be keen on making lateral hires from the private sector as is done in the US and UK.
Further Discussions with Govt 3 The board's approval for his plan is a boost for Rajan, who has already taken steps to transform monetary policy-making by adopting the inflation-targeting framework suggested by his deputy Urjit Patel.
This approach is cited as the reason for the two decades of prosperity before the 2008 credit crisis. Although the government has not yet formally approved this, statements from finance minister Arun Jaitley and others indicate that it's broadly in agreement with this strategy.
The creation of the new post will be discussed further with the government as it will require legislative changes.
“Since that position is intended to be at the DG (deputy governor) level, the position's status will have to be discussed further with the government, and then will require legislative change,“ said RBI.
The COO will probably be entrusted with implementing the reforms that Rajan wants, including pushing financial inclusion, differentiated banks and developing new structures for financial markets, said one of the persons cited above. It will not interfere with the existing structures that administer banks and financial markets, the person said. Rajan spoke highly of Mor in comments to ET when he chose him to head the financial inclusion panel last year. “We could not pick up a better and more capable person who has seen all aspects the theoretical as well as the practical -to give us a sense of the future of what we should be doing,“ Rajan had said.
Rajan's plan includes bringing every aspect of the central bank under just five functional departments, supervised by the four deputy governors and COO. Some departments such as the supervision and inspection departments of banks as well as NBFCs could be merged to avoid overlap.
Aug 14 2014 : The Times of India (Ahmedabad)
Govt turns down RBI's COO appointment plan
Sidhartha & Surojit Gupta
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New Delhi
TNN
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The government has turned down a move by RBI management to appoint a chief operating officer for the central bank. It has instead asked it to seek amendments to the RBI Act to appoint a fifth deputy governor.
The stand taken by the finance ministry is seen as a signal to Mint Road that the government will set the overall architecture, under which regulatory agencies have to function. RBI had sought to push through the appointment of a COO through a board resolution on July 10 — when Budget was presented — but was prevented from doing so at the last minute by the finance ministry.
Government officials questioned the move, arguing that the two finance ministry representatives on RBI board — finance secretary Arvind Mayaram and financial services secretary G S Sandhu — could not have attended the meeting
due to the Budget.
The issue was again listed on the RBI board meet agenda last weekend but the government refused to play ball, arguing that crucial appointments can’s be decided in this fashion and can be challenged in court.
In its current form, the law allows for the appointment of four deputy governors and the rules prescribe the selction criteria. While two deputy governors are internal candidates, the third is a public sector bank chief and the fourth is an external expert, usually an econo
mist. RBI now wanted a fifth deputy governor and suggested that an officer on special duty or a chief operating officer could be appointed since amending the law will take a while.
Sources in the government said the fifth deputy governor could also be an internal candidate. Before S S Mundhra’s appointment as deputy governor, a section within the central bank had suggested that a private sector banker could be considered for the job, but the finance ministry had turned down the proposal.
Aug 14 2014 : The Times of India (Ahmedabad)
Govt to review senior public sector bank appointments
Sidhartha & Neeraj Chauhan
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New Delhi
TNN
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CBI Director's Note Talks Of `Irregularities'
The finance ministry has decided to take a relook at recent appointments of top-level public sector bank executives as well as aclutch of proposals to designate chairmen just before the UPA demitted office, in what is seen as a direct fallout of the recent arrest of the Syndicate Bank chief by CBI on alleged corruption charges.
Senior finance ministry officials told TOI that a review has become necessary in view of the irregularities that have come to light.
Finance minister Arun Jaitley has written to the Reserve Bank of India governor Raghuram Rajan, who heads the appointment board that selects state-run bank chiefs, as well as cabinet secretary Ajit Seth, who processes all papers for the appointments committee of cabinet, sources said. Some of the appointments processed during UPA 's closing days lacked transparency and there are indications that some political considerations may have played a part, they added. In a letter to the finance ministry , CBI chief Ranjit Sinha has pointed to some ir regularities that have been noticed by the investigative agency during the Syndicate Bank probe. Sources said CBI has suggested a “legal scrutiny“ as it has found clues sug gesting that ACRs and inter views “were managed“ and some middlemen also played arole.
Sinha said Jain was appointed despite having “poor” ACRs. “We have told the government that appointments deserve to go under legal scrutiny.
The government has to take a call. There are reports of irregularities in several appointments. We have informed the government
about it,” the CBI chief said.
For the past few years, appointment of several bank chiefs, executive directors as well has independent directors have been viewed with a degree of suspicion and have often resulted in controversy.
The candidates are selected on the basis of an appraisal of the confidential reports (ACRs), which carry 70 marks, and candidates appearing for interviews for executive directors and CMDs can get another 30 marks.
Apart from the RBI governor, financial services secretary, an RBI deputy governor and external experts are part of the appointments board.
Similarly, there is no clarity on what goes into deciding the allotment of banks.
There have been instances of some of the candidates barely opening their account in the interviews but still being recommended for appointment based on their ACRs. In 2012, while appointing a second-rung executive, the department of financial services was accused of changing the grades from “very good” to “outstanding”, making the executive eligible for the job.
Once the gap was pointed out, the appointments committee of cabinet had put the appointment on hold, but later cleared it.
Mission financial inclusion on Aug 15
Prime Minister Narendra Modi will launch a nationwide financial inclusion campaign by August-end to provide banking, insurance and pension cover to 7.5 crore households.
Non-banking finance companies will be roped in to widen the net. The PM is set to announce the National Mission on Financial Inclusion -aiming to reach 15 crore individuals by 2015 -in his August 15 speech and kick off the project in the capital on August 28 or 29. Under the programme, a basic bank account would be opened with Rupay debit card, including accident insurance cover of Rs 1 lakh. On several occasions, the department of financial services has changes the criteria for appointment. For instance, to become a public sector bank CMD, the candidate should have been an executive director for at least two years and should have at least two years to go for retirement.
Often these stipulations have been tweaked.
For instance, this January, as reported by TOI, the government allowed general managers of public sector banks who had less than the stipulated three years to go for superannuation to appear for an interview. This allowed five candidates to appear for the interview at a notice of just a few hours.
The exercise to com,plete the selection 13 EDs came weeks before election were announced and on the Anand Sinha was to demit office as RBI deputy governor.
Aug 14 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Facing a Rs 2,700-crore Loss, FIs Swoop Down on Bhushan
RAJESH MASCARENHAS
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MUMBAI
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Financial institutions invoke pledges as scrip plunges
Financial institutions that have loaned money against shares owned by promoters of scandal-hit Bhushan Steel have begun invoking these pledges as they st . 2,700 crore folare at losses of more than ` lowing a steep plunge in the share price.
Bhushan has dropped 55% in the past six trading sessions after vice-chairman and managing director Neeraj Singhal was arrested last week by the Central Bureau of Investigation in a case related to bribes allegedly being paid to Syndicate Bank chairman SK Jain in return for enhancing credit limits.
Disclosures made by the company on Tuesday show that Kotak Mahindra Bank invoked 16.6 lakh shares while STCI Finance invoked 8.72 lakh shares on August 4 and 6.The promoters held 71.29% of Bhushan at the end of June. Of this, 74.21% was pledged with financial institutions at a time when the stock was at about Rs 400. It closed at Rs 168.9, down 5%, on the BSE on Wednesday , a level not seen since August 2009.
Typically , shares are invoked -or transferred to lenders' accounts -when borrowers fail to chip in enough cash or securities to replenish margins in a falling market. Margins vary between 40 and 60%; so, for every Rs 100 borrowed, securities worth Rs 140 or 160 have to be pledged.
ECL Finance, the non-banking finance company of listed Edelweiss Financial Services, is among those leading the list at 1.44 crore shares. At current prices and assuming a worst-case scenario, the firm is likely to suffer a loss of Rs 300 crore, though experts say that some money may eventually be recovered.
A spokesperson for Aditya Birla Finance declined to comment, and the rest of the lenders did not respond to an email query as of press time.
Aug 14 2014 : The Economic Times (Kolkata)
BJP Leaders Root for Economic Nationalism
RAJESH RAMACHANDRAN
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NEW DELHI
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Sangh insiders feel Manmohan-era babus may derail Modinomics
“Economic nationalism“ is the new buzz word for RSS insiders.
Unlike the last NDA government which was at loggerheads with RSS over its economic agenda forcing Sangh veteran Dattopant Thengadi to pit his Swadeshi and trade union organisations against Vajpyaee's policies, BJP leaders feel that the new NDA government is completely in sync with the Sangh.
They cite the country's stand at the World Trade Organisation against the Trade Facilitation Agreement to underscore the new “independent economic policy“ initiatives of the Modi government.
“The Narendra Modi government has independent foreign and economic policies which are not bound by the expectations and interests of super powers, multilateral agencies or multi-national companies. The foreign policy vision is unfolding, and soon Arun Jaitley will present the blueprint for the economic agenda, which too will be nationalistic. This will not be limited to the economy , but will impact the defence manufacturing too,“ explained a senior BJP leader.
But some BJP leaders are anxious about the continuity in the finmin bureaucracy , which they think will lead to a UPA hangover in policies. “Raghuram Rajan's citizenship continues to be an issue of concern for us. But we need to look at what he can offer the finance minister or the PM in terms of policy initiatives. He should continue if he is useful within the larger framework of economic nationalism. But principal economic advisor Ila Patnaik was appointed during the last phase of the elections. Why should she continue?“ asks another BJP functionary . None of the organisational functionaries want to come out openly with suggestions or criticisms as they consider the economy to be the finance minister's turf where even the PM has not transgressed.
But these BJP leaders are sceptical about Rajan, finance secretary Arvind Mayaram and Patnaik as appointees and torch-bearers of former finance minister P Chidambaram's policies.
More than a “regime change“ at the highest echelons of policymaking, Swadeshi economists of the Sangh Parivar want Jaitley to bring in people who would vigorously operationalise policies that would push the domestic industry and enterprises.
A BJP leader in a rather tonguein-cheek fashion put it succinctly , “we are banias. There is no doubt about it. By economic nationalism we envisage an environment that promotes our own industry and not an economic climate that favours multinational companies against the domestic capital.“
Now, these party functionaries and Swadeshi economists are waiting for Jaitley's interpretation of what they call a new, vigorous, push to the domestic capital. And they believe the sooner the finance minister gets rid of the Manmohan Singh legacy at North Block, the more successful he will be.
Aug 14 2014 : The Economic Times (Kolkata)
OOH! It had to be BJP
The Bharatiya Janata Party has topped a ranking of 25 most visible brands during the election months of April and June, according to an outof-home-advertising survey. Although Brand BJP slipped several notches in June, it remained No.1 during the quarter ended June. The survey placed Congress second and the Election Commission 12th in April in terms of share of visibility, a measure that takes into account the area of the hoarding, billboard or any other media asset used by the brand. ET tracks the ad footprint of the two parties...
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