अच्छे दिनों की सेंचुरी लग गयी।जिनका हुआ वारा न्यारा,जिनकी दसों उंगलियां घी में और सर हुआ कड़ाही,उन सबको बधाई।जन गण मन अब जन धन मन हुआ,इसका मतलब भी समझ लीजिये।
पलाश विश्वास
नई सरकार के प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाने और उनके सफल क्रियान्वयन के प्रयासों से वित्त वर्ष 2019-20 तक भारत 4500 अरब डॉलर कीअर्थव्यवस्था बन सकता है। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है।टीवी पर विद्वतजन इकोनामिक इनक्लुजन और समावेशी विकास पर व्याख्यान दे रहे हैं तो टनों कागद कारे हैं दसमुखी विकासयात्राओं पर।गरीबी उन्मूलन असली अब हो रहा है,दावा का शोर मूसलाधार। हिन्दू माह भाद्रपद की चतुर्थी को (शुक्रवार) से पूरे देश में गणेश महोत्सव का शुभारंभ हो गया है। आगामी 10 दिनों तक महाराष्ट्र समेत देश के सभी हिस्सों में गणपति पूजा से माहौल भक्तिमय बना रहेगा। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री ने गणेश चतुर्थी के लिए देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं।
सहज फार्मूला है गरीबी उन्मूलन का रामवाण।प्रधानमंत्री ने जन-धन योजना का आगाज कर दिया है, इस योजना के तहत सिर्फ एक दिन में 1.5 करोड़ लोगों को बैंक खाते और बीमे का तोहफा मिला है। देश के घर-घर तक बैंकिंग सर्विस पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री जन-धन योजना का भव्य शुभारंभ हो गया है। एक दिन में 1.5 करोड़ बैंक खाते खोलने के लक्ष्य वाली इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरे देश में एक साथ लॉन्च किया गया है। देश भर में करीब 80000 कैंप लगाए गए हैं। और 26 जनवरी 2015 तक 7.5 करोड़ खाते खोलने का लक्ष्य है।दूसरी ओर,विश्लेषकों का मानना है कि बाजार में तेजी का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। दीवाली तक मौजूदा स्तर से 5-10 प्रतिशत तक बढ़त दर्ज की जा सकती है। लेकिन, अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के असर से इनकार नहीं किया जा सकता।
बैंक अकाउंट के साथ-साथ 1 लाख रुपये का एक्सिडेंट कवर भी मिलेगा। और जो लोग 26 जनवरी 2015 तक खाता खुलवाएंगे उन्हें 30000 रुपये का लाइफ इंश्योरेंस भी दिया जाएगा। हर गरीब के हाथ में अब डेबिट कार्ड होगा और साथ ही ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी। इसके अलावा अब हर मोबाइल पर बैंकिंग सर्विस मिलेगी जो अब तक सिर्फ स्मार्टफोन पर ही मुमकिन थी।
गण का हुआ सफाया,गणपति बप्पा मौर्या की हांक लगने से पहले गण हो गया विसर्जित और गण पर हो रही है धनवर्षा।रसोई का भी पक्का इंतजाम कि मोदी सरकार ने यूपीए सरकार का फैसला पलट दिया है। एलपीजी उपभोक्ताओं को राहत देते हुए सरकार ने आज कहा कि ग्राहक 12 सस्ते सिलेंडर का अपना कोटा वर्ष के दौरान किसी भी समय ले सकते हैं। इसके लिए जरूरी नहीं है कि उन्हें हर महीने एक ही सस्ता सिलेंडर मिलेगा। सरकार ने इस साल फरवरी में 14.2 किलो सस्ते गैस सिलेंडर का कोटा सालाना नौ से बढ़ाकर 12 कर दिया था लेकिन इसके साथ ही यह भी शर्त लगा दी गई थी कि उपभोक्ता को एक महीने में केवल एक ही सस्ता सिलेंडर दिया जाएगा।
अब अमेरिकी पूंजी खेंस में दबा लेने के बाद जापानी फ्लड गेटखोलने का इंतजाम भी पुरकश है,लुटेरों को खुल्ला आमंत्रण है कि लूट सको तो लूट लोषइस देश में सत्ता पक्ष भी अब संघ परिवार तो विपक्ष भी संघ परिवार।बाकी कोई आवाज है नहीं।बेखौफ लूट लो।
बहिस्कृत अस्पृश्य भेदभाव की शिकार जो जनता है,बजरिये आधार डिजिटल बायोमेट्रिक चमत्कार उन सबका खुलने लगा खाता बैंकों में।खाता खुलवाने में पचास लाख रोजगार का सृजन।शिवसेना माडल का रोजगार है जिसे तृ-णमूली रोजगार कहने में भी कोई हर्ज नहीं है।
मुफ्त बीमा के साथ मुफ्त डेबिट कार्ड भी।यानी धन निकासी किये बिना खरीददारी का पुख्ता इंतजाम भी।
हर्षद मेहता और केतन मेहता प्रकरण से देशी निवेशकों की आंखें खुली नहीं हैं और सभी मालामाल लाटरी पर दांव लगा रहे हैं,तो बाजार के तौर तरीके से अनजान,अब तक बैंकिंग से अनभिज्ञ,क्रयशक्तिहीन जनता के इस आर्थिक सशक्तीकरण से आखिर क्या मतलब सधता है,दिलचस्पी का मामला किंतु वहीं है।
जो लोग बिजनैस चैनलों में बिग एक्सपोज स्टाक मार्केट जैसे कारक्रम देखते हों,उन्हें बताने की जरुरत नहीं है कि सेबी और रिजर्व बैंक का बाजार पर नियंत्रण भारत सरकार से छटांक भर ज्यादा नहीं है।
जो लोग बंगाल असम और ओड़ीशा में शारदा फर्जीवाड़े के सिलसिले में पोंजी नेटवर्क की वित्तीय प्रणाली में राजनेता,पुलिस प्रशासन,सेबी,सिविल सोसाइटी,खेल मनोरंजन मीडिया और रिजर्वबैंक के तमाम चेहरों को गड्डमड्ड देख रहे हैं,उन्हें भी ज्यादा समझाने की शायद जरुरत है नहीं।
इंदिरा गांधी का समाजवादी माडल,हरित क्रांति और गरीबीउन्मूलन कार्यकर्म का अच्छा खासा इतिहास तो है ही,नवउदारवादी मनमोहिनी सरकार के दौर में इसी आधार भित्तिक सामाजिक परयोजनाओं मसलन मनरेगा,शहरी विकास योजना,सर्वशिक्षा अभियान,मिड डेमिल वगैरह वगैरह का जलवा और कारपोरेटउत्तरदायित्व का तामझाम हम देख ही चुके हैं।
अछ्चे दिन दरअसल किसके अछ्छे दिन हैं,इसे समझने के लिए शेयर बाजार की सांढ़ संस्कृति की थोड़ी बहुत समझ भी जरुरी है।बेलगाम आर्थिक सुधारों की वजह से शुक्रवार को बंबई शेयर बाजार में पूंजी प्रवाह बढ़ने से सेंसेक्स 77.96 अंक बढ़कर 26,638.11 अंक की नई उंचाई पर पहुंच गया। यह लगातार सातवां महीना है जब सेंसेक्स बढ़त में रहा।बिजनेस फ्रेंडली नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को वृद्धि के रास्ते पर लाने के लिए उठाए जा रहे कदमों से निवेशकों में उत्साह है,जाहिर है।
इस पर भी गौर करें कि फायदा आखिर किसे हो रहा है।जिन्हें गणित से परहेज है और दिलचस्पी कोई नहीं है,वे शारदा घोटाले के सिलसिले में पोंजी अर्थव्यवस्था की राजनीति सीबीआई अपडेट मार्फत समझ सकते हैं।जैसे शेयर बाजार का नियंत्रक है सेबी और भारतीय रिजर्वबैंक।उसी तरह देश की तमाम आर्थिक गतिविधियों पर नजरदारी भी उनकी जिम्मेदारी है। मासिक डेरिवेटिव अनुबंध के निपटान के दिन उतार-चढ़ाव भरे कारोबार में बड़ी कंपनियों के शेयरों में लाभ दर्ज हुआ। निवेशकों की निगाह कल आने वाले अप्रैल-जून तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों पर है। यूक्रेन में तनाव बढ़ने की खबर का असर हालांकि आज बाजार पर नहीं देखा गया जबकि इस खबर से एशिया और यूरोपीय बाजारों का लाभ सिमट गया।
हिंदी बिजनेस चैनल जीबिजनेस पर बिग एक्सपोज स्टाक मार्केट कार्यक्रम के तहत सात शेयरों के फर्जीवाड़े का खुलासा किया गया है।लिस्टेड होते ही इन कंपनियों का बुलरन शुरु ,ग्रोथ तीनसौ फीसदी तक।फिर सबकुछ शून्य। रजिस्टर्ड दफ्रका अता पता नहीं।कर्मचारियों और अधिकारियों का अता पता नहीं है।प्रोमोटरों का चालीस फीसद से ज्यादा हिस्सा जिसमें तिन चौथाई गिरवी पर और फंडामेंटाल कुछ भी नहीं।उन्हें निवेशकों को दिनदहाड़े लूटने की खुली छूट है और शेयर बाजार बूम बूम है।
यही नहीं,मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा यानी ईओडब्ल्यू ने करीब 800 करोड़ रुपये के एफडी घोटाले में 9 एफआईआर दर्ज की है। इस घोटले के मास्टरमाइंड को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। करीब 8 बैंको के फर्जी एफडी के कागजात पर लोन सिंडिकेटर ने लोन पास करवाया था। इस मामले में पुलिस बैंक अधिकारियों की भूमिका की भी जांच कर रही है।
एफ घोटाले में 10 और नए मामलों की जांच की जाएगी। ईओडब्ल्यू के मुताबिक बैंक ऑफ इंडिया, धनलक्ष्मी बैंक, विजया बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और आईओबी के एफडी के साथ घोटाला किया गया है। साथ ही स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर और यूको के एफडी भी घोटाले में शामिल हैं। एफडी घोटाले में फर्जी एफडी के कागजात दिखाकर लोन लिया गया है, ऐसे में इस मामले में बैंकों के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है।
जाहिर है कि जानकार प्रधानमंत्री की जन-धन योजना को पुरानी फाइनेंशियल इंक्लूजन से जुड़ी स्कीमों से बेहतर बता रहे हैं, हालांकि वो ये भी मानते हैं कि इन योजनाओं को लागू करने में सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
फिनो पेटेक के शैलेश पांडेय का मानना है कि मोदी सरकार की प्रधानमंत्री जन-धन स्कीम पुरानी फाइनेंशियल इंक्लूजन से जुड़ी स्कीमों के मुकाबले काफी अच्छी है। फुल पैकेज होने के कारण इसे लोग जरूर खीचें चले आएंगे। वहीं आईडीआरबीटी के प्रोफेसर वी एन शास्त्री का मानना है कि हर मोबाइल पर बैंकिंग की सुविधा देने का कदम काफी अच्छा है लेकिन इसमें चुनौतियां भी काफी होंगी।
वी एन शास्त्री के मुताबिक काफी जगहों पर मोबाइल सिग्नल की दिक्कत होती है जिससे कमजोर सिग्नल पर ट्रांजैक्शन में दिक्कत आएगी। साथ ही सस्ते फोन में एप्लिकेशन बेस्ड मोबाइल बैंकिंग में दिक्कत आएगी। लेकिन आईवीआरएस के जरिए ट्रांजैक्शन काफी आसान और सफल होगा।
बहरहाल ताजा जनकारी के मुताबिक बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स कारोबार के दौरान अपने सर्वकालिक उच्च स्तर 26,674.38 अंक पर पहुंच गया। इसके साथ इसने कल के रिकार्ड बंद स्तर 26,560.15 अंक को भी लांघ गया और 26,638.11 अंक पर बंद हुआ। लगातार छठे दिन सेंसेक्स लाभ में रहा। इन छह दिनों में सेंसेक्स में 324 अंक की बढ़त दर्ज हुई है।
नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी 18.30 अंक या 0.23 प्रतिशत की बढ़त के साथ नए रिकार्ड स्तर 7,954.35 अंक पर बंद हुआ। इसने कल दर्ज किए गए रिकार्ड स्तर 7,936.05 अंक को पार कर लिया। कारोबार के दौरान इसने दिन का उच्च स्तर 7,967.80 अंक भी छुआ। सेंसेक्स के 30 शेयरों में भेल, एलएंडटी, आईसीआईसीआई बैंक, ओएनजीसी, विप्रो व गेल सहित 17 में बढ़त रही, जबकि 12 में गिरावट दर्ज हुई। हीरो मोटोकार्प के शेयर मूल्य में बदलाव नहीं हुआ।
यह विकास कामसूत्र का सेक्सी विज्ञापन है जिसके तहत काउच पर,बिस्तर पर,बाथरुम पर,बगीचे में मसलन कहीं भी आप मस्ती कर सकते हैं और यह पोंजी बंदोबस्त आपकी अर्थव्यवस्था है जहां गण गायब है और धनवर्षा का विजुअल वर्चुअल रियलिटी है,न समाज वास्तव है और न सामाजिक सरोकार।
समाजवाद पर दिवंगत कवि गोरख पांडेय का गीत भी लगता है बदलना होगा क्योंकि केसरिया कारपोरेट सरकार ने समाजवाद शेयर बाजार मध्ये विदेशी निवेशकों की अटल आस्था के तहत लाने का पीपीपी उपक्रम चालू कर दिया है,जो एकमुश्त एफडाआई, डाइवेस्टमेंट,इंफ्रा प्रोमोटर राज है।
मनमोहन ने विकास की फसल चुंआने का मुकम्मल इंतजाम नहीं किया था इसलिए जनता ने उन्हें अलविदा कर दिया है।अब ट्विंकल ट्विंकल ट्रिकलिंग ट्रिकलिंग हैं,कम से कम सरकार ज्यादा से ज्यादा प्रशासन के जरिये नमोमहाराज ने इसका अहसास मेघमध्ये मीडिया विमान से कर दिया है जनता को।
शेयर एक्सपोज की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं कि बाजार का दायरा महानगरों,नगरों और उपनगरों से बढ़ाकर बाजार का जो महाविस्तार खेतों और खलिहानों में किया जा रहा है,वहां तक नकदी प्रवाह या कैश लिक्विडिटी की दिशा लेकिन बूम बूम उपभोक्ता बाजार है और इसीलिए इंश्योरेंस संगे डेबिट कार्ड का यह इंतजाम।
डेबिट कार्ड से किसी भी प्रकार का उत्पादन किसी भी स्तर पर बढने की कोई गुंजाइश नहीं है।डेबिट कार्ड का मतलब हुआ बेहिसाब खरीददारी।
जाहिर है कि उत्पादन प्रणाली की वास्तविक समस्याओं को संबोधित किये बिना,उत्पादन प्रणाली में जनता की हिस्सेदारी सुनिस्चित किये बिना उन्हें सीमाबद्ध खरीददारी का मौका देने का इस महाराजसूय यज्ञ से किसे फायदा होने जा रहा है।
गूगल ने कहा है कि वह आनलाईन खरीदे गए उत्पादों की आपूर्ति के लिए ड्रोन के उपयोग को परीक्षण कर रहा है। उल्लेखनीय है कि इसी तरह का परीक्षण प्रमुख इंटरनेट खुदरा कंपनी आमेजन डाट काम भी कर रही है।गूगल ने परीक्षण के तौर पर कैंडी, पानी, दवा आदि की आपूर्ति ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड स्थित दो किसानों को की। कैलिफोर्निया मुख्यालय वाले गूगल ने गुरुवार को इसका खुलासा करते हुए ब्लॉग में कहा, ‘स्वचालित वाहन उपयोगी वस्तुओं की ढुलाई को नया आयाम दे सकते हैं।’
जाहिर है कि यह दानछत्र निजी विदेशी बैंकों की ओर से खोला नहीं जायेगा।सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ही बलि का बकरा बनाया जायेगा।बैड लोन के बहाने जिनका बेसरकारीकरण तेज है तो अब 15 -50 करोड़ लोगों को बैंकिंग जरिये पूंजी,बीमा और क्रेडिट कार्ड सुविधाएं देने के बाद रिकवरी क्तिनी होगी,इसका हिसाब तो बैंकों के कर्मचारी और अफसरान बेहतर लगा सकते हैं। लेकिन इस नकदी उत्सव के गरीबी उन्मूलन से क्रयक्षमता भले ही बढ़ जाये जनता की,आर्थिक सशक्तीकरण तो होना नहीं है क्योंक उत्पादन प्रणाली में उनकी कोई भूमिका रह ही नहीं गया है।यह तो बलि से पहले बकरों को चारा खिलाने का इंतजाम है।
आधार से जुडे इस कार्यक्म का सीधा मतलब हुआ बाजार को डीकंट्रोल और डीरेगुलेट करने का पुख्ता इंतजाम और सब्सिडी को ख्तम करने का स्थाई बंदोबस्त।जो सभी संवेदनसील सेक्टरों में एफडीआई और डिसइंवेस्टमेंट के बाद अमेरिकी रेटिंग एजंसियों और वैश्लविक संस्थानों का अनिवार्य दिशानिर्देश हैं।
इस पर जरुर गौर करें कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के चार माह बाद अर्थव्यवस्था पर मोदी इफेक्ट दिखने की उम्मीद जताई जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था जून में खत्म हुई तिमाही में दो साल का सबसे तेज विकास दर्ज कर सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह वादा किया था कि उनकी सरकार आने के बाद व्यापार करना आसान हो जाएगा, इसके लिए çक्ल्यरेंस जल्दी मिलेंगी और टैक्स पॉलिसी भी आसान होंगी।
40 इकोनॉमिस्ट्स की ओर से किए गए पोल के मुताबिक यह पूर्वानुमान लगाया गया है कि अप्रेल से जून के बीच विकास दर 5.3 प्रतिशत तक उठी होगी। पिछली तिमाही में यह 4.6 प्रतिशत थी। आज शाम तक जीडीपी डेटा जारी किया जाएगा। अगर यह पूर्वानुमान सही जाता है तो यह वर्ष 2012 के बाद दूसरी तिमाही होगी जिसमें विकास दर 5 फीसदी से ऊपर गई हो।
मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि युवाओं को रोजगार देने और देश में से गरीबी को दूर करने के लिए विकास दर को उठाना बेहद जरूरी है। जीडीपी के आंकड़ों में सुधार सरकार की तरफ से उठाए कदमों के चलते देखा जा रहा है। इसमें कैपिटल इनवेस्टमेंट और डिमांड बढ़ाना शामिल हैं।
मोदी ने सत्ता में आते ही टैक्स लिटिगेशंस कम करने, रेलवे और डिफेंस में विदेशी निवेश को बढ़ाने और तमाम तरह के रेगुलेटरी अप्रूवल्स का काम तेज किया है। विदेशी निवेश के भारत में आने से भारतीय शेयर्स की परफॉर्मेस सुधरी है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कोई भी नीति हमेशा के लिए प्रासंगिक नहीं रह सकती। नीतियों को अर्थव्यवस्था को लचीला और गतिशील बनाने में योगदान करना चाहिए ताकि इसमें वृद्धि हो सके।
उन्होंने कहा, ‘किसी भी नीति को हमेशा के लिए प्रासंगिक नहीं नहीं माना जा सकता। प्रणाली गतिशील होती है जिसमें बदलते दौर के साथ बदलने का लचीलापन रहता है। इसलिए हमारी नीतियों को अर्थव्यवस्था के लचीलेपन और गतिशीलता में योगदान करना चाहिए ताकि यह वृद्धि दर्ज करे।’ राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ साल से विदेश व्यापार ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा, ‘निर्यात का भारतीय विदेश व्यापार नीति पर मुख्य जोर रहता है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) में ई-गवर्नेंस बढ़ाकर और डीजीएफटी की भूमिका में बदलाव कर अधिकारी अब सिर्फ नियामक बने रहने की बजाय व्यापार में मददगार की भूमिका भी अदा कर सकते हैं।’
मोदी सरकार को 100 दिन पूरे हो चुके हैं। 20 मई को मोदी ने बीजेपी की आम चुनाव में जीत के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पेश की थी। इन 100 दिनों में मोदी ने अर्थव्यवस्था के लिए किए यह 10 काम -
1. विदेशी निवेश का स्वागत
एनडीए सरकार ने डिफेंस और रेलवे में विदेशी निवेश को 49 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। बजट भाषण में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने घोषणा की थी कि रेलवे के कुछ प्रोजेक्ट्स के लिए 100 फीसदी तक विदेशी निवेश को इजाजत दी जाएगी जबकि डिफेंस क्षेत्र में 49 प्रतिशत विदेशी निवेश का स्वागत किया था।
2. इंडस्ट्री फ्रेंडली
मोदी सरकार ने इंडस्ट्री फ्रेंडली पॉलिसी लाने के लिहाज से इंडस्ट्री के लिए कई एनवायर्नमेंटल नॉम्स में ढील दी है खास कर खनन, रोड, पावर और इरिगेशन में। खनन के लिए अब ग्राम सभा की इजाजत की जरूरत नहीं है।
3. जन धन योजना
प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से भाषण देते हुए जन धन योजना की घोषणा की। इसके तहत हर गरीब परिवार के लिए एक बैंक अकाउंट खोलने, 5000 रूपए की ओवरड्राफ्ट की सुविधा और 100000 रूपए का इंश्यॉरेंस कवर दिया जाएगा।
4. डिजिटल इंडिया
मोदी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी हाई-स्पीड इंटरनेट सुविधा की घोषणा की। इसके साथ ही डिजिटल इंडिया प्लेटफॉर्म के जरिए शिक्षा और टेलिमेडिसिन सुविधाएं भी दी जाएंगी। इस सुविधा का इस्तेमाल गरीब अपना बैंक अकाउंट ऑपरेट करने के लिए भी कर सकते हैं।
5. बुलेट ट्रेन
मोदी सरकार ने अपने पहले ही बजट में बुलेट ट्रेन की घोषणा की। हाई-स्पीड टेन मुंबई-अमदाबाद के बीच शुरू की जाएगी। इसके अलावा मेट्रो शहरों में हाई-सीपड ट्रेन नेटवर्क बिछाया जाएगा।
6. डब्ल्यूटीओ को बाहर का रास्ता
जब मोदी की सरकार चुन कर आई थी यह तभी से ही उम्मीद की जा रही थी कि मोदी भारत को निवेशक फ्रेंडली देश बनाएंगे। भारत ने डब्ल्यूटीओ का लंबे समय से लंबित ग्लोबल ट्रेड पैक्ट साइन करने से मना कर दिया। फूड सिक्यॉरिटी के लिए पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग पर किसी समाधान कि बिना भारत इस पैक्ट पर साइन करने के लिए तैयार नहीं था।
7. गंगा प्लान
दूषित गंगा नदी को साफ करने के वादे के साथ मोदी वाराणसी से भारी मतों से जीते थे। इसके लिए मोदी सरकार ने बजट में से 2037 करोड़ रूपए दिए ताकि गंगा की सफाई और इसके डेवलपमेंट प्लान पर काम किया जा सके।
8. पाकिस्तान सें संबंध
अपने शपथ समारोह में मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया और इसके बाद दोनो देशों के बीच सौहार्द की उम्मीद भी जताई, लेकिन बाद में नई दिल्ली में कशमीर के मुद्दे को लेकर होने वाली दोनों देशों के विदेश सचिवों की बीच की मीटिंग को रद्द कर दिया। विदेश नीतियों पर मोदी सरकार के तेवर हमेशा स्पष्ट रहे कि वे भारत के हित के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे।
9. सेनिटेशन पर डोज
लाल किले से बोलते हुए नरेंद्र मोदी ने देश में हाइजीन, सैनिटेशन और टॉयलेट की कमी खास कर बच्चों और महिलाओं को होने वाली तकलीफ पर जोर दिया। इसका असर यह हुआ कि इंडियन ओवरसीज बैंक ने कहा कि वह देशभर में 59 स्कूलों में टॉयलेट बनवाएंगे। वहीं टीसीएस और भारती ने 100-100 करोड़ रूपए इस प्रोग्राम को देने का वादा किया।
10. प्लानिंग कमिशन का सफाया
मोदी ने कहा कि देश को प्लानिंग कमिशन जैसी बॉडी की जरूरत नहीं है। देश के लिए पांच वर्षीय योजना बनाने वाला प्लानिंग कमिशन प्लान और फंड बांटने के लिए केंद्र सरकार और राज्यों पर निर्भर रहता था। - See more at: http://www.patrika.com/news/modis-100-days-and10-top-moves-for-indian-economy/1026322#sthash.LMTxuxUb.dpuf
मनी कंट्रोल का यह विश्लेषण दिलचस्प हैः
मोदी सरकार के अगले हफ्ते 100 दिन पूरे हो जाएंगे। 100 दिन का रिपोर्ट कार्ड पेश करने के ठीक पहले प्रधानमंत्री जन-धन योजना शुरू कर नरेंद्र मोदी ने एक माहौल जरूर बना दिया है। जन-धन योजना में आर्थिक सोच भी है और राजनीतिक मकसद भी। लेकिन फिर भी सवाल उठेंगे कि इस योजना के अलावा मोदी सरकार के पास दिखाने को और क्या होगा। इन 100 दिन में उनकी दूसरी गेमचेंजर स्कीम क्या थी और बिजनेस सेंटिमेंट सुधारने में वो कामयाब हो पाए। और जो एक्शन लिए उनको जमीन पर उतारने में सरकार कितनी सफल रही है।
मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना के अलावा रेलवे इंफ्रा में 100 फीसदी और डिफेंस में 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी जैसे अहम फैसले भी लिए हैं। मोदी सरकार ने पर्यावरण मंजूरी को आसान बनाया है। नई सरकार ने 2 लाख करोड़ रुपये के इंफ्रा प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। साथ ही डिजिटल इंडिया मिशन के तहत गांवों में ब्रॉडबैंड योजना की शुरुआत की है। हर स्कूल में लड़कियों के लिए टॉयलेट और गंगा की सफाई जैसी योजनाएं अमल में लाई हैं। अफसरों को चुस्त-दुरुस्त करने में कामयाबी पाई है।
मोदी सरकार ने इंश्योरेंस में 49 फीसदी एफडीआई को लेकर कदम बढ़ाए लेकिन बात अभी बन नहीं पाई है। महंगाई रोकने के कदमों का असर कम दिखा है। पिछली तारीख से टैक्स कानून को लेकर अब तक सफाई का इंतजार है। लेकिन काला धन लाने की मुहिम और पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने के लिए अबतक अच्छी पहल की है। हालांकि जीएसटी, जमीन अधिग्रहण बिल और बड़े आर्थिक सुधारों को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं हो पा रही है।
जन-धन योजना के तहत सरकार ने आज से हर मोबाइल फोन पर मोबाइल बैंकिंग की सुविधा की शुरुआत की है। मोबाइल से बैलेंस चेक और पैसे ट्रांसफर जैसी सुविधा मिल पाएगी। अब तक सिर्फ स्मार्टफोन से बी बैंकिंग हो पाती थी। जन-धन योजना से ग्रामीण क्षेत्र के हर घर में कम से कम एक बैंक खाता होगा। साथ ही डेबिट कार्ड के साथ 1 लाख रुपये का बीमा भी होगा। जन-धन योजना के तहत खुलने वाले खातों में मिनिमम बैलेंस रखने की जरूरत नहीं होगी। इसी बैंक खाते में इंश्योरेंस और पेंशन प्रोडक्ट की सुविधा मिलेगी।
जन-धन योजना के तहत फिंगर प्रिंट से भी खाता खुल जाएगा और आधार कार्ड के जरिए ई-केवाईसी भी हो सकेगा। वोटर आई कार्ड, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, सरपंच या किसी सरकारी अधिकारी का पत्र, नरेगा कार्ड, बिजली और टेलीफोन बिल और बर्थ एवं मैरिज सर्टिफिकेट जैसे कागजातों के जरिए जन-धन योजना में बैंक खाता खुल सकेगा।
मोदी सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं। 100 दिन पूरे होने पर सीएनबीसी आवाज ने मोदी सरकार की उपलब्धियों पर सर्वे करवाया। लोगों से हमने इंफ्रा, महंगाई, एफडीआई, टैक्स रिफॉर्म जैसे मुद्दों पर रायशुमारी की जिसमें से ज्यादातर लोग मोदी सरकार के काम से संतुष्ट दिखें। लेकिन मोदी सरकार को टैक्स रिफॉर्म और महंगाई को काबू में करने के लिए तेजी से काम करने होंगे। सर्वे में औसत शामिल लोगों ने मोदी सरकार के 100 दिनों के कामों को 10 में से 7.8 अंक दिए हैं। वहीं 90 फीसदी लोगों ने मोदी सरकार के काम को औसत से ज्यादा बताया है, तो 10 फीसदी लोगों ने औसत बताया।
मनीकंट्रोल का यह विश्लेषण भी दिलचस्प हैः
मोदी सरकार के 100 दिन पूरे हो गए हैं। 100 दिन पूरे होने पर सीएनबीसी आवाज ने मोदी सरकार की उपलब्धियों पर सर्वे करवाया। लोगों से हमने इंफ्रा, महंगाई, एफडीआई, टैक्स रिफॉर्म जैसे मुद्दों पर रायशुमारी की जिसमें से ज्यादातर लोग मोदी सरकार के काम से संतुष्ट दिखें। लेकिन मोदी सरकार को टैक्स रिफॉर्म और महंगाई को काबू में करने के लिए तेजी से काम करने होंगे।
सर्वे में औसत शामिल लोगों ने मोदी सरकार के 100 दिनों के कामों को 10 में से 7.8 अंक दिए हैं। वहीं 90 फीसदी लोगों ने मोदी सरकार के काम को औसत से ज्यादा बताया है, तो 10 फीसदी लोगों ने औसत बताया।
इंफ्रा पर सरकार की उपलब्धियों पर लोगों ने 10 में से 6.2 अंक दिए हैं। इंफ्रा पर मोदी सरकार की उपलब्धियों पर 48 फीसदी लोगों ने औसत से ज्यादा जबकि 45 फीसदी लोगों ने औसत बताया। हालांकि टैक्स रिफॉर्म पर सरकार को 10 में से 4.5 अंक ही मिले। टैक्स रिफॉर्म पर 72 फीसदी लोगों का मानना है कि मोदी सरकार का काम औसत रहा जबकि 4 फीसदी लोगों ने ही औसत से ज्यादा बताया।
सर्वे में एफडीआई पर मोदी सरकार को 10 में से 5.86 अंक मिले हैं। एफडीआई पर मोदी सरकार के काम को 31 फीसदी लोगों ने औसत से ज्यादा, तो 62 फीसदी लोगों ने औसत बताया। ग्रोथ के मुद्दे पर मोदी सरकार को 10 में से 6.1 अंक मिले हैं। ग्रोथ के मुद्दे पर 59 फीसदी लोगों ने मोदी सरकार के काम को औसत जबकि 38 फीसदी लोगों ने औसत से ज्यादा बताया। महंगाई काबू करने पर सरकार को 10 में से 4.97 अंक मिले। महंगाई काबू करने पर सरकार के कदमों को 14 फीसदी लोगों ने औसत से ज्यादा तो 76 फीसदी लोगों ने औसत बताया।
सर्वे के मुताबिक फैसले लेने में तेजी, अटके हुए प्रोजेक्ट की मंजूरी, मंत्रालयों को जवाबदेह बनाना, ग्रोथ की उम्मीद, मजबूत अंतरराष्ट्रीय संबंध और प्रोजेक्ट लागू करने में तेजी जैसी पहल 100 दिनों में मोदी सरकार की कामयाबी में शामिल हुई है। हालांकि पुरानी तारीख से टैक्स मामले पर सफाई नहीं आने, जीएसटी लागू करने की समयसीमा तय नहीं होने और पेटेंट, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी पर टैक्स के मौकों से चुकने जैसे मामले 100 दिनों में मोदी सरकार की नाकामी में शामिल हुए हैं।
गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन अदि गोदरेज ने उम्मीद जताई है कि मोदी सरकार में देश एक बार फिर से तेज ग्रोथ के दौर में लौटेगा। उन्होंने सरकार से 1 अप्रैल तक जीएसटी लागू करने की मांग की है। वहीं हीरो मोटो के सुनील मुंजाल ने नई सरकार के काम पर खुशी जताई है, उनके मुताबिक सरकार का फोकस एकदम स्पष्ट है, और मोदी सरकार के आने के बाद ही एक बार फिर से निवेशकों का भरोसा लौटता हुआ दिख रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजग सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी "प्रधानमंत्री जन धन" योजना का गुरूवार को शुभारंभ किया।
इस योजना के माध्यम से देश के हर परिवार को दो बैंक खाता उपलब्ध कराना सरकार का लक्ष्य है।
मोदी सरकार की इस योजना से आम लोगों को क्या लाभ होगा और कौन-कौन सी सुविधाएं मिलेंगी, उस पर एक नजर -
1- "प्रधानमंत्री जन धन" योजना के शुभारंभ के दिन देशभर में अधिक से अधिक एक करोड़ बैंक खाता खोला जाएगा।
2- आर्थिक रूप से पिछड़े जिन परिवारों के पास बैंक खाता नहीं है उनके बैंक खाते खुलवाए जाएंगे। इसमें साढे सात करोड़ परिवारों को शामिल किया जाएगा।
3- हर परिवार में कम से कम दो खाते खुलवाएं जाने की योजना है। यानी कुल 15 करोड़ खाते खोले जाने हैं।
3- इस योजना के तहत खाता खुलवाने पर व्यक्ति को 1 लाख रूपए की दुर्घटना बीमा मिलेगी।
4- खाता खुलवाने के साथ ही ग्राहक को "रूपे" डेबिट कार्ड की भी सुविधा दी जाएगी।
5- इस योजना के तहत आधार कार्ड से खुले खातों में 6 महीने बाद ग्राहक आवदेन देने पर जमा राशि से 5000 रूपए की अधिक राशि निकाल सकेगा।
6- इस योजना का पहला चरण अगस्त 2014 में खत्म होगा।
7- इस योजना का दूसरा चरण 2015 से 2018 तक चलेगा। उसमें पेंशन योजना "स्वालंबन" की भी सुविधा दी जाएगी।
8- इसके पहले चरण में बैंक सात हजार से अधिक शाखाएं खोलेंगे और 20 हजार से अधिक एटीएम लगाएंगे।
9- योजना के शुभारंभ के दिन खाता खोलने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 60 हजार से अधिक कैंप लगाए जाएंगे।
10- इस योजना को लागू करने से 50 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा।
11- इस खाते को खुलवाने के लिए आधार कार्ड या उसका नंबर, मनरेगा जॉब कार्ड, वेाटर आईडी कार्ड, राशन, ड्राइविंग लाइसेंस, बिजली या टेलफोन बिल, जन्म या विवाह प्रमाण पत्र, सरपंच का लिखा पहचान पत्र और किसी मान्यता प्राप्त संस्था का पहचान पत्र जरूरी है।
12 सरकार खाता खुलवाने के बाद लक्षित लोगों को ही सब्सिडी देने पर विचार कर सके गी। इससे आम आदमी को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी और वह बचत भी करेगा, जिससे सरकार को फायदा मिलेगा।
13- इस योजना में बिना किसी रूपए जमा किए बैंक खाते खोले जाएंगे यानी जीरो बैलेंस पर खाते खुलेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार की पहली फ्लैगशिप योजना ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ का शुभारंभ करते हुए कहा कि देश में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को पाटने के लिए ‘आर्थिक छुआछूत’ को खत्म करना होगा और इस योजना का यही लक्ष्य है। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में इस योजना की घोषणा करने वाले मोदी ने विज्ञान भवन में इसका औपचारिक रूप से शुभारंभ किया। इस अवसर पर देश भर में डेढ़ करोड़ लोगों के खाते खोले गए जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इसके पहले चरण के तहत अगले साल 15 अगस्त तक साढे सात करोड़ खाते खोलने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन प्रधानमंत्री ने कहा कि इस लक्ष्य को अगली 26 जनवरी तक पूरा किया जाएगा।
इस मौके पर मोदी ने कहा, ‘आजादी के इतने साल बाद, जो देश गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है, वहां गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अर्थव्यवस्था सबसे महत्वपूर्ण इकाई है, और उससे ही वह गरीब अछूत रह जाता है। इस शब्द का प्रयोग अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन मेरा मन कहता है कि मैं कहूं कि यह फाइनैंसियल अनटचबिलिटी (आर्थिक छुआछूत) है। देश के 40 फीसदी लोग भारत के अर्थव्यवस्था के हकदार नहीं बन पाते और उसके लाभार्थी नहीं बन पाते तो हम गरीबी को मिटाने में कैसे सफल हो सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘‘महात्मा गांधी ने सामाजिक छुआछूत को मिटाने का प्रयास किया। अगर हमें गरीबी से मुक्ति पानी है तो फानैंसियल अनटचबिलिटी से भी मुक्ति पानी होगी। हर व्यक्ति को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ना होगा। उसी के तहत इस अभियान को पूरी ताकत के साथ उठाया है।’
जनधन योजना के तहत खाता खोलने के लिए किसी तरह की न्यूनतम राशि की जरूरत नहीं होगी और खाताधारक को ‘रूपे’ डेबिट कार्ड मिलेगा। साथ ही एक लाख रूपये का अकस्मात दुर्घटना बीमा और 30,000 रूपये का जीवन बीमा मिलेगा। बाद में खाताधारकों को 5,000 रूपये तक की ओवरड्राफ्ट सुविधा मिलेगी। इस योजना की शुरूआत के साथ ही देश भर में 77,000 स्थानों पर खाते खेलने का काम हुआ जिसमें 20 मुख्यमंत्रियों, कई केंद्रीय मंत्रियों तथा अधिकारियों ने हिस्सा लिया। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने पुणे, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने चेन्नई, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भोपाल, गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनउ और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सूरत से इसका शुभारंभ किया। देश में इससे पहले भारत सरकार की ओर से इतने व्यापक पैमाने पर किसी कार्यक्रम की शुरूआत नहीं की गई थी। मोदी ने देश में 45 साल पहले हुए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का जिक्र करते हुए कहा कि इसका मकसद गरीबों को लाभ पहुंचाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
उन्होंने कहा, ‘आप कल्पना कर सकते हैं जब 1969 में जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया तो कैसे कैसे सपने बोए गए थे। बैंकों का राष्ट्रीयकरण गरीबों के लिए होता है यह पूरे देश के गले उतार दिया गया था। लेकिन आजादी के 68 साल बाद भी देश के 68 फीसदी लोगों का अर्थव्यवस्था के इस हिस्से से कोई संबंध नहीं है।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ऐसा लगता है जिस मकसद से इस कार्य का आरंभ हुआ वह वहीं का वहीं रह गया। मैं मानता हूं कि जब कोई व्यक्ति खाता खोलता है तो यह उसके अर्थव्यस्था की मुख्यधारा से जुड़ने का पहला कदम बन जाता है। आज जो डेढ़ करोड़ व्यक्ति या परिवार जुड़े हैं वो अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में पहला कदम रख रहे हैं। यह अर्थव्यस्था को गति देने की दिशा में महत्वपूर्ण सफलता है। ’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि आज की सफलता आगे नहीं रूकने वाली है। शुरू में वित्त मंत्री जी (अरूण जेटली) कहते थे कि इसे 15 अगस्त तक पूरा करना है। मैंने कहा कि 15 अगस्त, 2015 का इंतजार क्यों करें। मैं वित्त विभाग, बैंकिंग क्षेत्र का आभारी हूं। उन्होंने यह बीड़ा उठा लिया है कि वो 26 जनवरी तक ये काम पूरा करेंगे।’ ‘रूपे’ डेबिट कार्ड का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘दुनिया के जो पापुलर वीजा कार्ड वगैरह हैं उससे हम परिचित हैं। क्या हम लोगों का यह इरादा नहीं रखना चाहिए कि हमारा रूपे कार्ड दुनिया के किसी भी देश में चल सके। क्या हमारी इतनी ताकत नहीं होनी चाहिए। इतनी विश्वसनीयता होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए।’
मोदी ने कहा, ‘जैसे अमीर लोग रेस्तरां में खाना खाने के बाद कार्ड से पैसे देते हैं उसी तरह मेरा गरीब भी कार्ड से डेबिट करवाएगा। जो सब्जी बेचता होगा वो भी। अमीर और गरीब के बीच खाई भरने का कितना बड़ा कदम है। आज जब गरीब आदमी के हाथ में मोबाइल होता है तो वो भी अपने आपको दूसरों के बराबर समझता है। अब यह होगा कि उसके पास भी कार्ड और मेरे पास भी कार्ड है। इस मिजाज से काम करेगा। इससे एक मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आता है।’ उन्होंने ‘आज हम एक विशेष योजना जोड़ रहे हैं। 26 जनवरी तक जो लोग अपने खाते खुलवाएंगे उन्हें एक लाख रूपये के अकस्मात बीमा के उपरांत 30 हजार रूपये का जीवन बीमा भी मिलेगा। इसमें ये डेढ़ करोड़ लोग भी समाहित होंगे। 30 हजार रूपये की यह व्यवस्था किसी भी गरीब और उसके परिवार के काम आएगी।’ मोदी ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि यहीं से गरीबों की जिंदगी में सूर्योदय का आरंभ हो रहा है। उम्मीद करता हूं कि हम 26 जनवरी तक इस लक्ष्य को हासिल करें और देश को आर्थिक छूआछूत के माहौल से मुक्त कराएं। ब्याज से आत्महत्या की ओर जा रहे परिवार को भी बचा लें।’
एक बैंक खाता खुल जाने के बाद हर परिवार को बैंकिंग और कर्ज की सुविधाएं सुलभ हो जाएंगी। इससे उन्हें साहूकारों के चंगुल से निकलने, आपातकालीन जरूरतों के चलते पैदा होने वाले वित्तीय संकटों से खुद को दूर रखने और तरह-तरह के वित्तीय उत्पादों से लाभान्वित होने का मौका मिलेगा। प्रधानमंत्री जन धन योजना की खास बातें निम्नलिखित हैं --
-यह मिशन दो चरणों में लागू होगा।
-पहला चरण 15 अगस्त 2014 से 14 अगस्त 2015 तक होगा।
-दूसरा चरण 15 अगस्त 2015 से 14 अगस्त 2018 तक होगा।
-पूरे देश में सभी परिवारों को उचित दूरी के अंदर किसी बैंक की शाखा या निर्धारित प्वाइंट 'बिजनेस कॉरस्पोंडेंट' के माध्यम से बैंकिंग सुविधाओं की वैश्विक पहुंच उपलब्ध कराना।
-सभी परिवारों को एक लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर।
- लोगों को माइक्रो-बीमा उपलब्ध कराना।
- बिजनेस कॉरस्पोंडेंट (बीसी) के माध्यम से स्वाबलंबन जैसी गैर-संगठित क्षेत्र पेंशन योजनाएं शुरू करना।
-शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों को कवर किया जाएगा।
-हर एकाउंट के लिए पांच हजार का ओवरड्राफ्ट
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ का जिले में शुभारंभ करते हुए कहा कि वित्तीय समावेशन की इस महत्वाकांक्षी योजना से विशेषकर महिलाओं में आर्थिक सुरक्षा का भाव बढ़ेगा और उनका स्वाभिमान जागृत होगा।
सुमित्रा ने ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ के शुभारंभ समारोह में कहा, ‘प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू की गयी इस अभिनव योजना से महिलाओं में आर्थिक सुरक्षा की भावना मजबूत होगी और उनका स्वाभिमान जागेगा। यह योजना महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में अहम कदम साबित होगी।’ उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री जन-धन योजना’ से गरीब तबके के नागरिकों में बचत की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा और उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। इस योजना के क्रियान्वयन से बैंक और जनता के बीच की दूरी कम होगी।
शुभारंभ समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस योजना के शुभारंभ अवसर पर दिल्ली में दिये भाषण का सीधा प्रसारण भी दिखाया गया। कार्यक्रम में कुछ नये बैंक खाताधारकों को उनके खाते की पासबुक प्रतीक के रूप में वितरित की गयी।
Aug 29 2014 : The Times of India (Ahmedabad)
Big bang start: Record 1.5cr accounts opened in a day
New Delhi
TIMES NEWS NETWORK
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Govt Kicks Off Mega Financial Inclusion Plan
Prime Minister Narendra Modi on Thursday launched one of the biggest financial inclusion programmes calling for an end to “financial untouchability“ and urged banks to connect every person across the country .
Spreading the banking net wide is one of the key policy focus areas of the Modi administration and the launch of the scheme within 100 days of the government signals its commitment to take on the challenge of executing mega programmes.
The Jan Dhan Yojana, the massive financial inclusion drive, aims to open 7.5 crore bank accounts and provide banking facility to the vast segment of the population which still remains cut off from the financial system. Under the scheme, a person opening an account will get a Rupay debit card, a Rs 1 lakh accident insurance policy as well as a Rs 30,000 life insurance cover.
The facility of an overdraft would be added to the accounts after keeping a watch on the credit history and operation of the accounts for six months.The government had to defer the facility as banks had expressed concern over the move.
“If Mahatma Gandhi worked to remove social untouchability , if we want to get rid of poverty , then we have to first get rid of financial untouchability ,“ Modi said in his extempore speech which drew loud applause from the audience. “We have to connect every person with the financial system. And for that this programme has been given impetus,“ he said, adding, “when a bank account is opened, it's a step towards joining economic mainstream.“
Speaking in his trademark style, Modi took the opportunity to drive home broader message behind the programme to fight poverty . Using anecdotes from his life, the PM highlighted the importance of savings, financial discipline, shoring up governance and managing big ticket government programmes.
Minimum pension of Rs 1,000 under EPFO
The Centre has decided to implement two crucial decisions--minimum monthly pension of Rs 1,000 and a higher wage ceiling of Rs 15,000 for social security schemes run by retirement fund manager EPFO -from September 1. P 7 Cabinet ministers and chief ministers fanned out across the country on Thursday to launch the Jan Dhan Yojana, the massive financial inclusion drive, simultaneously from 600 locations. More than 77,000 camps were set up by banks to open accounts and finance minister Arun Jaitley announced that the government will achieve the target of opening 7.5 crore accounts before January 26, 2015, well ahead of the earlier schedule of August 15, 2015.
The PM said the nationwide success of the enrolment drive on Thursday would give confidence not just to the officials of the finance ministry and the banking sector, but also to those across the government, that they can achieve goals they set for themselves. “Never before would insurance companies have issued 1.5 crore accident insurance policies in a single day .Never before in economic history would 1.5 crore bank accounts have been opened on a single day,“ Modi said. For full report, log on http:www.timesofindia.com
Aug 29 2014 : The Economic Times (Mumbai)
FREEING UP SERVICE DELIVERY FROM THE HOLD OF LOWER BUREAUCRACY - PM Modi Plans Digital Cloud for Every Indian
Nistula Hebbar
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New Delhi:
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Prime Minister Narendra Modi's next big push to free up service delivery from the hold of the lower bureaucracy will be in the form of a `digital cloud' for every Indian. Certificates issued by the government -education, residential, medical records, birth certificates etc -are to be stored in individual `digital lockers' and a communication protocol established for government departments to access them without physically having to see the hard copy .
Information and technology secretary Ram Sewak Sharma, who is overseeing the ambitious MyGov.in programme of the government, told ET that this was one of the ideas Modi had frequently flagged as something that would resonate with all Indians.
“The Prime Minister was very clear that he didn't want copies of certificates issued by the government itself to be carried around by people to government offices for various services.For example, if a student is applying for a government college and has studied in a government-aided school, his birth certificate, identity details and educational certificates, school-leaving details et al should be accessible by organisations where he is applying. Similarly for medical records,“ he said.
The first step in this endeavour is floating the idea on the MyGov.in portal, where suggestions for working out a “communication protocol“ or what is called an applications programming interface (API) will be solicited. “There is a vast resource of talent out there which we are engaging with now,“ Sharma said.
Top sources in the government confirmed that the decision to take the programme to the public through the MyGov.in interface along with inviting suggestions for what should happen to the Planning Commission was part of Modi's effort to liberate policy formulation from what's referred to as the `India International Centre' clique. “This is very much what he did during the election campaign in terms of sourcing new ideas and suggestions, and going with it,“ said a source in the government.
Sharma terms MyGov.in as on its way to being the “world's largest platform in citizen engagement in policy making.“ Others in the government said that it kicked off on May 16, the day the BJP registered its massive win. “Every message of congratulations was responded to with a link, a form which solicited your areas of interest and skill sets, the idea, even then was to go off the Beltway , as Barack Obama put it, and source ideas from people with talent and qualifications but who, for professional reasons, are outside of the policy ecosystem,“ said a source.
As of now, more than 2 lakh people have registered on the portal. Two tasks -designing the Independence Day e-greeting to be issued by the government and the logo of the finance ministry -have already been completed. Ideas for Digital India have received the maximum number of suggestions, followed by Clean India and job creation (see box). “As of now a small team from the National Informatics Centre is manually sifting through the suggestions, but we are looking at a more man-machine hybrid sifting process,“ added Sharma.
Aug 29 2014 : The Economic Times (Mumbai)
Sebi, Exchanges to Tighten Grip on Speculative Stocks
Palak Shah
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Mumbai
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May launch new group T+ with higher margin norms & lower circuits to curb manipulation
The capital market regulator and stock exchanges are planning to tighten their grip over small-cap and penny stocks that are susceptible to manipulation. The Securities and Exchange Board of India and the bourses may introduce a new segment called T+ Group, under which margin requirements would be steep and circuit filters would be lower.
At present, stock exchanges try to prevent manipulation by transferring them to the trade-to-trade segment or T Group. In this segment, traders have to take delivery of the shares they buy, while the daily maximum tradable limit is 5% on either side.
Exchanges shift stocks to the T Group when there is speculation and unusual movement on the back of higher-than-average volumes. These requirements result in a fall in unnatural activity in such shares. The plan to introduce a new segment comes on the heels of reports of manipulation in stock prices during inclusion into or exclusion from the T Group.
The T+ Group would include shares that have been in the T Group for over three months and whose price-to-earnings (PE) ratio is less than 250 and book value is less than 30 times, said a source famil iar with the matter. “Exchanges have got complaints that there is still a lot of manipulation despite stocks being shifted to the T Group. So, they felt there is a need for a new group,“ said a source in the know.
Under the T+ Group, margin requirement of 500% and 100% will be introduced on sell and buy transactions respectively .Funds and shares would be released by the clearing corporation of the exchange only after a month, while the circuit filter would be even lesser than 5%. It has also been proposed that at the time of review, the companies having a PE greater than 50 times or price-to-book greater than 10 times, will be eligible for moving out of T+ Group to T Group.
Earlier this month, bourses moved almost 550 stocks out of the T Group after they were convinced that speculation has receded.The T Group was introduced shortly after the Ketan Parekh scam in 2001 but the detailed norms of how, when and why shares would be put under surveillance were not disclosed until November 2010.
Harshad Mehta & Ketan Parekh Scam
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Harshad Mehta: the high-profile stockbroker
Harshad Shantilal Mehta (1954-2002) was an Indian stockbroker who grabbed headlines for the notorious BSE security scam of 1992. Born in a lower middle-class Gujarati Jain family, Mehta spent his early childhood in Mumbai where his father was a small-time businessman. The family relocated to Raipur in Chhattisgarh after doctors advised Mehta’s father to shift to a drier place on account of his health.
Transition from an ordinary broker to ‘Big Bull’
Mehta studied in Holy Cross Higher Secondary School, Byron Bazar, Raipur. He quit his job at The New India Assurance Company in 1980 and sought a new one with BSE-affiliated stockbroker P. Ambalal before going on to become a jobber on the BSE for stockbroker P.D. Shukla. In 1981, Mehta became a sub-broker for stockbrokers J.L. Shah and Nandalal Sheth. Having gained considerable experience as a sub-broker, he teamed up with his brother Sudhir to float a new venture called Grow More Research and Asset Management Company Limited. When the BSE auctioned a broker’s card, the Mehta duo’s company bid for it with the financial support of J.L. Shah and Nandalal Sheth. Another name that is rumored to have a crucial hand in the scam was Nimesh Shah. However, Shah could keep a safe distance from the accusations and is currently known to be a heavy player in the Indian stock market.
By year 1990, Mehta became a prominent name in the Indian stock market. He started buying shares heavily. The shares of India's foremost cement manufacturer Associated Cement Company (ACC) attracted him the most and the scamster is known to have taken the price of the cement company from 200 to 9000 (approx.) in the stock market – implying a 4400% rise in its price. It is believed that It was later revealed that Mehta used the replacement cost theory to explain the reason for the high-level bidding. The replacement cost theory basically states that older companies should be valued on the basis of the amount of money that would be needed to create another similar company. By the latter half of 1991, Mehta had come to be called the ‘Big Bull’ as people credited him with having initiated the Bull Run.
The making of the 1992 security scam
Mehta, along with his associates, was accused of manipulating the rise in the Bombay Stock Exchange (BSE) in 1992. They took advantage of the many loopholes in the banking system and drained off funds from inter-bank transactions. Subsequently, they bought huge amounts of shares at a premium across many industry verticals causing the Sensex to rise dramatically. However, this was not to continue. The exposure of Mehta's modus operandi led banks to start demanding their money back, causing the Sensex to plunge almost dramatically as it had risen. Mehta was later charged with 72 criminal offences while over 600 civil action suits were filed against him. Significantly, the Harshad Mehta security scandal also became the flavor of Bollywood with Sameer Hanchate's film Gafla.
The 1992 security scam and its exposure
Mehta's illicit methods of manipulating the stock market were exposed on April 23, 1992, when veteran columnist Sucheta Dalal wrote an article in India's national daily The Times of India. Dalal’s column read: “The crucial mechanism through which the scam was effected was the ready forward (RF) deal. The RF is in essence a secured short-term (typically 15-day) loan from one bank to another. Crudely put, the bank lends against government securities just as a pawnbroker lends against jewelers. The borrowing bank actually sells the securities to the lending bank and buys them back at the end of the period of the loan, typically at a slightly higher price.” In a ready-forward deal, a broker usually brings together two banks for which he is paid a commission. Although the broker does not handle the cash or the securities, this was not the case in the prelude to the Mehta scam. Mehta and his associates used this RF deal with great success to channel money through banks.
The securities and payments were delivered through the broker in the settlement process. The broker functioned as an intermediary who received the securities from the seller and handed them over to the buyer; and he received the check from the buyer and subsequently made the payment to the seller. Such a settlement process meant that both the buyer and the seller may not even know the identity of the other as only the broker knew both of them. The brokers could manage this method expertly as they had already become market makers by then and had started trading on their account. They pretended to be undertaking the transactions on behalf of a bank to maintain a façade of legality.
Mehta and his associates used another instrument called the bank receipt (BR). Securities were not traded in reality in a ready forward deal but the seller gave the buyer a BR which is a confirmation of the sale of securities. A BR is a receipt for the money received by the selling bank and pledges to deliver the securities to the buyer. In the meantime, the securities are held in the seller’s trust by the buyer.
Complicit lenders
Armed with these schemes, all Mehta needed now were banks which would readily issue fake BRs, or ones without the guarantee of any government securities. His search ended when he found that the Bank of Karad (BOK), Mumbai and the Metropolitan Co-operative Bank (MCB) two small and little known lenders, were willing to comply. The two banks agreed to issue BRs as and when required. Once they issued the fake BRs, Mehta passed them on to other banks who in turn lent him money, under the false assumption that they were lending against government securities. Mehta used the money thus secured to enhance share prices in the stock market. The shares were then sold for significant profits and the BR retired when it was time to return the money to the bank.
Outcome
Mehta continued with his manipulative tactics, triggering a massive rise in the prices of stock and thereby creating a feel-good market trajectory. However, upon the exposure of the scam, several banks found they were holding BRs of no value at all. Mehta had by then swindled the banks of a staggering Rs 4,000 crore. The scam came under scathing criticism in the Indian Parliament, leading to Mehta's eventual imprisonment. The scam’s exposure led to the death of the Chairman of the Vijaya Bank who reportedly committed suicide over the exposure. He was guilty of having issued checks to Mehta and knew the backlash of accusations he would have to face from the public.
A few years later, Mehta made a brief comeback as a stock market expert and started providing investment tips on his website and in a weekly newspaper column. He worked with the owners of a few companies and recommended the shares of those companies only. When he died in 2002, Mehta had been convicted in only one of the 27 cases filed against him. What attracted the taxman’s attention was Mehta's advance tax payment of Rs 28-crore for the financial year 1991-92. Another eye-catcher was his extravagant lifestyle.
I-T, PSBs recover dues nine years after Mehta's death
Nine years after Harsad Mehta died, the I-T department and public sector banks (PSBs) have successfully recovered a significant portion of their claims emerging out of the securities scam from his liquidated assets. The Supreme Court directed the Custodian of the attached properties and assets of the Harshad Mehta Group (HMG) in March 2011 to make payments of Rs1,995.66-crore to the I-T department and Rs 199.25-crore to the State Bank of India (SBI), making the two institutions two of the earliest claimants to recover their dues.
While the SBI’s total principal amount claim of Rs 1,000-crore have been largely settled, financial institutions have also received some money. However, Standard Chartered Bank, which had claimed Rs 500-crore, has yet to recover its dues it was one of the late claimants. Although the total claim over the HMG is of more than Rs 20,000-crore, the apex court has said that for the present, it would only consider claims towards the principal amount.
Who is Ketan Parekh
Ketan Parekh is a former stockbroker based in Mumbai who was convicted in 2008 for being involved in engineering the technology stocks scam in India’s stock market in 1999-2001. A chartered accountant by training, Parekh comes from a family of brokers and is currently serving a period of disqualification from trading in the Indian bourses till 2017.
Ketan Parekh has been accorded with sobriquets such as the Pentafour Bull and the One Man Army by the country’s national business newspapers, while the market simply refers to him as ‘KP’ or associates him with his firm NH Securities. Parekh is known to have no reluctance in meeting the press. He is also known to have razor-sharp forecasts on market developments.
What distinguishes Ketan Parekh from the 'Big Bull' late Harshad Mehta
The two have been compared by people to have operated their scams using similar means and that their backgrounds were similar as well. But the differences are very conspicuous.
At the outset, Mehta came from a lower middle-class and modest background, while KP’s family has been engaged as stockbrokers for a significant time. He is also related to many prominent brokers. Secondly, when Mehta was operating, the market was still a closed one and was just beginning to liberalize. It was revealed later that Mehta operated using the money of other people as his last recourse. Further, Mehta is known to have resorted to aggressive publicity campaigns whereas KP operates almost clandestinely. The latter has also been successful at creating stories and selling them aggressively to institutional investors.
The Midas touch
Parekh attracted the attention of market players and they kept track of every move of Parekh as everything he was laying his hands on was virtually turning into gold. But the Pentafour Bull still kept a low profile, except when he hosted a millennium party that was attended by politicians, business magnates and film stars. And by 1999-2000, as the technology industry began embracing the entire world, India’s stock markets started showing signs of hyper-activity as well and this was when KP struck.
Almost everyone, from investment firms which were mostly controlled by promoters of listed companies to foreign corporate bodies and cooperative banks were eager to entrust their money with Parekh, which, he in turn used to inflate stock prices by making his interest obvious. Almost immediately, stocks of firms such as Visual soft witnessed meteoric rises, from Rs 625 to Rs 8,448 per unit, while those of Sonata Software were up from Rs 90 to Rs 2,150. However, this fraudulent scheme did not end with price rigging. The rigged-up stocks needed dumping onto someone in the end and KP used financial institutions such as the UTI for this.
When companies seek to raise money from the stock market, they take the help of brokers to back them in raising share prices. KP formed a network of brokers from smaller bourses such as the Allahabad Stock Exchange and the Calcutta Stock Exchange. He also used ‘BENAMI’ or share purchase in the names of poor people living in Mumbai’s shanties. KP also had large borrowings from Global Trust Bank and he rigged up its shares in order to profit significantly at the time of its merger with UTI Bank. While the actual amount that came into Parekh's kitty as loan from Global Trust Bank was reportedly Rs 250 crore, its chairman Ramesh Gelli is known to have repeatedly asserted that Parekh had received less than Rs 100 crore in keeping with RBI norms.
Parekh and his associates also secured Rs 1,000-crore as loan from the Madhavpura Mercantile Co-operative Bank despite RBI regulations that the maximum amount a broker could get as a loan was Rs15-crore. Hence, it was clear that KP’s mode of operation was to inflate shares of select companies in collusion with their promoters.
Lady luck disfavours Parekh!
Notably, a day after the presentation of the Union Budget in February 2001, Parekh appeared to have run out of luck. A team of traders, Shankar Sharma, Anand Rathi and Nirmal Bang, known as the bear cartel, placed sell orders on KP’s favorite stocks, the so called K-10 stocks, and crushed their inflated prices. Even the borrowings of KP put together could not rescue his scrips. The Global Trust Bank and the Madhavpura Cooperative were driven to bankruptcy as the money they had lent Parekh went into an abyss with his reportedly favourite K-10 stocks.
The exposure of the dupe
As with the Harshad Mehta scam, Ketan Parekh's fraudulent practices were first exposed by veteran columnist Sucheta Dalal. Sucheta's column read, “It was yet another black Friday for the capital market. The BSE sensitive index crashed another 147 points and the Central Bureau of Investigation (CBI) finally ended Ketan Parekh’s two-year dominance of the market by arresting him in connection with the Bank of India (BoI) complaint. Many people in the market are not surprised with Parekh’s downfall because his speculative operations were too large, he was keeping dubious company, and he was dealing in too many shady scrips.”
When the prices of select shares started constantly rising, innocent investors who had bought such shares believing that the market was genuine were about to stare at huge losses. Soon after the scam was exposed, the prices of these stocks came down to the fraction of the values at which they had been bought. When the scam did actually burst, the rigged shares lost their values so heavily that quite a few people lost their savings. Some banks including Bank of India also lost significant amounts of money.
Dalal goes on to state that Parekh's scheme was not visible to a layman given the positive deflection that media had made him a hero while some of the biggest national dailies had even quoted him profusely on that year’s Union Budget. Dalal added that KP’s arrest and the uncanny similarity of his operations to the Harshad Mehta securities scam of 1992 vindicated the miserable inadequacy of the country’s regulatory system. The Securities Exchange Board of India (SEBI) and the Reserve Bank of India (RBI) had remained complacent when the stock bubble was created during the latter half of 1999 and through 2000 while it had not bothered to take any action through 2001 when it was ready to burst.
SEBI’s damage control measures
SEBI investigations into Parekh's money laundering affairs revealed that KP had used bank and promoter funds to manipulate the markets. It then proceeded with plugging the many loopholes in the market. The trading cycle was cut short from a week to a day. The carry-forward system in stock trading called ‘BADLA’ was banned and operators could trade using this method. SEBI formally introduced forward trading in the form of exchange-traded derivatives to ensure
a well-regulated futures market. It also did away with broker control over stock exchanges. In KP’s case, the SEBI found prima facie evidence that he had rigged prices in the scrips of Global Trust Bank, Zee Telefilms, HFCL, Lupin Laboratories, Aftek Infosys and Padmini Polymer.
Furthermore, the information provided by the RBI to the Joint Parliamentary Committee (JPC) during the investigation revealed that financial institutions such as Industrial Development Bank of India (IDBI Bank) and Industrial Finance Corporation of India (IFCI) had given loans of Rs 1,400 crore to companies known to be close to Parekh.
Criticism of SEBI
Some of the regulatory actions SEBI undertook came under scathing criticism from some quarters who accused it of still being clueless about its supervisory duties. Observers said the regulator still continued believing that its only priority was to prevent a fall in stock prices.
It was rumored that SEBI banned short sales and increased margins creating a virtual cash market in the process and squeezed turnover to a sixth of the normal level. It also fired all broker directors from the Bombay Stock Exchange and Calcutta Stock Exchange and declared the completion of three controversial settlements of the Kolkata bourse by retaining a sizeable proportion of the payout of operators who had allegedly tied-up for collusive deals. Furthermore, SEBI rounded up the bear operators and launched an inquiry into their alleged short sales.
Stringent regulatory measures follow Parekh episode
Parekh's fraudulent operations motivated the authorities to take necessary steps that have made made India's stock markets relatively safer in present times. He can also be credited for having forced indolent policy-makers to bring about reforms in the financial system.
An active trader
According to an Intelligence Bureau report, though disbarred from trading in the country’s bourses until 2017, is still operating in the markets through conduits, vindicating Dalal Street’s belief that he has never left the market. The report says that as recently as December 2010, KP has been rallying behind different stocks and placing some of them at rigged up prices to large institutions such as the LIC. He is operating through little-known investment firms, market operators and a following of loyal brokers. KP, who was at the forefront during the technology shares-led bull run in 1999-2000, is apparently using front entities such as Orchid Chemicals , GMR Infrastructure, Cairn India, Deccan Chronicles Holdings, Reliance Industries, Punj Lloyd, Indiabulls Real Estate, Pipavav Shipyard, Amtek Auto, Hindustan Oil Exploration, UCO Bank, State Bank of India, EIH and JSW Steel, among others, to trade in shares.
The report further states that KP has been instrumental in inflating the share price of SKS Microfinance from Rs850 to Rs1,100 following its listing in August 2010. He has also rigged IPOs of little known companies by buying out 50% of the issue in collusion with his Kolkata-based associates. KP and his associates have also acquired very large positions in petroleum companies such as ONGC and HPCL, according to the report. An IB official has further said that KP and his team have revealed to their close associates that they have insider information on the government's proposal to decontrol the sale of gas which is expected to raise profit margins of these companies by about 20%.
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Is the U.S. stock market rigged?
Steve Kroft reports on a new book from Michael Lewis that reveals how some high-speed traders work the stock market to their advantage
The following script is from "Rigged" which aired on March 30, 2014. Steve Kroft is the correspondent. Draggan Mihailovich, producer.
This month marks the fifth anniversary of the current bull market on Wall Street, making it one of the longest and strongest in history. Yet U.S. stock ownership is at a record low and less than half of Americans trust banks and financial services. And in the last two weeks, the New York attorney general and the Commodities Futures Trading Commission in Washington have both launched investigations into high-frequency computerized stock trading that now controls more than half the market.
The probes were announced just ahead of a much anticipated book on the subject by best-selling author Michael Lewis called "Flash Boys." In it, Lewis argues that the stock market is now rigged to benefit a group of insiders that have made tens of billions of dollars exploiting computerized trading. The story is told through an unlikely cast of characters who figured out what was going on and have devised a plan to correct it. It could have a huge impact on Wall Street. Tonight, Michael Lewis talks about it for the first time.
Steve Kroft: What's the headline here?
Michael Lewis: Stock market's rigged. The United States stock market, the most iconic market in global capitalism is rigged.
LEWIS EXPLAINS HOW THE STOCK MARKET IS RIGGED
Steve Kroft: By whom?
Michael Lewis: By a combination of these stock exchanges, the big Wall Street banks and high-frequency traders.
Steve Kroft: Who are the victims?
Michael Lewis: Everybody who has an investment in the stock market.
"Stock market's rigged. The United States stock market, the most iconic market in global capitalism is rigged."
Michael Lewis is not talking about the stock market that you see on television every day. That ceased to be the center of U.S. financial activity years ago, and exists today mostly as a photo op. This is the stock market that Lewis is talking about; the one where most of the trades take place now, inside hundreds of thousands of these black boxes located at more than 60 public and private exchanges, where billions of dollars in stock change hands every day with little or no public documentation. The trades are being made by thousands of robot computers, programmed to buy and sell every stock on the market at speeds 100 times faster than you can blink an eye. A system so complex, it's all but invisible.
Michael Lewis: If it wasn't complicated, it wouldn't be allowed to happen. The complexity disguises what is happening. If it's so complicated you can't understand it, then you can't question it.
Steve Kroft: And this is all being done by computers?
Michael Lewis: All being done by computers. It's too fast to be done by humans. Humans have been completely removed from the marketplace.
"Fast" is the operative word. Machines with secret programs are now trading stocks in tiny fractions of a second, way too fast to be seen or recorded on a stock ticker or computer screen. Faster than the market itself. High-frequency traders, big Wall Street firms and stock exchanges have spent billions to gain an advantage of a millisecond for themselves and their customers, just to get a peek at stock market prices and orders a flash before everyone else, along with the opportunity to act on it.
Michael Lewis: The insiders are able to move faster than you. They're able to see your order and play it against other orders in ways that you don't understand. They're able to front run your order.
Steve Kroft: What do you mean front run?
LEWIS: RIGGED STOCK MARKET IS "BIGGER THAN A SCAM"
Michael Lewis: Means they're able to identify your desire to, to buy shares in Microsoft and buy 'em in front of you and sell 'em back to you at a higher price. It all happens in infinitesimally small periods of time. There's speed advantage that the faster traders have is milliseconds, some of it is fractions of milliseconds. But it''s enough for them to identify what you're gonna do and do it before you do it at your expense.
Steve Kroft: So it drives the price up.
Michael Lewis: So it drives the price up, and in turn you pay a higher price.
"If it wasn't complicated, it wouldn't be allowed to happen. The complexity disguises what is happening. If it's so complicated you can't understand it, then you can't question it."
Michael Lewis is not the first person to allege the stock market is rigged or that high-frequency traders are front running the market but he was the first to find Brad Katsuyama, who is the first to figure out how it was being done.
Michael Lewis: A very unlikely character, a trader at the Royal Bank of Canada, a young Canadian man named Brad Katsuyama realized that the market that he thought he knew had changed. The market seemed to be willing to sell a stock. But the minute he went to buy it, someone else bought it, the stock went up. It was as if someone knew what he was doing before he did it.
RBC trading floor in New York City
WALLSTREETANDTECH.COM
Back in 2008, Katsuyama was 30 years old and running the Royal Bank of Canada's stock desk in New York with 25 traders working for him. Every time one of them tried to buy a large block of stock for a client their order would only be partially filled and the price of the stock would go up. It kept happening over and over again.
Brad Katsuyama: The best analogy I think is that your family wants to go to a concert. You go onto StubHub, there's four tickets all next to each other for 20 bucks each. You put in an order to buy four tickets, 20 bucks each and it says, "You've bought two tickets at 20 bucks each." And you go back and those same two seats that are sitting there have now gone up to $25.
Steve Kroft: What'd you think the problem was?
Brad Katsuyama: I had no idea. I couldn't get answers.
At first, Katsuyama thought the technology at RBC was slow, until he went to Stamford, Conn., and paid a visit to one of the largest hedge funds in the world.
Brad Katsuyama: The same thing that I was experiencing as a trader, one of the most sophisticated hedge funds in the world was also having the same problem. Then the light bulb goes off. You say, "Holy cow, this is, this is a huge problem."
Steve Kroft: You were determined to get to the bottom of it?
Brad Katsuyama: Yeah.
Steve Kroft: Why?
Brad Katsuyama: 'Cause it just didn't feel right. It didn't feel right that people who are investing on behalf of pension funds and retirement funds are getting bait and switched every single day in the market.
Katsuyama suspected that the problem had something to do with plumbing, the way the trades were routed through fiber optic cables from his trading desk in lower Manhattan to the 13 public exchanges in northern New Jersey. But no one would tell him exactly what happened to his orders once he hit the buy or sell button. So he put together a team of technical experts, traders and most importantly, an Irish telecom guy named Ronan Ryan, who was an expert on high-speed fiber optic networks.
Ronan Ryan: I knew nothing about trading until my first day at RBC when I sat in that three hour meeting on algorithms. I called my wife afterwards. And I'm like, "Holy crap, I have no idea what they just said."
Ryan had done work for the high-frequency traders. He knew what they were building and he knew about the colossal amounts of money they were prepared to spend. He told Brad about a company called Spread Networks that had laid a high-speed fiber optic cable from the futures market in Chicago to the exchanges in New Jersey. They spent $300 million just to shave three milliseconds off the fastest route and were leasing access to high-frequency traders at $10 million a pop.
Michael Lewis: From Brad Katsuyama's point of view, when he heard they were willing to spend that kind of money for milliseconds it told him the sums involved were vast. That was one of the first questions he said he had. He says, "All right, I'm getting ripped off. Everybody's getting ripped off. But what does it add up to?" And I think when he heard the story of Spread Networks, he realized this is tens of billions of dollars we're talking about.
Ronan Ryan also knew where all the cable was buried and had detailed maps of the fastest routes from the financial district in lower Manhattan to the various stock exchanges in New Jersey, all calculated down to the millisecond.
Ronan Ryan: So I would sit there, roll out maps, and roll out this data center as a box and a line going through it. And they had no idea what I was on about. And then I'd be like, "Hey are you guys aware of where these data centers are located? Of course you're arriving there at different time intervals."
For Brad, the maps turned what had been an abstract idea into something he could actually see. The first place his orders were landing was the BATS Exchange across the river in Weehawken, N.J., and high-frequency traders were lying there in wait.
Michael Lewis: Brad realizes, "Oh my God, that's how I'm being front-runned. I'm being front-runned because my signal gets to the BATS Exchange first and they can beat me to all the, all the other exchanges."
It only took a tiny fraction of a second for Brad's trade to reach the next exchanges on the network, but the high-speed traders were able to jump in front of him, buy the same stock and drive the price up before his order arrived, producing a small profit of just one or two pennies. But it was happening to everyone's trades millions of times a day.
HOW ORDINARY INVESTORS ARE GETTING "SCREWED"
Ronan Ryan: That adds up.
Steve Kroft: You make it sound like a skim.
Ronan Ryan: What else would you call it?
Michael Lewis: One hedge fund manager said, "I was running a hedge fund that was $9 billion and that we figured that the, just our inability to, to make the trades the market said we should be able to make was costing us $300 million a year." That was $300 million a year in someone else's pocket.
Steve Kroft: Is this illegal?
Michael Lewis: No. That's the thing that's so shocking about all this. It should...
Steve Kroft: Well you used the word front running. Front running's illegal.
Michael Lewis: This form of front running is legal. It's legalized front running. It's crazy that it's legal for some people to get advance news on prices and what investors are doing. It's just nuts. Shouldn't happen.
Ronan knew the only way to beat the high-frequency traders was to take away their milliseconds advantage that allowed them to sniff out slower trades and beat them to the exchange. He had an idea how to do it.
Brad Katsuyama: And he said, "You're probably better off trying to go slower," which means send the order to the exchange located the farthest away first and send the order to the one that's located to you last. So stagger when you send them out with the goal of arriving at all places, as close to the same time as possible.
Katsuyama and his team developed software that did just that, allowing the orders of Royal Bank of Canada's customers to reach all of the exchanges at the same time, cutting the high-frequency traders out of the equation.
Brad Katsuyama: And essentially our fill rates went to 100 percent. We couldn't believe it when, when we actually figured it out.
Steve Kroft: So you beat speed by slowing it down.
Brad Katsuyama: Yeah, as crazy as that sounds.
Katsuyama and his team went out and began selling and explaining what they had discovered to the big mutual funds, pension funds and institutional investors, people who had suspicions that they were being front-run but didn't know how.
Steve Kroft: And nobody had really bothered or tried to figure this out until Brad Katsuyama came along...
Michael Lewis: It was in nobody's interest to, correct. I spoke to dozens of investors, big investors, famous investors who, who said that, "When Brad Katsuyama came into my office and laid out to me how the market was rigged, my jaw hit the floor. I mean, I knew something was wrong. I just didn't know what it was and no one had told us."
Brad Katsuyama: Part of those meetings led us to believe, "Holy cow, this is, this is really something." 'Cause some of the most sophisticated, largest asset managers in the world, this is the first time they were hearing this story.
And some of the most famous names in the American stock market heard the pitch...
LEWIS: INVESTORS, BIG AND SMALL, ARE "PREY"
Michael Lewis: The Capital Group, T. Rowe Price, Fidelity, Vanguard, I mean, it, one after another. He was in their offices. They said, "This man walked in. Why is he gonna know how the stock market operates?" And, and at the end of the hour they said, "Oh, my God, he understands."
Hedge fund titan David Einhorn of Greenlight Capital is one of the believers.
Steve Kroft: Was he able to show you how your orders were being front run?
David Einhorn: Oh yeah. They had, they, they got the marker and the white board and started drawing maps and boxes, and wires and locations. And yeah, we went through it in some detail.
Steve Kroft: Did you find it interesting?
David Einhorn: It was. It was.
Clients like Einhorn encouraged Brad and his team to do something bigger. That's when Katsuyama, a conformist even by Canadian standards, decided to do something radical. In 2012, he quit his high-paying job as head trader at RBC and went off with some of his team to start their own exchange.
Steve Kroft: You were making good money at Royal Bank of Canada?
Brad Katsuyama: Yeah, right.
Steve Kroft: Millions of dollars?
Brad Katsuyama:: Right. I guess, I guess everybody know that now? Right, yeah.
Steve Kroft: Why did you wanna go off and walk away from that job and start a stock exchange?
Brad Katsuyama: Yeah, wasn't an easy conversation to have with my wife, that's for sure. It almost felt like a sense of obligation to say, "We found a problem. It's, it's affecting millions and millions of people. People are blindly losing money they didn't even know they're entitled to. It's a hole in the bottom of the bucket.
They set out to build an exchange funded exclusively by large traditional investors. They called it IEX, the investor's exchange, and quietly launched it in October with the support of some of the biggest players on Wall Street. And it comes with built in speed bumps to eliminate the advantage of high-speed predators.
Michael Lewis: And the way they did it was they coiled 60 kilometers of fiber optic cable between themselves and the high-frequency traders computers. They call it the magic shoe box and it looks like it's got fishing line in it. But essentially, a high-frequency trader, if he tries to react on the IEX exchange, his trade goes (makes noise) for 60 kilometers until, so he's, he's in east Jesus.
Steve Kroft: So it gets there the same time as everybody else.
Michael Lewis: It gets there same time as everybody else's.
Steve Kroft: Do you think they can game you?
Ronan Ryan: I think that they'll try to game us. I think the fact, though, that we've gone and met with the majority of the biggest high-frequency firms to explain what the magic shoebox is doing and that people haven't said, "Oh that's rubbish. That won't work." We've had many ask us for a backdoor, to be honest. So that says something that it'll work.
The exchange is off to a strong start, although it is still very small with lots of powerful enemies that like the status quo and are trying to starve IEX by discouraging customers from using them. Greenlight Capital's David Einhorn is one of the investors.
Steve Kroft: Do you think IEX will survive?
David Einhorn: I think it's gonna succeed. I think it's gonna succeed in a very big way.
Just last week, IEX received a strong endorsement from Goldman Sachs, whose top executives cited it as a model for a more stable and less complicated stock market.
Brad Katsuyama: We're selling trust. We're selling transparency. And, and, and to think that trust is actually a differentiator in a service business, it's kind of a crazy thought, right?
Michael Lewis: Why is this kid, why is he able to all of a sudden sit at the center of the American stock market? And the answer is, when someone walks in the door who is actually trustworthy, he has enormous power. And this is the story, story of trying to restore trust to the financial markets.
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- Steve Kroft
- Few journalists have achieved the impact and recognition that Steve Kroft's 60 Minutes work has generated for over two decades. Kroft delivered his first report for 60 Minutes in 1989.
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