Wednesday, September 10, 2014

She was the artist with whom Nazrul began his single long play records.



दूर द्वीपवासिनी हुई फिरोजा बेगम की याद के प्रसंग में काजी नजरुल इस्लाम और लव जिहाद
पलाश विश्वास
अभी तो खिला ही नहीं हूं,महारण्य के अंधेरे में हूं अभी अकेला दिशा खोज रहा।
अभी तो खेल ही शुरु हुआ नहीं है,न दर्शक दीर्घा में कोई है,न कहीं रेफरी कोई।
वक्त लेकिन मुट्ठी बंद रेत के किले की तरह रिसने लगा है अविराम।

हिंदी में फिरोजा बेगम के निधन और उनकी गायकी संबंधी जानकारी न मिलने की वजह से अंग्रेजी और बांग्ला संदर्भ सूचनाें दे रहा हूं। हिंदी योद्धो बोद्धागण माफ करें।


After seven decades ruling the hearts of music lovers, Nazrul Sangeet legend Firoza Begum has died at the age of 84.






She passed away at Apollo Hospitals, Dhaka, around 8:30pm Tuesday under intensive care.

Khairul Anam Shakil, a Chhayanaut organiser, said, "She had been suffering from kidney complications and a heart problem. Some time ago, I learned that she has left us."

Family members and musicians Hamin and Shafin Ahmed, Firoza's sons, were present at the hospital at this time.

President Abdul Hamid and Prime Minister Sheikh Hasina have expressed their grief at her death. BNP Chairperson Khaleda Zia, Finance Minister AMA Muhith also mourned her death in statements.

Hamin Ahmed said his mother's remains would be preserved at the hospital for the night. She will be taken to her Indira Road home in the morning.

From there she will be taken to the Central Shaheed Minar at 2pm Wednesday for people to pay their respects until 4pm.

A Namaj-e-Janaza will be held in the afternoon at the Azad Mosque in Gulshan and Firoza Begum will be laid to rest at the Banani graveyard.

Firoza Begum was admitted to the hospital on Monday morning with kidney complications.

The artiste was born in Gopalganj on July 28, 1930 to the zamindars of Ratail Ghonaparha. Her father was Khan Bahadur Mohammad Ismail, mother Begum Kaokabunnesa.

At that time it was almost unthinkable for a Bengali Muslim girl to be allowed to train in music. But even before she was ten, National Poet Nazrul Islam was impressed by her vocal talent. They met when Firoza was auditioning at the HMV, at the encouragement of All India Radio's Sunil Bose.

Nazrul was then the chief trainer of HMV. Even when she was in class VI, she set her place in the hearts of Bengali audience by singing two Nazrul songs in the All India Radio. Her first record was published in 1942 from HMV when she was 12.

She was the artist with whom Nazrul began his single long play records.

In the illustrious career that followed, Firoza sang Rabindra Sangeet, "Adhunik Bangla" songs, Gazhal, Kawali and Bhajan for her audience. She performed around 300 solo concerts.

In 1949, Firoza and Talat Mahmud were the voices that inaugurated the Dhaka Shortwave Radio. She was also the first chairman of Nazrul Institute.
In 1956, Firoza married Kamal Dasgupta, who had been a composer for at least a third of the national poet's songs.

Firoza has been the winner of the Independence Day Award, among numerous other honours.

After Kamal Dasgupta passed away in 1974, she married musician Mansur Ahmed.

Firoza left behind her three sons Tahsin, Hamin and Shafin.


फिरोजा बेगम की गायकी और परंपरा पर लिखने की सोहबत मेरी नहीं रही है।बेहद बेसुरा हूं न कान है संगीत बूझने लायक और न छंद ताल राग अनुराग की तमीज है।
बचपन में घर में संगीत शिक्षक होने के बावजूद सारेगामा में मेरा मन संयमित अनुसासित न हो सका तो अब भी संगीत प्रेमी नहीं हूं किसी भी तरह।हालांकि मरी बहनें,भाई सुभाष और पत्नी सविता संगीत के रवींद्र नजरुल घरोने के सान्निध्य में हैं।

इसके बावजूद दूर द्वीप वासिनी फिरोजा के 84 साल की उम्र में चले जाने का सदमा इतना जोर का लगा है कि बिना लिखे मुक्ति भी नहीं है।

कल दिनभर शारदा फर्जीवाड़े के अपडेट्स में लगा रहा।सत्ता समीकरण,शक्ति संतुलन और भ्रष्टाचार के सौदर्यशास्त्र में मेरी कोई रुचि, जाहिर है कि नहीं है।लेकिन राजनीति और सत्ता की परत दर परत मुक्तबाजार में किस तरीके से जनविध्वंसी बारुदी सुरंगों में तब्दील है,उसकी तपिश शारदा फर्जीवाड़े के खुलासे के साथ साथ महसूस की जा सकती है।बशर्ते कि महसूस करने लायक दिलोदिमाग में खून पसीने की कमाई की फिरक्र हो।

मुक्त बाजार के तंत्र यंत्र मंत्र और न्यूनतम सरकार और विनियंत्रित बाजार में कानून,न्याय प्रणाली, प्रशासन, रिजर्व बैंक,सेबी, ईडी,आयकर विभाग की नाकोंतले उन्हीं के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष संरक्षण में दो लाख छियासी हजार एजंटों के जरिये मेहनत कश दस लाख परिवारों का सर्वस्वहरण करके जो बीस हजार करोड़ रुपये की लूट और बंदरबांट हुई है और ऐसी ही जो सौकड़ों लिस्टेड अनलिस्टेड देशी विदेशी  कंपनियां नाना प्रकार से भारतीय जनगण का रोजाना श्राद्धकर्म कर रही हैं मोक्षइंतजाम सहकारे,उसे समझने का आसान मौका उनके लिए भी है जो अर्थशास्त्र और राजनीति नहीं समझते।

आज सुबह शारदा समूह के ही एक संगीत चैनल पर एपार बांग्ला ओपार बांग्ला का साझा स्मरण का मौका था फिरोजा बेगम का।लिलि इस्लाम गीतों के जरिये तो सुतपा कविताओं के जरिए नजरुल रावींद्रिक विरासत की गंगा यमुना में बह रही थीं।किनारा तोड़तीं यह विरासत नदी मुझे भी किंचित बहने के मोड मं डाल गयी है।

वैसे साफ साफ कहना जरुरी है कि मैं कोलाहल के कवि नजरुल को जितना आत्मसात करता रहा हूं,उतना रावींद्रीिक कभी नहीं रहा।

रवींद्र के गीतांजलि से आवृत्ति के दो चार अवसरों के अलावा मेरे शिशुमन में कोई रवींद्र स्पर्श नहीं रहा है कभी,जिसमें अक्षरज्ञान के साथ ही हमेशा अग्निवीणा के तार झनझनाते रहे हैं।

अधंरे में लालटेन की रस्सी और मिट्टी तेल की गंध में कीचड़सने झोपड़ियों के मध्य हम कोलाहली कवि नजरुल के साथ अंधेरा चचीरने के अभ्यस्त रहे हैं।

हिमाद्रिशिखर हमारे स्पर्श में था आजन्म और इसलिए हिमाद्रिशिखर को चुनौती देने वाले विद्रोही के मुकाबले अंतरतम का आध्यात्म हमारे लिए कोई तात्पर्य रखे,ऐसा कोई रसायन हमारे लिए था ही नहीं चूंकि तराई के जंगल मध्ये अस्पृश्य बहिस्कृत  शरणार्थी कृषि उपनिवेशे जंगली फूल की तरह बिना महक के खिलने के संस्कार चूंकि बंगीय अभिजन विरासत के मुताबिक थी ही नहीं।

उसी काजी नजरुल इस्लाम के गीतों की पहचान,उनके गानेर पाखी के अवसान पर दिलोदिमाग से इतना मजबूर हूं कि सुर ताल छंद राग गायकी के इस मायावी संसार में अनधिकार प्रवेश कर रहा हूं।

काजी नजरुल धर्म के आर पार थे तो फीरोजा ने भी विवाह एक हिंदू कमल दासगुप्त के साथ किया था,जो अखंड बंगाल के किंवदन्ती संगीतकार है और जिन्हें इस्लामी बांग्लादेश पलक पांवड़े पर बिठाये हुए है अब भी और बंगाल में उनका नामोल्लेख फिरोजा बेगम के अवसान के बाद हो रहा है।

हम संगीते के बारे में इतने अहमक हैं कि केएल सहगल,मान्नाडे,बेगम अख्तर,नूरजहां जैसे विशिष्ट स्वरों को छोड़कर अल अलग कंठ की पहचान नहीं कर सकते।किशोर कुमार और मोहम्मद रफी तो क्या लता और आशा को अलग अलग चीन्ह नहीं सकते।हालत इतनी जटिल है कि लता और आशा की तस्वीरों को अलग करने में भी भूल हो जाती है।

लेकिन बचपन की स्मृतियों का कमाल है कि नजरुल के गीतों के मामले में फिरोजा बेगम से लेकर लिलि इस्लाम और रिजवाना वन्या तक को स्पर्श कर लेता हूं।

नजरुल संगीते आसीना दूरद्वीपवासिनी होने के अलावा फिरोजा बेगम उस वक्त को याद करने का बहाना है,जहां लव जिहाद का उल्लेख नहीं हुआ कभी।

सही मायने में नजरुल उस संस्कृति के वाहक धारक भी हैं जो इस महाद्वीप की अखंड संस्कृति,उसकी साझा विरासत,उसका साझा भूगोल,साझा इतिहास है।

राजनीतिक सीमाएं,धर्मभेद,उपासना पद्धतिया धर्मोन्माद के ध्रूवीकरण से जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता।

मसलन कश्मीर में आय़ी बाढ़ ने बाकी देश से कश्मीर को जैसे जोड़ा है,वह अभूतपूर्व इसलिए है कि सबकुछ उलट पुलट कर देने वाली प्रकृति के विरुद्ध खड़ी यह सीमेंट की सभ्यता है,जिसमें मनुष्यता की संधान असंभव है।

जैसे आपदाओं में दोनों कश्मीर एकाकार है,जैसे आपदाओं में भारत नेपाल, भारत बांग्लादेश और यहां तक कि भारत पाकिस्तान एकाकार हैं,उसी तरह संस्कृति, विरासत, इतिहास भूगोल में राजनीतिक सीमाओं के आर पार हम लोग अब भी एकाकर हैं जैसे हिमालय के ग्लेशियरों से निकलकर  बंधी अनबंधी नदियां सारी राजनीतिक सीमाओं को तोड़कर समुंदर में जा मिलती हैं,वैसा ही महामानवसागर यह।

जोहरा सहगल के बाद फिरोजा बेगम के महाप्रयाण के अवसर पर उस साम्प्रतिक अतीत के आइने में अपने धर्मोन्मादी चेहरे को देखना भी जरुरी है,इसीलिए बेगम फिरोजा का यह अनधिकार स्मरण।











जोहरा, फिरोजा, नजरुल की मनुष्यता धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता और पहचान पर भारी है।
स्वतंत्र बांग्लादेश बनेने के बाद नजरुल ठाका चले गये तो फिरोज और उनके पति कमल दासगुप्त तो बांग्लादेश बनने से पहले ही पूर्वी पाकिस्तान जा बसे थे।

दोनों राष्ट्रों का राष्ट्रीय गीत रवींद्रनाथ के जन गण मन और आमार सोनार बांग्ला जरुर है,रवींद्रनाथ को इस विभाजन की त्रासदी को सहना झेलना नहीं पड़ा।लेकिन इस विभाजन की त्रासदी में जीवंत टोबा टेकसिंह थे काजी नजरुल इस्लाम और शायद उनके गानेर पाखी के वजूद भी।

नजरुल विक्षिप्त हो गये थे,संक्षिप्त रचनाकर्म के बाद लेकिन सीमाओं के आर पार फिरोजा बेगम के कंठ में एकसाथ ध्वनित हो रहे थे रवींद्र और नजरुल संगीत।

फिरोजा जैसे सीमाओं के आर पार समान रुप में जीती रहीं,जैसे जीती रहीं जोहरा सहगल,वैसा लेकिन बेगम अख्तर,गिरिजा देवी या नूरजहां के साथ नहीं हो सका क्योंकि पाकिस्तान जन्मलग्न से शत्रूदेश है।

लव जिहाद उसी शत्रूदेश का रसायन है जो देश के बीतर गाजापट्टियों का निर्माण कर रहा है।दूसरी तरप गंगा जमुनी तहजीब का प्रेमकथा यह भी कि नजरुल जोहरा फिरोजा नर्गिस मधुबाला शर्मिला टैगोर जैसी अनगिनत नारियां हैं,जिन्होंने कला,संगीत और अप्रतिम सौंदर्य के साथ धर्म और धर्मोन्माद को सिरे से गैर प्रासंगिक बना दिया है।

असंगीतीय कारण से फिरोजा बेगम कोयाद कर लेना हमारे दिलो दिमाग के मुक्त बाजार को समाज वास्तव के धरातल पर खडा़ करने के लिए बेहद जरुरी है,इसीलिए यह दुस्साहस।अभिजन संगीत प्रेमी संगीतज्ञ जनता विद्वतजन माफ करेंगे।

काजी नजरुल और फिरोजा का यह प्रसंग हाल में लिखे मेरे कविता विधा केंद्रित रोजनामचे को समझने के लिए भी प्रासंगिक है।

हम मानते हैं कि शास्त्रीयता,व्याकरण और सौंद्रयशास्त्र कला साहित्य और संगीत के निर्णायक प्रतिमान हो नहीं सकते,जबतक कि संबद्ध रचनाकर्म के लिए शिल्पी  समाजवास्तव,लोक परंपरा सांस्कृतिक विरासत,इतिहास बोध और वैज्ञानिक दृष्टि की बाधा दौड़ को पार न कर चुका हो।

आपको याद दिलाने के लिए फिर उस रोजनामचे के दोहराव की इजाजत चाहूंगा।

अस्थिकेशवसाकीर्णं शोणितौघपरिप्लुतं।
शरीरैर्वहुसाहस्रैविनिकीर्णं समंततः।।

महाभारत का सीरियल जोधा अकबर है इन दिनों लाइव,जो मुक्तबाजारी महापर्व से पहले तकनीकी क्रांति के सूचनाकाल से लेकर अब कयामत समय तक निरंतर जारी है।

उसी महाभारत के धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे युद्धोपरांत यह दृश्यबंध है।

उस धर्मक्षत्रे अस्थि,केश,चर्बी से लाबालब खून का सागर यह।एक अर्यूद सेना, अठारह अक्षौहिणी मनुष्यों का कर्मफल सिद्धांते नियतिबद्ध मृत्युउत्सव का यह शास्त्रीय,महाकाव्यिक विवरणश्लोक।

गजारोही,अश्वारोही,रथारूढ़,राजा महाराजा, सामंत, सेनापति, राजपरिजन,श्रेष्ठी अभिजन और सामान्य युद्धक पैदल सेनाओं के सामूहिक महाविनाश का यह प्रेक्षापट है।जो सुदूर अतीत भी नहीं है,समाज वास्तव का सांप्रतिक इतिहास है और डालर येन भवितव्य भी।

मालिकों को खोने वाले पालतू जीव जंतुओं और युद्ध में मारे गये पिता,पुत्र,भ्राता,पति के शोक में विलाप में स्त्रियां का प्रलयंकारी शोक का यह स्थाईभाव है।नरभक्षियों के महाभोज का चरमोत्कर्ष है यह।

यह है वह शास्त्रीय उन्मुक्त मुक्तबाजार का धर्मक्षेत्र जिसे कुरुवंश के उत्तराधिकारी भरतवंशी देख तो रहे हैं रात दिन चौबीसो घंटे लाइव लेकिन सत्ताविमर्श में निष्णात इतने कि महसूस नहीं रहे हैं क्योंकि धर्मोन्मादी दिलदिमाग कोमा में है।आईसीयू में लाइव सेविंग वेंटीलेशन में है।कृतिम जीवन में है,जीवन में नहीं हैं।

अब उत्तरआधुनिक राजसूय अश्वमेध धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे तेलयुद्ध विकास कामसूत्र मध्ये अखंड भारतखंडे की पृष्ठभूमि भी वही महाकाव्यिक।नियति भी वही।मृत्यु उपत्यका शाश्वत वही।

मैं अस्पृश्य,बहिस्कृत,बेनागरिक सामान्य किसान का बेटा हूं और मैं दुस्साहस कर रहा हूं यह कहने का कि उत्तरआधुनिक मक्तबाजार में जो मृत्युघोषणा का अमोघ पाठ है,वह किसी दूसरी विधा के लिए सच हो या न हो कविता के लिए निर्विवाद सत्य है।

मैं कुलीन मेधासर्वस्व नस्ली आधिपात्य के सत्तावर्चस्व का प्रतिनिधि नहीं हूं और मेरी देह से लथपथ खेतों की कीचड़ अभी धुली नहीं है,हम श्रमजीवी श्रम निर्भर कुजात कुनस्ल के लोग हैं।इसलिए किसी समीकरण के बनने बगड़ने से मेरा कुछ उखड़ता नहीं है।

मेरे पास त्यागने के लिए कुछ भी नहीं है और इसलिए मेरी यह सार्वजनिक घोषणा है कि कविता की मृत्यु हो चुकी है और यह घोषणा मुक्त बाजार के मंच से नहीं है।

मेरे कवि मित्र माफ करें मुझे कृतघ्नता के अपराध के लिए।शिखर कवियों से लेकर अब तक आम कवियों के समर्थन के दम पर साहित्य संसकृति क्षेत्रे मेरा निरंतर अनधिकार अतिक्रमण का दुस्साहस है यह,लेकिन मुझे कहना ही होगा कि इस देश के समस्त कवियों की असमय अप्राकृतिक मृत्यु हो चुकी है।

धर्मक्षेत्रे महाभारतीय परिदृश्य में जिनकी संवेदनाएं मृत हैं,उन्हें जीवित कैसे कहा जा सकता है,बताइये प्लीज।

वे हद से हद बहुराष्ट्रीय गिफ्ट,ओहदा,पुरस्कार, सम्मान बटोरने वाले शब्द कारोबारी हैं और कारोबारियों की तरह मुक्तबाजार के सेनसेक्स निफ्टी में मुनाफा वसूली कर रहे हैं और उनका सारा दांव वहीं लगा है।

कविता अगर जीवित होती और किसी अंधेरे कोने में भी बचा होता कोई कवि तो इस मृत्युउपत्यका की सो रही पीढ़ियों को डंडा करके उठा देता और आग लगा देता इस जनविरोधी तिलस्म के हर ईंट में,सत्तास्थापत्य के इस पिंजर को तोड़ कर किरचों में बिखेर देता।

दरअसल उभयलिंगियों का पांख नहीं होते और वे सदैव विमानयात्री होते हैं।पांख के पाखंड में लेकिन आग कोई होती नहीं है।विचारधारा और प्रतिबद्धताओं की अस्मितामध्ये किसी अग्निपाखी का जन्म भी असंभव है।कविता अंतत- वह अग्निपाखी है और कुछ भी नहीं और बिना आग कविता या तो निखालिस रंडी, स्त्रियों के लिए अक्सर दी जाने वाली यह गाली किसी स्त्री का चरित्र है नहीं और दरअसल यह उपमा उभयलिंगी है जो सत्ता के लिए किराये की कोख भी है।

जो कविता परोसी जा रही है कविता के नाम पर वे मरी हुई सड़ी मछलियों की तरह मुक्तबाजारी धारीदार सुगंधित कंडोम की तरह मह मह महक रही हैं अवश्य,लेकिन  कविता कंडोम से हालात बदलने वाले नहीं है।यह काउच पर,सोफे पर,किचन में ,बाथरूम में, बिच पर,राजमार्गे,कर्मक्षेत्रे मस्ती का पारपत्र जरुर है,कविता हरगिज नहीं।

सच तो  यह भी है कि इस धर्मक्षेत्रे महाभारते  कविता के बिना कोई लड़ाई भी होनी नही है क्योंकि कविता के बिना सत्ता दीवारों की किलेबंदी को ध्वस्त करने की बारुदी सुरंगें या मिसाइली परमाणु प्रक्षेपास्त्र भी कुुरुक्षेत्र की दिलोदमाग से अलहदा लाशें हैं।

लोक की नस नस में बसी होती है कविता।
हनवाओं की सुगंध में रची होती है कविता।

बिन बंधी नदियां होती हैं कविता।उत्तुंग हिमाद्रिशिखरों की कोख में जनमी ग्लेशियरों के उल्लास में होती है कविता।

निर्दोष प्रकृति और पर्यावरण की गोद में होती है कविता।
कविता महारण्य के हर वनस्पति में होती है और समुंदर की हर लहर में होती है कविता।

मेहनतकशों के हर पसीना बूंद में होती है कविता।
खेतों और खलिहानों की पकी फसल में होती है कविता।

वह कविता अब सिरे से अनुपस्थित है क्योंकि लोक परलोक में है अब और प्रकृति और पर्यावरण को बाट लग गयी है।

पसीना अब खून में तब्दील है।

हवाएं अब बिकाऊ है।

कोई नदी बची नहीं अनबंधी।

सारे के सारे ग्लेशियर पिघलने लगे हैं और उत्तुंग हिमाद्रिशिखरों का अस्तित्व ही खतरें में है। हिमालयअब आफसा है।आपदा है।

खामोश हो गयी हैं समुंदर की मौजें और महाअरण्य अब बेदखल  बहुराष्ट्रीय रिसार्ट,माइंनिंग है,परियोजना हैं ह या विकास सूत्र का निरंकुश महोत्सव है या सलवा जुड़ुम या सैन्य अभियान है।

वातानुकूलित सत्ता दलदल में धंसी जो कविता है कुलीन,उसमें शबाब भी है,शराब भी है,देह भी है कामाग्नि की तरह,लेकिन न उस कविता की कोई दृष्टि है और न उस निष्प्राण जिंगल सर्वस्व स्पांसर में संवेदना का कोई रेशां है।

अलख बिना,जीवनदीप बिना,वह कविता यौन कारोबार का रैंप शो के अलावा कुछ नहीं है और महाकवि जो सिद्धहस्त हैं भाषिक कौशल में दक्ष,शब्द संयोजन बिंब व्याकरण में पारंगत वे दरअसल मुक्तबाजार के दल्ला हैं या फिर सुपरमाडल।

चाहें तो सारे कवि मिलकर मुझे शुली पर चढ़ा दें लेकिन कवियों का अपराध चूंकि सबसे बड़ा है,समाज सचेतन कला कर्म का विश्वासघातचूंक सबसे संगीन है,मैं चुप नहीं रहने वाला।

हालात जिस तेजी से बदल रहे हैं, जो कयामती हालात हैं,जो देश बोचो निरंकुश अश्वमेध है,उसके प्रतिरोध की प्रेरणा समसामयिक उत्तरआधुनिक किस कविता में है, जरा उसे पेश कीजिये।

जो समय को दिशा बदलने को मजबूर कर दें,पत्थर के सीने से झरना निकाल दें और सत्ता चालाकियों का रेशां रेशां बेनकाब कर दें, जो मुकम्मल एक युदध हो जनता के हक हकूक के लिए,ऐसी कोई कविता लिखी जा रही हो तो बताइये।

उस कवि का पता भी दीजिये जो मुक्तबाजारी कार्निवाल से अलग थलग है किंतु और जनता की हर तकलीफ,हर मुश्किल में उसके साथ खड़ा है।जिसका हर शब्द बदलाव के लिए  गुरिल्ला युद्ध है।

उस कविता को दीवालों पर टांग दीजिये प्लीज,जो सारी अस्मिताओं के बंधन तोड़कर मेहनतकश जमात को एक कर दें।

ऐसा कर सकें तो वही मेरी इस बदतमीजी का जवाब होगा।

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  21. Bangla Music > F > Firoza Begum > Song Music MP3 ...

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  25. 01 - Firoza Begum - Koto Din Dhekini Tomai (music.com.bd).mp3
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  29. Ghazal maestro Firoza Begum passes away - News Oneindia

  30. 2 hours ago - Dhaka, Sept 10: Eminent Ghazal and Nazrul Sangeet vocalist Firoza Begum passed away at the age of 84 on Tuesday at 8:30 pm in Dhaka.


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Pallavi Sengupta writes:

Ghazal maestro Firoza Begum passes away
Dhaka, Sept 10: Eminent Ghazal and Nazrul Sangeet vocalist Firoza Begum passed away at the age of 84 on Tuesday at 8:30 pm in Dhaka. Admitted at the Apollo hospitals here, she complained of kidney problems and heart complications. Her sons and musicians Hamin and Shafin Ahmed were with her at the hospital at the time of death.

Winner of the Independence Day Award and Chairman of the Nazrul institute Begum had started her career at a ripe age of 12. She immediately claimed to fame, impressing her Guru Nazrul himself.

Being a Muslim girl, her entry into the world of music was an inspiration for many women from her community. She has worked with some of the most popular artists of her time including Talat Mahmud and also lent her voice to HMV.

Firoza married Kamal Dasgupta in 1956, who composed almost a third of the national poet's songs. However, after he passed away in 1974, she married musician Mansur Ahmed.

Born in Gopalganj on July 28, 1930 to the zamindars of Ratail Ghonaparha, she was also known for her Rabindra sangeet and Adhunik renderings.  Her son claims that her remains would be taken to her Indira Road home from where she will be shifted  to the Central Shaheed Minar at 2pm todayfor people to pay their respects until 4pm. A Namaj-e-Janaza will be held in the afternoon at the Azad Mosque in Gulshan and Firoza Begum will be laid to rest at the Banani graveyard. OneIndia News



রতরে দূরে চলে গেলেন ফিরোজা বেগম - Prothom Alo

নজরুলসংগীতশিল্পী ফিরোজা বেগম আর নেই। আজ মঙ্গলবার রাত ৮টা ২৮ মিনিটে রাজধানীর অ্যাপোলো হাসপাতালে তিনি ইন্তেকাল করেন (ইন্না লিল্লাহি ওয়া ইন্না ইলাইহি রাজিউন)। এর আগে বিকেলে চিকিৎসকেরা জানিয়েছিলেন, ফিরোজা বেগমের হৃদযন্ত্র ও কিডনি স্বাভাবিকভাবে কাজ করছে না। পাশাপাশি তাঁর শরীরে জন্ডিস ধরা পড়েছে। জানা গেছে, তাঁকে ...

ফিরোজা বেগমের অবস্থা সংকটাপন্ন - Prothom Alo

বিশিষ্ট নজরুলসংগীতশিল্পী ফিরোজা বেগমের অবস্থা সংকটাপন্ন। তিনি রাজধানীর অ্যাপোলো হাসপাতালে চিকিত্সাধীন আছেন। চিকিত্সকদের মতে, তাঁর হূদযন্ত্র ও কিডনি স্বাভাবিকভাবে কাজ করছে না। পাশাপাশি তাঁর শরীরে জন্ডিস ধরা পড়েছে। ফিরোজা বেগমকে সুস্থ করে তোলার জন্য তাঁরা সব ধরনের চেষ্টাই চালিয়ে...

ফিরোজা বেগমের মরদেহ ইন্দিরা রোডের বাসভবনে - Bangla News 24

৬ ঘন্টা আগে - ঢাকা: উপমহাদেশের কিংবদন্তি নজরুলসংগীত শিল্পী ফিরোজা বেগমের মরদেহ ইন্দিরা রোডের বাসায় নিয়ে যাওয়া হয়েছে। বুধবার সকালে রাজধানীর অ্যাপোলো হাসপাতাল থেকে শিল্পীর ‍মরদেহ ইন্দিরা রোডে তার নিজ বাসায় নিয়ে যাওয়া হয়। সেখান থেকে দুপুর সাড়ে ১২টা নাগাদ শহীদ মিনারে সর্বস্তরের মানুষের শ্রদ্ধার নিবেদনের জন্য ...

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১৬ ঘন্টা আগে - ফিরোজা বেগমের সাক্ষাৎকার. 00:13:22. নজরুল সঙ্গীতের প্রবাদপ্রতিম শিল্পী ঢাকার অ্যাপোলো হাসপাতালে শেষ নিঃশ্বাস ত্যাগ করেছেন। হাসপাতালের আইসিইউতে চিকিৎসাধীন অবস্থায় রাতের দিকে মৃত্যু হয় অসংখ্য সম্মাননায় ভূষিত ৮৪ বছর বয়সী এই শিল্পীর। এই শিল্পীর সঙ্গে বিবিসি বাংলার পুরনো একটি সাক্ষাৎকার- বিবিসি ...

ফিরোজা বেগম - উইকিপিডিয়া

bn.wikipedia.org/wiki/ফিরোজা_বেগম
ফিরোজা বেগমের জন্ম ১৯৩০ সালের ২৮ জুলাই ফরিদপুরের গোপালগঞ্জ মহকুমার (বর্তমান জেলা) রাতইল ঘোনাপাড়া গ্রামের এক সম্ভ্রান্ত জমিদার পরিবারে। তাঁর বাবার নাম খান বাহাদুর মোহাম্মদ ইসমাইল এবং মায়ের নাম বেগম কওকাবুন্নেসা। ১৯৫৫ সালে বিরলপ্রজ সুরকার কমল দাশগুপ্তের সঙ্গে তাঁর বিয়ে হয়। তাঁর তিন সন্তান - তাহসিন, হামীন ও শাফীন।

ফিরোজা বেগমের মরদেহ শহীদ মিনারে নেওয়া হচ্ছে

uttaranews24.com/2014/09/10/ফিরোজা-বেগমের-মরদেহ-শহীদ/
৩ ঘন্টা আগে - স্টাফ করেসপন্ডেন্ট উত্তরানিউজটোয়েন্টিফোর.কম ঢাকা : 'শাওনো রাতে যদি- স্মরণে আসে মোরে, বাহিরে ঝড়ও বহে, নয়নে বারি ঝরে' নজরুলের গানের পাখিখ্যাত দেশবরেণ্য সংগীতশিল্পী ফিরোজা বেগমের কণ্ঠে আর শোনা যাবেনা বিখ্যাত এসব গান।কিন্তু তারপরও সারা জীবন মানুষের মণিকোঠায় স্মরণীয় ও বরণীয় হয়ে থাকবেন তিনি।

ফিরোজা বেগমের মৃত্যুতে প্রধানমন্ত্রীর শোক - bdnews24.com

১৮ ঘন্টা আগে - নজরুল সংগীতের কিংবদন্তি শিল্পী ফিরোজা বেগমের মৃত্যুতে গভীর শোক প্রকাশ করে প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনা বলেছেন, তার মৃত্যু বাংলাদেশের সংগীত জগতের 'অপূরণীয় ক্ষতি'।

ফিরোজা বেগমের অবস্থা সংকটাপন্ন - bdnews24.com

২ দিন আগে - নজরুল সংগীতশিল্পী ফিরোজা বেগম কিডনির সমস্যা প্রকট হয়ে ওঠায় তাকে হাসপাতালে নেওয়া হয়েছে। চিকিৎসকরা বলছেন, তার অবস্থা সংকটাপন্ন।

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ফিরোজা বেগমের মরদেহ শহীদ মিনারে | জাতীয় | কালের কণ্ঠ

1 ঘন্টা আগে - সর্বস্তরের মানুষের শ্রদ্ধা নিবেদনের জন্য কিংবদন্তি নজরুলসংগীত শিল্পী ফিরোজা বেগমেরমরদেহ শহীদ মিনারে আনা হয়েছে। আজ বুধবার দুপুর দেড়টায় শিল্পীর মরদেহ ইন্দিরা রোডের বাসভবন শহীদ মিনারে আনা হয়। এদিকে কিংবদন্তি এ শিল্পীকে শ্রদ্ধা জানাতে আগে থেকেই প্রস্তুত শহীদ মিনার। সম্মিলিত সাংস্কৃতিক জোটের পক্ষ থেকে ...

চলে গেলেন নজরুলের গানের পাখি

নিজস্ব প্রতিবেদক,  বিডিনিউজ টোয়েন্টিফোর ডটকম
Published: 2014-09-09 20:59:58.0 BdST Updated: 2014-09-09 23:48:08.0 BdST
নজরুলের সুর আর বাণী কণ্ঠে ধরে সাত দশক ভক্তহৃদয়ে রাজত্ব করে চিরতরে দূরে চলে গেলেন কিংবদন্তি শিল্পী ফিরোজা বেগম।

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ঢাকার অ্যাপোলো হাসপাতালে চিকিৎসাধীন অবস্থায় মঙ্গলবার রাত সাড়ে ৮টার দিকে মৃত্যু হয় ৮৪ বছর বয়সী এই শিল্পীর।
নজরুল সংগীতশিল্পী ও ছায়ানটের অন্যতম সংগঠক খায়রুল আনাম শাকিল বিডিনিউজ টোয়েন্টিফোর ডটকমকে বলেন, "তিনি (ফিরোজা বেগম) কিডনি জটিলতায় ভুগছিলেন। হৃদযন্ত্রেও জটিলতা ছিল। কিছুক্ষণ আগে জানলাম, তিনি আমাদের ছেড়ে চলে গেছেন।"
তার মৃত্যুর খবরে দেশের সাংস্কৃতিক অঙ্গনে নেমে আসে শোকের ছায়া। রাষ্ট্রপতি মো. আবদুল হামিদ ও প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনাও এই শিল্পীর মৃত্যুতে গভীর শোকপ্রকাশ করেন।
বিএনপি চেয়ারপার্সন খালেদা জিয়া ও অর্থমন্ত্রী আবুল মাল আবদুল মুহিতও এই শিল্পীর মৃত্যুতে শোকপ্রকাশ করে বিবৃতি দিয়েছেন।
শিল্পীর ছেলে হামিন আহমেদ জানান, তার মায়ের মরদেহ রাতে হাসপাতালের হিমঘরে রেখে সকালে নিয়ে যাওয়া হবে ইন্দিরা রোডের বাসায়। বেলা ২টা থেকে বিকাল ৪টা পর্যন্ত সবার শ্রদ্ধা নিবেদনের জন্য কফিন রাখা হবে কেন্দ্রীয় শহীদ মিনারে।
বিকালে গুলশানের আজাদ মসজিদে জানাজা শেষে বনানী কবরস্থানে দাফন করা হবে শিল্পীকে।  
১৯৩০ সালের ২৮ জুলাই গোপালগঞ্জ জেলার রাতইল ঘোনাপাড়া গ্রামের এক জমিদার পরিবারে ফিরোজা বেগমের জন্ম। বাবা খান বাহাদুর মোহাম্মদ ইসমাইল ছিলেন আইনজীবী। মা কওকাবন্নেসা বেগমও ছিলেন সংগীতের অনুরাগী।
ফিরোজা যখন গানের জগতে প্রবেশ করেন তখনকার বাঙালি মুসলমান সমাজে মেয়েদের সংগীতের তালিম নেয়া সহজ বিষয় ছিল না। কিন্তু বয়স দশ বছর পেরুনোর আগেই তার কণ্ঠে নিজের গান শুনে মুগ্ধ হন খোদ কবি নরুল ইসলাম।   
অল ইন্ডিয়া রেডিওর সুনীল বোসের উৎসাহে মামার সঙ্গে নামজাদা গ্রামোফোন কোম্পানি এইচএমভিতে অডিশন দিতে গিয়ে কবির সঙ্গে প্রথম সাক্ষাৎ ফিরোজার।  নজরুল তখন এইচএমভির প্রধান প্রশিক্ষক।
ফিরোজার কণ্ঠে 'যদি পরানে না জাগে আকুল পিয়াসা শুধু চোখে দেখা দিতে এস না' শুনে নজরুল সেদিন বলেছিলেন- এই মেয়ে অনেক ভালো শিল্পী হবে।
ষষ্ঠ শ্রেণীতে পড়ার সময়েই অল ইন্ডিয়া রেডিওতে ফিরোজার কণ্ঠে নজরুলের গান দুই বাংলায় সাড়া ফেলে দেয়। ১৯৪২ সালে মাত্র ১২ বছর বয়সে এইচএমভি থেকে তার প্রথম রেকর্ড বের হয়।
শৈশবের সেই দিনগুলোতে নজরুলের কাছ থেকেই তার কয়েকটি গানের তালিম পেয়েছিলেন ফিরোজা বেগম। তার কণ্ঠের গান দিয়েই শুরু হয় নজরুলসংগীতের একক লং প্লে প্রকাশ।
১৯৫৫ সালে সুরকার কমল দাশগুপ্তের সঙ্গে বিয়ে হয় ফিরোজার। নজরুলের সরাসরি সংস্পর্শে আসা কমল বিদ্রোহী কবির প্রায় এক-তৃতীয়াংশ গানে সুর দিয়েছেন। ফিরোজা নিজেও পরে নজরুলের গানের স্বরলিপি তৈরি করেন; সুর সংরক্ষণে ভূমিকা রাখেন।
নজরুলসংগীত ছাড়াও ফিরোজার কণ্ঠ থেকে ভক্তরা শুনেছে রবীন্দ্রসংগীত, আধুনিক গান, গজল, কাওয়ালি ও ভজন। বিভিন্ন দেশে তিন শতাধিক একক অনুষ্ঠানে গান করেছেন তিনি।
১৯৪৯ সালে ফিরোজা আর তালাত মাহমুদের গাওয়া গানেই ঢাকা শর্ট ওয়েভ রেডিওর যাত্রা শুরু হয়। ঢাকা নজরুল ইনস্টিটিউটের প্রথম চেয়ারম্যান ছিলেন ফিরোজা বেগম।
সংগীতে অসামান্য অবদানের স্বীকৃতিস্বরূপ ১৯৭৯ সালে স্বাধীনতা পদকসহ দেশে-বিদেশে নানা পুরস্কারে ভূষিত হয়েছেন তিনি।
এর মধ্যে রয়েছে শিল্পকলা একাডেমি পুরস্কার, শ্রেষ্ঠ টিভি শিল্পী পুরস্কার, নাসিরউদ্দিন স্বর্ণপদক, স্যার সলিমুল্লাহ স্বর্ণপদক, দীননাথ সেন স্বর্ণপদক, সত্যজিৎ রায় স্বর্ণপদক, বাচসাস পুরস্কার ও নজরুল আকাদেমি পদক।
ফিরোজার প্রথম স্বামী কমল দাশগুপ্তের মৃত্যু হয় ১৯৭৪ সালে। পরে আরেক সংগীতজ্ঞ মনসুর আহমেদের সঙ্গে সংসার করেন তিনি।
তিন ছেলে তাহসিন, হামীন ও শাফীন আহমেদ এবং অসংখ্য ভক্ত ও গুণগ্রাহী রেখে গেছেন শিল্পী ফিরোজা বেগম।
'চিরতরে চলে গেলেন নজরুলসঙ্গীত সম্রাজ্ঞী ফিরোজা বেগম
স্টাফ রিপোর্টার ॥ সুরের মোহময় স্রোতের টানে অনেকেই জড়িয়ে পড়েন গানের সঙ্গে। তবে সাধনাময় সঙ্গীতের পথে নিজেকে সমর্পণ করেন না সবাই। তিনি তেমনটাই করেছিলেন। কি এক মায়ার বাঁধনে শৈশবেই সুরেলা ভুবনে নিমজ্জিত করেন নিজেকে। আর পরিণত বয়সে তাল-লয়ের সঙ্গে মিলিয়ে নিয়েছিলেন আপন জীবনের ধ্যানজ্ঞানকে। এভাবেই সঙ্গীতচর্চার শাণিত পথপরিক্রমায় উপমহাদেশের বরেণ্য নজরুলসঙ্গীত শিল্পীর পরিচয়কে ধারণ করেছিলেন ফিরোজা বেগম। থেমে গেল কাজী নজরুল ইসলামের সান্নিধ্যপ্রাপ্ত এই সুরসম্রাজ্ঞীর সুরের পথভ্রমণ। নজরুলের গানের সুর ধরেই যেন চিরতরে দূরে চলে গেলেন অগণন শ্রোতার হৃদয় উদ্দীপ্ত করা এই শিল্পী। সুর ও সঙ্গীতে সাত দশকেরও বেশি সময় কাটানো এই কণ্ঠশিল্পী মঙ্গলবার রাত ৮টা ২৮ মিনিটে রাজধানীর এ্যাপোলো হাসপাতালে চিকিৎসাধীন অবস্থায় শেষ নিঃশ্বাস ত্যাগ করেন (ইন্নালিল্লাহি...রাজিউন)। মৃত্যুকালে তাঁর বয়স হয়েছিল ৮৪ বছর। তিনি তিন ছেলে তাহসিন আহমেদ, হামিন আহমেদ ও শাফিন আহমেদসহ অসংখ্য সঙ্গীত শিক্ষার্থী এবং ভক্ত-অনুরাগী ও গুণগ্রাহী রেখে গেছেন।
ফিরোজা বেগমের বড় ছেলে সঙ্গীতশিল্পী হামিন আহমেদ জানান, রাতে হাসপাতালের হিমঘরে রাখা হবে মরদেহ। আজ বুধবার সকালে শিল্পীর শবদেহ নিয়ে যাওয়া হবে ইন্দিরা রোডের বাসায়। এরপর সম্মিলিত সাংস্কৃতিক জোটের তত্ত্বাবধানে বেলা ২টা থেকে চারটা পর্যন্ত কেন্দ্রীয় শহীদ মিনারে সর্বসাধারণের শ্রদ্ধা নিবেদন করা হবে। বাদ আছর গুলশানের আজাদ মসজিদে তাঁর জানাজা অনুষ্ঠিত হবে। জানাজা শেষে বনানী কবরস্থানে সমাহিত করা হবে নজরুলের গানের পাখি ফিরোজা বেগমকে।
ফিরোজা বেগমের মৃত্যুর খবরে বিষণ্ণ শোকের আবহ নেমে আসে সংস্কৃতি অঙ্গনে। স্বাধীনতা পুরস্কারপ্রাপ্ত এ শিল্পীর মৃত্যুতে গভীর শোক প্রকাশ করেছেন রাষ্ট্রপতি মোঃ আবদুল হামিদ, প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনা, বিরোধীদলীয় নেতা রওশন এরশাদ, জাতীয় সংসদের স্পিকার শিরিন শারমিন চৌধুরী, অর্থমন্ত্রী আবুল মাল আবদুল মুহিত, বৈদেশিক কর্মসংস্থান ও প্রবাসী কল্যাণমন্ত্রী খন্দকার মোশাররফ হোসেন, বিএনপি চেয়ারপারসন খালেদা জিয়াসহ বিশিষ্ট ব্যক্তিবর্গ ও বিভিন্ন প্রতিষ্ঠান। মৃত্যুর সংবাদ পাওয়ার আগেই তাঁকে দেখতে যাওয়ার জন্য হাসপাতালে পৌঁছে সংস্কৃতিমন্ত্রী আসাদুজ্জামান নূর জানতে পারেন শিল্পী পাড়ি জমিয়েছেন না-ফেরার দেশে। এছাড়াও শিল্পীর চিরবিদায়ের সংবাদে হাসপাতালে ছুটে যান সংস্কৃতি সচিব রণজিৎ কুমার বিশ্বাস, গণমাধ্যম ব্যক্তিত্ব ফরিদুর রেজা সাগর এবং তাঁর স্বজন ও শুভাকাক্সক্ষীরা।
শোকবাণীতে প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনা বলেন, কিংবদন্তির এই শিল্পীর মৃত্যুতে দেশের সঙ্গীতাঙ্গনে অপূরণীয় ক্ষতি হলো। নজরুলসঙ্গীত চর্চা ও গবেষণায় তাঁর অসামান্য অবদান জাতি আজীবন স্মরণ করবে।
আসাদুজ্জামান নূর বলেন, ফিরোজা বেগম নজরুলসঙ্গীতকে এমন এক উচ্চতায় নিয়ে গিয়েছিলেন যে তাঁর অনুপস্থিতিতে সেই জায়গাটি কে পূরণ করবে তা বলা মুশকিল। তাঁর মতো মহান শিল্পীর মৃত্যু দেশের সর্বস্তরের মানুষের জন্য দুঃসংবাদ।
শিল্পীর আরেক ছেলে শাফিন আহমেদ জানান, ফিরোজা বেগম দীর্ঘদিন হৃদযন্ত্র ও কিডনিজনিত সমস্যায় ভুগছিলেন। নিয়মিতভাবে কিডনি ডায়ালিসিসও করা হতো। কিডনির সমস্যা প্রকট হয়ে ওঠায় সোমবার সকালে ফিরোজা বেগমকে এ্যাপোলো হাসপাতালে ভর্তি করা হয়। একইসঙ্গে তাঁর হৃৎপি-ও স্বাভাবিকভাবে কাজ করছিল না। তাঁর হৃদযন্ত্রে পেসমেকার বসানোর পাশাপাশি মঙ্গলবার কিডনি ডায়ালিসিস করা হয়। সঙ্গে ধরা দিয়েছিল ডায়াবেটিস। তিনি নেফ্রোলজি ও কিডনি ট্রান্সপ্ল্যান্টেশন বিভাগের কো-অর্ডিনেটর ও সিনিয়র কনসালট্যান্ট কৃষ্ণ মোহন সাহুর তত্ত্বাবধানে চিকিৎসাধীন ছিলেন।
শিল্পীর জীবনপঞ্জি : ১৯৩০ সালের ২৮ জুলাই ফরিদপুরের গোপালগঞ্জ মহকুমার (বর্তমান জেলা) রাতইল ঘোনাপাড়ার গ্রামের এক সম্ভ্রান্ত পরিবারে জন্ম গ্রহণ করেন ফিরোজা বেগম। আইনজীবী পিতা খান বাহাদুর মোহাম্মদ ইসমাইল ও সঙ্গীতানুরাগী মা কওকাবুন্নেসার সন্তান ফিরোজাকে ছোটবেলা থেকেই পেয়ে বসে সুরের নেশা। তিন ভাই ও চার বোনের মধ্যে তিনি তৃতীয়। ষষ্ঠ শ্রেণীতে পড়ার সময়ই অল ইন্ডিয়া রেডিওতে গান গেয়ে শ্রোতার হদয়ে সাড়া জাগান ফিরোজা। আর মাত্র ১২ বছর বয়সে নামজাদা গ্রামোফোন কোম্পানি এইচএমভি থেকে রেকর্ড প্রকাশের মাধ্যমে তাক লাগিয়ে দেন সঙ্গীত ভুবনে। পেয়েছিলেন কবি কাজী নজরুল ইসলামের দুর্লভ সান্নিধ্য। স্বয়ং জাতীয় কবির কাছ থেকে গানের তালিম নিয়েছেন। মুগ্ধ করেছেন গান শুনিয়েও।
নজরুলসঙ্গীতকে বিশ্বদরবারে পৌঁছে দেয়ার পেছনে রয়েছে তাঁর অসামান্য অবদান। বিদ্রোহী কবির গানকে 'নজরুলসঙ্গীত' নামকরণের পেছনে রেখেছেন অনন্য ভূমিকা। তাঁর গান দিয়েই প্রথম নজরুলসঙ্গীতের একক লং প্লে¬ প্রকাশ শুরু হয়। কবি নজরুল অসুস্থ হওয়ার পর ফিরোজা বেগমই নজরুলসঙ্গীতের প্রথম স্বরলিপিকার। নজরুলসঙ্গীতের শুদ্ধ স্বরলিপি ও সুর সংরক্ষণের জন্য তাঁকে করতে হয়েছে কঠিন সংগ্রাম। নজরুল ইনস্টিটিউট তৈরি হয়েছিল তাঁরই ভাবনায়, যদিও শেষ পর্যন্ত সেই ইনস্টিটিউটে জায়গা হয়নি তাঁর।
পৃথিবীর বিভিন্ন দেশে এ পর্যন্ত ৩৮০টির বেশি একক অনুষ্ঠানে গান করেছেন তিনি। নজরুলসঙ্গীত ছাড়াও তিনি গেয়েছেন আধুনিক গান, গীত, গজল, কাওয়ালি, ভজন, হামদ ও নাত। এ পর্যন্ত তাঁর ১২টি এলপি, চারটি ইপি, ছয়টি সিডি ও ২০টির বেশি অডিও ক্যাসেট বেরিয়েছে। নজরুলসঙ্গীতে অসামান্য অবদানের স্বীকৃতিস্বরূপ দেশে-বিদেশে পেয়েছেন নানা পুরস্কার। এর মধ্যে রয়েছে স্বাধীনতা পদক (১৯৭৯), বাংলাদেশ শিল্পকলা একাডেমি স্বর্ণপদক, সেরা নজরুলসঙ্গীতশিল্পী পুরস্কার (টানা কয়েকবার), সত্যজিৎ রায় পুরস্কার, নাসিরউদ্দীন স্বর্ণপদক, নেতাজি সুভাষ চন্দ্র পুরস্কার, নজরুল আকাদেমি পদক ইত্যাদি। এছাড়াও জাপানের অডিও প্রযোজনা প্রতিষ্ঠান সিবিএস থেকে পেয়েছেন গোল্ড ডিস্ক। ২০১২ সালের পশ্চিমবঙ্গের মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের কাছ থেকে গ্রহণ করেন বঙ্গ সম্মান পুরস্কার।
সুরের ভুবনে এক কিংবদন্তির নাম ফিরোজা বেগম । নজরুলসঙ্গীত আর ফিরোজা বেগম শব্দ দুটি এখন যেন সমার্থক। 'আমি চিরতরে দূরে চলে যাবো, 'নূরজাহান', 'চাঁদ সুলতানা', 'মোর প্রিয়া হবে এসো রাণী', 'নয়ন ভরা জল গো তোমার', 'তুমি সুন্দর তাই চেয়ে থাকি'-নজরুলের এমন অজস্র কালজয়ী গানের মাঝে অমর ও অক্ষয় হয়ে থাকবেন তিনি।
১৯৫৫ সালে বিখ্যাত সুরকার কমল দাশগুপ্তের সঙ্গে তাঁর বিবাহবন্ধনে আবদ্ধ হন। ১৯৭৪ সালে তাঁর মৃত্যুর পর বিয়ে করেন আরেক সঙ্গীতজ্ঞ মনসুর আহমেদকে। তিনিও সম্প্রতি মৃত্যুবরণ করেছেন। শিল্পীর তিন ছেলে তাহসিন, হামীন ও শাফীন আহমেদ। হামীন ও শাফিন আহমেদ ভ্রাতৃদ্বয় দেশের ব্যান্ড সঙ্গীতের উজ্জ্বল নক্ষত্র।

ফিরোজা বেগমের প্রতি শ্রদ্ধা নিবেদন চলছে

সম্মিলিত সাংস্কৃতিক জোটের উদ্যোগে কিংবদন্তি শিল্পী ফিরোজা বেগমের প্রতি শেষ শ্রদ্ধা জানাতে আজ বুধবার দুপুরে তাঁর মরদেহ কেন্দ্রীয় শহীদ মিনারে নিয়ে আসা হয়। ছবি: মনিরুল আলমসম্মিলিত সাংস্কৃতিক জোটের উদ্যোগে কিংবদন্তি শিল্পী ফিরোজা বেগমের প্রতি শেষ শ্রদ্ধা জানাতে আজ বুধবার দুপুরে তাঁর মরদেহ কেন্দ্রীয় শহীদ মিনারে নিয়ে আসা হয়।ছবি: মনিরুল আলমনজরুলসংগীতের মুকুটহীন সম্রাজ্ঞী ফিরোজা বেগমের মরদেহে সর্বস্তরের মানুষ শ্রদ্ধা নিবেদন করছেন। আজ বুধবার বেলা দুইটা থেকে কেন্দ্রীয় শহীদ মিনারে শুরু হয়েছে এ অনুষ্ঠান।
প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনার পক্ষে মরহুমার কফিনে শ্রদ্ধা নিবেদন করেন সংস্কৃতিবিষয়ক মন্ত্রী আসাদুজ্জামান নূর। এ সময় প্রধানমন্ত্রীর কার্যালয়ের কয়েকজন কর্মকর্তা উপস্থিত ছিলেন।
বিএনপির চেয়ারপারসন খালেদা জিয়ার পক্ষে ফুল দেন দলের স্থায়ী কমিটির সদস্য আবদুল মঈন খানসহ কেন্দ্রীয় কয়েকজন নেতা।
শহীদ মিনার থেকে প্রথম আলোর বিশেষ প্রতিনিধি জানিয়েছেন, সেখানে সর্বস্তরের মানুষের শ্রদ্ধা নিবেদন চলছে। ইতিমধ্যে শ্রদ্ধা নিবেদন করেছেন বেসামরিক বিমান পরিবহন ও পর্যটনমন্ত্রী রাশেদ খান মেনন, তথ্যমন্ত্রী হাসানুল হক ইনু, মহিলা ও শিশুবিষয়ক প্রতিমন্ত্রী মেহের আফরোজ চুমকি প্রমুখ। বিশিষ্ট নাগরিকদের মধ্যে শ্রদ্ধা নিবেদন করেছেন ব্যারিস্টার রফিক উল হক, শিক্ষাবিদ আনিসুজ্জামান, কাজী নজরুল ইসলামের নাতনি খিলখিল কাজী প্রমুখ। এ ছাড়া বাংলা একাডেমি, নজরুল একাডেমি, ছায়ানটসহ বিভিন্ন সংগঠনের পক্ষ থেকে শ্রদ্ধা নিবেদন করা হয়েছে।
এর আগে সকাল আটটায় হাসপাতালের হিমঘর থেকে ফিরোজা বেগমের মরদেহ ইন্দিরা রোডের বাসভবনে নেওয়া হয়। সেখানে গণমাধ্যমের অসংখ্য কর্মীসহ মরহুমার ভক্ত ও শুভাকাঙ্ক্ষীরা ভিড় করেন। সেখান থেকে মরদেহ নেওয়া হয় কেন্দ্রীয় শহীদ মিনারে। সর্বসাধারণের শ্রদ্ধা নিবেদনের পর বাদ আসর গুলশান আজাদ মসজিদে জানাজা অনুষ্ঠিত হবে। এরপর মরদেহ দাফন করা হবে বনানী কবরস্থানে।
গতকাল মঙ্গলবার রাত সাড়ে আটটায় রাজধানীর অ্যাপোলো হাসপাতালে ৮৪ বছর বয়সে ইন্তেকাল করেন ফিরোজা বেগম। তাঁর মৃত্যুর খবরে শোকের ছায়া নেমে এসেছে গোটা সাংস্কৃতিক অঙ্গনসহ বিভিন্ন শ্রেণি ও পেশার মানুষের মধ্যে।

Firoza Begum (singer)

From Wikipedia, the free encyclopedia
Firoza Begum
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BornJuly 28, 1930.
FaridpurBritish Raj (nowBangladesh).
Died9 September 2014 (aged 84)
NationalityBangladeshi
Occupationsinger
Years active1940-2014
Spouse(s)Kamal Dasgupta (m. 1955–1974;)
ChildrenTahsin Ahmed
Hamin Ahmed
Shafin Ahmed
ParentsMohammad Ismail
Begum Kowkabunnesa[1]
AwardsIndependence Day Award(1979)[2]
Sheltech Award (2000)[3]
Firoza Begum (July 28, 1930 - September 9 2014) was one of the most prominent Bangladeshi Nazrul Sangeet singer.[1] She is considered an icon in the indian subcontinent for the generations that followed hers in the world ofBengali music[4]

Career[edit]

Firoza started her career in 1940s.[5] She first sang in All India Radio while studying in sixth grade. She meet with poet Kazi Nazrul Islam at the age of 10. She was a direct student of Kazi Nazrul. In 1942, she recorded her first Islamic song by the gramophone record company HMV in 78 rpm disk format.[1] Since than 12 LP, 4 EP, 6 CD and more than 20 audio casset records of Firoza have been realeased. [6] She lived in Kolkata from 1954 until she moved to Dhaka in 1967.[1]

Personal life[edit]

Firoza was born in a Muslim family in Faridpur district. She became drawn to music in her childhood.[7] In 1956, Firoza married to Kamal Dasgupta, a singer, composer and lyricist. Kamal died on July 20, 1974.[1] Her sons Hamin Ahmedand Shafin Ahmed are also musicians. They are currently the members of rock band Miles.

Death[edit]

Firoza Begum died on 9 September 2014 around 8:28 pm due to heart and kidney problems.[8]

Awards[edit]

References[edit]

  1. Jump up to:a b c d e "ফিরোজা বেগম". Retrieved 2012-11-26.
  2. Jump up to:a b "স্বাধীনতা পুরস্কারপ্রাপ্ত ব্যক্তি/প্রতিষ্ঠানের তালিকা". Retrieved 2012-11-26.
  3. Jump up^ "Dr Zafar Iqbal wins Sheltech Award"The Daily Star. 31 December 2003. Retrieved 13 April 2011.
  4. Jump up^ http://www.thedailystar.net/online/legendary-nazrul-singer-feroza-begum-passes-away-40920
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