Wednesday, September 24, 2014

Drug poisoning to kill Jadavpur resistance!

युवाशक्ति को तोड़ने के लिए छात्रों को नशा देकर जादवपुर आंदोलन के खिलाफ तैनात करने लगी राजनीति
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

सार्वजनिक यह वीडियो फुटेज देखें और फिर जादवपुर के छात्रो के साथ न्याय करें।

एक तरफ तो दुनिया के सौ देशों के छात्रों की गोलबंदी हो रही है जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में पुलिसिया राजनीतिक तांडव के खिलाफ तो दूसरी ओर युवाशक्ति को तोड़ने के लिए सत्ता की राजनीति छात्रों को नशाखोर बनाने लगी है।

विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस पहरे के इंतजाम के लिए उपकुलपति आज कोलकाता हाईकोर्ट में सख्त सुरक्षा इंतजाम के मध्य पिछले दरवाजे से पेश हुए और उन्हींकी गुहार पर जादवपुर विश्वविद्यालय के गेटो पर पुलिस चौकी बनाने का हाईकोर्ट ने आदेश दे दिया ताकि बिना परिचयपत्र के कोई छात्र भी परिसर में घुस न सकें।

गौरतलब है कि आंदोलनकारी छात्रों ने आज दोपहर दो बजे विश्वविद्यालय परिसर में आंदोलन के समर्थकों की आम सभा बुलाई थी।इस आम सभा में आंदोलन जारी रखने का फैसला हुआ है।

इसीके बीच कामदुनि की तर्ज पर अग्स्त में विश्वविद्यालय परिसर के हास्टल में पीड़ित छात्रा मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार करते हुए सत्तादल की रैली में शामिल हुए।इसके बावजूद आंदोलन जारी है,कामदुनि की तरह आंदोलन खत्म नहीं हुआ है।

अगस्त की पीड़िता के लिए न्याय मांग रही दर्जनं छात्रा के साथ बत्ती गुल करके जो रवींद्र सरोवर को दोहराया गया और पुलिस की वर्दी में कमांडो और बिना वर्दी के पुलिसिया भेष में गुंडे भेजकर जो नंदीग्राम बनाया गया,उसके लिए सभी पिताओं और सभी परिजनों ने अभीतक पाला बदला नहीं है।न उन्हंने मुक्यमंत्री से न्याय की गुहार लगायी है।

शारदा कांड का फंडा अलग है और रंगबिरंगे राजनीतिक चेहरे और सितारों की सीबीआई पेशी क बावजूद जनरोष थम गया सा नजर आ रहा है।

वीरभूम के पाड़ुई में जिला तृणमूल अध्यक्ष अनुव्रत मंडल के भड़कव में जो हत्याकांड कराये जाने काअभियोग है,हाईकोर्ट ने उस सिलसिले में सीबीआई जांच का आदेस दे दिया है।


गनीमत है कि इन राजनीतिक मामलों से परे अब भी आंदोलनकारी छात्र नार लगा रहे हैं,सीपीएम तृणमूल इतिहासेर भूल और देश दुनिया में छात्रो का यह आंदोलन अब भी फोकस पर है।

जादवपुर के छात्रों के प्रतिवाद में सत्ता की जबरदस्ती रैली फेल हो गयी थी जबकि इस रैली में अपनी बुआ की तुकबंद कविता की तर्ज पर सांसद अभिषेक बंदोपाध्याय ने लिखा था, मद गांजा भांग बंद,ताइ बूझि आंदोलनेर गंध।

इस मामले में ममता बनर्जी ने अभी जुबान नहीं खोली जबकि तृणमूली प्रचार का महालयी मुखड़ा यही रहा है,कुत्सा पक्ष शसमाप्त,देवि पक्ष आरंभ।

दीदी फेसबुक पर भी खुलकर कुछ कह नहीं रही हैं।

हालांकि उनकी ताजा किताब कुत्सा कांड के खिलाफ है और फेसबुक में अपनी ईमानदारी और जनप्रतिबद्धता का हवाला देते हुए उन्होंने आरोप लगाया है कि विपक्ष उनकी हत्या की साजिश कर रहा है और इसी सिलसिले में उनकी छवि धूमिल की जा रही है।

दूसरी तरफ सत्ता प्रचार का मुद्दा यह है कि उपकुलपति चूंकि विश्वविद्यालय में ऩशे की अनुमति नही देते,इसीलिए नशेड़ु छात्रों का यह आंदोलन है।

देशभर के शिक्षा संस्थानों के छात्र और छात्राएं अगर नशाखोर है,तो इससे बुरी कोई दूसरी खबर नहीं सकती है।

जादवपुर कांड के प्रतिवाद में वैश्विक मानवबंधन को भी नशाखोरकहा जा सकता है।

शिक्षामंत्री और सत्ता की राजनीति विश्वविद्यलय में अंधकार के तांडव के वीडियो फुटेज को डिफेंड करते हुए इसके लिए जिम्मेदार उपकुलपति को नशाविरोधी जिहादी बतौर महिमामंडित करने लगे हैं।

छात्रों की मुख्य मांग को सिरे से खारिज करते हुए शिक्षा मंत्री ने ऐलान कर दिया है कि उपकुलपति को हटाने का सवाल ही उठता नहीं है।

दूसरी ओर,विशिष्ट जनों की बना दी गयी राज्य सरकार की जांच समिति की भी सिटदशा है। स्पेशल जांच का क्या मतलब है,शारदा पारुई और तमाम मामलो में साफ है।

जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में छात्राओं के साथ अगस्त और सितंबर में जो हुआ,उसकी जांच के लिए बनायी कमिटी के पुरुष वर्चस्वपर सवाल उठने लगे हैं और कानून विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसी कमिटी की अध्यक्षता किसी महिला को करनी चाहिए जबकि बिशाखा कमिटी की सिफारिशें किनारे पर रखकर एक और विश्वविद्यालय के पसंदीदा आधिकारिक को इस सिट जांच कमिटी का  अध्यक्ष बना दिया गया है मनचाहा जांच नतीजा 72 घंटे में निकानलने के लिए।

इसी बीच  फेल सत्ता रैली में गैर छात्र पार्टी कर्मियों की व्यापक हिस्सेदारी और हिस्सेदारों की चेहरा छुपात तस्वीरें कुछ और बयान करती हैं।

अब खबर है कि राजनीति,जिसे रंग से चिन्हित करने की जरुरत भी नही है,जो हमेशा छात्रों क क्रांति की भ्राति से दुहती रहती है,छात्रों आंदोलन तोड़ने के लिए शैक्षिक संस्थानों में मादकद्वव्यों की सप्लाई कर रही है व्यापक पैमाने पर और उस पर कोई पुलिसिया पहरा नहीं है।पहरा तो आंदोलनकारियों पर है।

सीमाई इलाके तो नशाखोरी के मुक्तांचल बन ही गये हैं अब परिवर्तन का तूफान ऐसा है कि शिक्षा संस्थान भी नशाखोरी के अड्डे बनाये जा रहे हैं। बंगाल में जाहिर है मदक द्रव्यों का कारोबार शबाब पर है।

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