Thursday, October 2, 2014

Thnks Mr.Prime Minister to launch Swachh Bharat Abhiyan discarding Ram Mandir

भारत के प्रधानमंत्री को धन्यवाद कि धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का दामन छोड़कर वे शौचालय आंदोलन चलाने लगे!

चीखों का क्या जो कातिल के खून सने पंजे से छटफटाते हुए अक्सर ही छूट जाती है और हालात बयां भी कर देती हैं।

मोदी अगर धर्मोन्मादी चक्रब्यूह से निकलकर हिंदुत्व के एजंडे से भारत को मुक्त करने का कोई महाप्रयत्न कर गुजरते हैं तो समझ लीजिये गंगा नहाकर उन्हें मोक्ष प्राप्ति अवश्य होनी है।
ऐसा हो सका तो देश का इतिहास बचेगा ,संविधान बचेगा और लोकतंत्र भी।

अंधभक्त संघियों से क्षमायाचना के साथ।दृष्टि अंध  वाम धर्मनिरपेक्ष खेमे से भी क्षमा याचना के साथ।



पलाश विश्वास
हम शुरु से लिख रहे हैं कि जनता को धोखे में रखकर वोटबैंक समीकरण साधने के लिए धर्मनिरपेक्षता के पाखंड से हमेे कोई मतलब नहीं है।

हमारे संघी भाई बहन हर बात पर तुनक जाते हैं।जब हमने अमेरिका परस्त विदेशनीति के आत्मघात को चिन्हित किया तो मैं जिस अखबार में पिछले तेइस साल से काम कर रहा हूं,उसे पीत पत्रकारिता बताया गया और मुझे सलाह दी गयी कि भारत के प्रधानमंत्रित्व के लिए नहीं,बल्कि मुझे उस अखबार में नौकरी के लिए शर्मिंदा होना चाहिए।

मैंने अपनी समझ से न कारपोरेट लेखन किया है और न अपने विचारों और मतामत का मंच बनाया है अपने अखबार को।अगर हिंदी समाज के लोग जनसत्ता को उसकी तमाम सीमाबद्धता के बावजूद पीत पत्रकारिता मानता है,तो यह एक हिंदी सेवी होने के नाते मेरे लिए वाकई शर्म की बात है।जनसत्ता की अपनी सीमाएं है तो उसका अपना योगदान भी है।

हम शुरु से मोदी की चीन और जापान से संबंध बढ़ाते जाने की नीतियों  का समर्थन करते रहे हैं और अतीत के एकचक्षु राजनय सोवियतपरस्त और अमेरिका परस्त दोनों की तीखी आलोचना करते रहे हैं।

हमने माननीया विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की राजनय की भी तारीफ की है कि उन्होंने भारत चीन मीडिया युद्ध को एक झटके से खत्म कर दिया।

हम अटल बिहारी वाजपेयी को भारते के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ राजनयिक मानते हैं।

हम इतने राष्ट्रविरोधी भी नहीं है कि  माननीय नरेंद्र भाई मोदी देश हित में काम करें तो हम अंध संघियों की तरह उसकी तारीफ भी न करें।

चूंकि हम किसी भी सूरत में पार्टीबद्ध नहीं हैं।हमारा एकमेव पक्ष भारत का संविधान है।

चूंकि हम किसी भी सूरत में पार्टीबद्ध नहीं हैं।हमारा एकमेव पक्ष भारत की आमजनकता के हितों का पक्ष है।

चूंकि हम किसी भी सूरत में पार्टीबद्ध नहीं हैं।हमारा एकमेव पक्ष भारत लोकगणराज्य,उसकी एकता,अखंडता और संप्रभुता है।

चूंकि हम किसी भी सूरत में पार्टीबद्ध नहीं हैं।हमारा एकमेव पक्ष चूकि भरतीय लोकगणराज्य है तो हम दक्षिण एशिया के देशों के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व,पंचशील के जितने पक्षधर हैं उतने ही इस उपमहाद्वीप में मुक्तबाजारी अश्वमेध और महाशक्तियों के सैन्य असान्यहस्तक्षेप के भी हम विरुद्ध हैं।

भारतीयता का बुनियादी मूल्य पश्चिमी साम्यवाद नहीं है बल्कि समता न्याय शांति और स्त्री पुरुष समानता को शोषण विहीन वर्णविहीन वर्ग विहीन बौद्धमय भारत है,तोबौद्ध धर्म के अनुयायी न होते हुए भी हम इन्ही मूल्यों के परति पर्तिबद्ध हैं।

इसीलिए,उन्ही मूल्यों और उसी जनपक्षधरता की मांग के मुताबिक हम उस प्रधानमंत्री  को जरुर याद रखना चाहते हैं जो भारतीय संविधान को सर पर ढोते हुए पदयात्रा कर सकते हैं।

चूंकि हम उस मोदी को याद करना चाहते हैं जो लालकिले के प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए धर्मोन्मादी धर्मस्थल निर्माण के झंझावत से देशवासियों को निकालने के लिए पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिए किसी ईश्वर के मंदिर के भव्य निर्माण की बजाय राष्ट्रव्यापी शौचालय और स्वच्छता का बेहद अनिवार्य आंदोलन का आरंभ कर पाते हैं।

हम गुजरात दंगो की वीभत्स पृष्ठभूमि से नकलने की उनके इस महाप्रयत्न का सम्मान करते हैं।

हम बतौर प्रधानमंत्री उस मोदी को जरुर याद करना चाहेंगे जो अपने स्वच्छता अभियान का शुभारंभ सभी पक्षों को साथ लेकर करने की पहल करते हैं और शुरुआत किसी बाल्मीकि बस्ती और बाल्मीकि मंदिर से करते हैं।

यह अभूतपूर्व है।क्योंकि बाल्मीकि बस्तियों में अरसे से वे लोग भी नहीं गये जो बाबासाहेब अंबेडकर के नाम पर राजनीति करते रहे है।

हमने बाराक हुसैन ओबामा के चुनाव अभियान में भी सोशल मीडिया मार्फत भाग लिय़ा था और अमेरिकी जनता से पहले अश्वेत प्रधानमंत्री बनाने का लगातार अनुरोध करते रहे हैं।

तो सवाल ही नहीं उठता कि हम अकारण भारत देश के पहले शूद्र प्रधानमंत्री का विरोध करते रहें।

हमें बाराक ओबामा से जो प्रत्याशाएं थींं कि वे विश्वव्यापी युद्ध गृहयुद्ध का अंत करें,उसके उलट वे जो तृतीय तेल युद्ध की तैयारी में लगे हैं,तो हमें क्या उनसे अपना समर्थन वापस लेना नहीं चाहिए,यह समझने वाली बात है।

यह भी समझने वाली बात है कि ओबामा समान सामाजिक पृष्ठभूमि और अविराम संघर्ष यात्रा के जरिये प्रधानमंत्रित्व तक चरमोत्थान के बाद नरेंद्र भाई मोदी से उनके तमाम अंतर्विरोधों,उनकी खामियों और दोष गुण,उनकी विवादास्पद गुजराती भूमिका के बावजूद भारत लोक गणराज्य के लिए वंशवादी मुकत बाजारी देश बेचो नख से सिर तक भ्रष्ट राजकाज के अलावा हम जरुर कुछ और प्रत्याशा कर रहे होंगे।याद ऱकें कि इस राजकाज के पाप से ही पूर्ववर्ती सरकार के बजाय भारतीय जनता ने नरेंद्रभाई मोदी को प्रधानमंत्री बनाया है।

इसीलिए हम वाकई प्रधान स्वयंसेवक बतौर नहीं ,सचमुच एक योग्य और अभूतपूर्व प्रधानमंत्री बतौर मोदी के कायाकल्प का सपना देखते हैं क्योंकि हमारा वजूद इस देश की जनता से अलग नहीं है और राजनीति चाहे जो हो,जनता मोदी के जरिये राष्ट्र काकायाकल्प चाहती है।

हम बतौर प्रधानमंत्री उस मोदी को याद करना चाहेंगे जो राजघाट पर फूल चढ़ाने के बाद विजय घाट पर इस देश के एक भूले हुए सपूत की स्मृति पर सर नवाने का कर्तव्य नहीं भूलते।

इसी के साथ, बतौर भारत लोकतंत्र के संप्रभु नागरिक के नाते हम अभिव्यक्ति की पूरी आजादी भी चाहते हैं क्योंकि हम माननीय सुब्रह्मण्यम स्वामी की तरह मोदी भक्त हरगिज नहीं बनना चाहेंगे जो प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान एक वरिष्ठ पत्रकार की पिटाई को महिमामंडित करने की हर संभव जुगत लगायें।

हम अपने उन मित्रों की आशंका को निराधार नहीं मानते जो राजदीप सरदेसाई की अतीती सत्तापरस्ती कारपोरेट पत्रकारिता का हवाला देकर इस विवाद के लिए उनकी गलती बता रहे हैं।हो सकता है कि गलती राजदीप की है,लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री के इतने महत्वपूर्ण विदेश दौरे पर जब सारी दुनिया की नजर लगी हो,तो एक भारतीय अतिवरिष्ठ पत्रकार के मोदीभक्तों के हाथों पिटाई की शर्म से हम बच नहीं सकते।

चूंकि हम शुरु से लिखते रहे हैं कि होंगे मोदी बाबू केसरिया भाजपा के नेता और होंगे वे हिंदू राष्ट्र और विधर्मी विद्वेष के एजंडे वाले संघ परिवार के नेता,लेकिन आखिरकार वे भारत के प्रधानमंत्री है और लोकतांत्रिक परंपराओं के मुताबिक चूंकि वे भारत के प्रधानमंत्री चुने गये हैं,वंशीय आधिपात्य के तहत मनोनीत नहीं हैं,तो वे हमारे भी उतने ही प्रधानमंत्री हैं जो हमारे घोर विरोधी संघियों के हैं।

तो हमें भी बाकी नागरिकों की तरह उनके अच्छे बुरे कामकाज के बारे में कहने बोलने का हक है।

यह हमारी अभिव्यक्ति का अधिकार है,जिसका किसी भी सूरत में हनन नहीं होना चाहिए।

उसीतरहे जैसे हम नागरिक,मानवाधिकार और पर्यावरण पर किसी समझौते के हर सूरत में विरोधिता करते हुए माारा जाना पसंद करेंगे।

इसको ऐसे समझें कि नेहरु ने विभाजन की त्रासदी के बाद संक्रमणकालीन भारतीयगणराज्य में एक तरफ बाबासाहेब अंबेडकर जैसे बहुजन समाज मूक भारत के प्रतिनिधि को न केवल संविधान निर्माता होने का मौका दिया,बल्कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल भी किया तो दूसरी ओर भाजपा जिस जनसंघ की कोख से निकली,उसके संस्थापर श्यामाप्रसाद मुखर्जी से भी उन्हें परहेज नहीं था।उन्होंने एक तरफ भारत की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार केरल की नंबूदरीपाद सरकार को बर्खस्त किया तो समाजवादियों को वाम के बदले मुखय विपक्ष बनाने की हमेशा कोशिश की।

विबाजन पूर्व सत्तासंघर्ष के इतिहास के अलावा ,आंतरिक इन मामलों के अलावा नेहरु जो भारत चीन सीमा विवाद से लेकर कश्मीर समस्य़ा उलझाने के लिए शेख अब्दुल्ला के साथ तरह तरह के गुल खिलाते रहे हैं,आज भी देश उस बहार के पतझड़ का शिकार है।

तो हम जो हर प्रधानमंत्री के चेहरे पर नेहरु का चेहरा चस्पां कर देते हैं,वे कहां तक जायज हैं।

इसे इस तरह समझे कि मुक्तबाजारी व्यवस्था के लिए न वाम जिम्मेदार है और न संघ परिवार।

प्रतिरोध न करने के अपराधी वाम दक्षिण पक्ष जरुर हैं और हमारा मानना है कि इन दोनों खेमों में कांग्रेस के मुकाबले विदेशी तत्वों के मुकाबले स्वदेशी तत्व ज्यादा है।

दरअसल हमारे हिसाब से भारतीय अर्थव्यवस्था  की अद्दतन दुर्गति के लिए किसी नरसिंह राव या डा.मनमोहन सिंह पर सारे पाप का बोझ डलना अन्याय है क्योंकि इस मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्थी की नींव तो नेहरु और इंदिरा ने डाली है जो वंश परंपरा के मुताबिक भारत की विरासत बन गयी है।

भारतीय राष्ट्र को वैश्विक शक्ति बनाने में फिर भी श्रीमती इंदिरा गांधी का योगदान सबसे ज्यादा है,इसे हम भूल नहीं सकते।

उसीतरह सिखों के नरसंहार और पंजाब समस्या और आपातकालीन तानाशाही के इंदिरागांधी के आत्मघाती कदमों को भुलाकर नया इतिहास रचना भी सरासर गलत होगा।

अगर नरेंद्र भाी मोदी मिथकीय अवतार हैं,मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और इतिहास पुरुष बतौर भारत को स्रर्वशक्तिमान राष्ट्र लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान के मुताबिक बनाने की पहल संघ परिवार के हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र एजंडा के विपरीत भी कर पाते हैं तो भी गुजरात नरसंहार में उनकी भूमिका की अदालती जांच भले खत्म हो जाये,नागरिक पड़ताल होती रहेगी।लोकतंतर में ऐसा होना ही चाहिए।

जिस हिंदुत्व की सनातन परंपराओं को याद करके हिंदू ह्रदयसम्राट नरेंद्रभाई मोदी की किसी किस्म की आलोचना से बहुत गुस्सा आता है संघियों को.उनके लिए विनम्र निवेदन है कि हिंदू ग्रंथों में गीतोपदेश के अलावा भागवान कृष्ण की अन्यान्य लीलाओं का सविस्तार विमर्श है।

विनम्र निवेदन है कि हिंदुत्व के ब्रह्मा विष्णु महेश से लेकर देवताओं के राजा इंद्र और तमाम देव देवियों के सारे दुष्कर्मों का यथायथ विवरण वैदिकी साहित्य और पुराण उपनिषद में यथायथ सारे अंतर्विरोधो, व्याख्याओं, प्रक्षपकों के साथ ब्यौरेवार हैं और इन विवरणों से उनके भक्तों को कोई परहेज नहीं है और न उस साहित्य को विशुद्धता की कसौटी पर इतिहास संशोधन की तरह संशोधित करने का कोई प्रयत्न कभी हुआ है।

जिस हिंदुत्व की धर्मोन्मादी  राजनीति संघ परिवार की बुनियादी और आधार पूंजी दोनों है,उसका निर्माण आर्य अनार्य और भारत की बहुलतावादी संस्कृति के मुताबिक मनुस्मृति जैसे जनविरोधी फतावाबाद ग्रंथ के बावजूद बेहद लोकतांत्रिक तरीके के साथ सभ्यता के विकास के साथ साथ ही संभव हुआ है।

जिसके तहत अनार्य शिव और अनार्य काली आर्यों के सर्वोच्च आराध्यों में शामिल है।

दूसरी तरफ, इसी हिंदुत्व में नास्तिक और और भौतिकवादी होने की स्वतंत्रता की एक चार्वाक परंपरा भी अविराम है।

बाबासाहेब अंबेडकर जाति उन्मूलन के जरिये इसी हिंदुत्व का परिष्कार ही करने चले थे,तब समझा नहीं गया।लेकिन नरेंद्र बाई मोदी अगर जाति उन्मूलन के एजंडे को दिल से अपनाते हैं हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को विसर्जित करते हुए तो गंगा का वास्तविक शुद्धिकरण यही होगा और शास्त्रार्थभूमि काशी से उनका भारत के प्रधानमंत्रित्व का उत्थान सार्थक होगा।

हम जानते हैं कि भारत की विदेश और आर्थिक नीतियों के चक्रव्यूह से निकलना किसी भी रंग की राजनीति और किसी भी पार्टी के प्रधानमंत्री के लिए राष्ट्रीय साख, अंतरराष्ट्रीय संबंधों ,वैश्विक परिस्थितियों और पूर्ववर्ती सरकारों की नीतियों की निरंतरता की मजबूरियों के तहत बेहद असंभव है।

हम तो एक असहज समामाजिक स्थिति से लड़कर प्रधानमंत्री बने एक व्यक्ति से उसके महामानविक प्रयत्न के तहत उम्मीद तो यह कर ही सकते हैं कि वह भले ही मुक्तबाजारी व्यवस्था के तिलिस्म से भारतीय जनगण को तत्काल निजात दिला नहीं सकें ,लेकिन भारतीय आम जनता को नरसंहारी अश्वमेध अभियान के प्रतिनियत आक्रमण से तो मुक्ति देने का प्रयास कर सकते हैं।

उम्मीद तो यह कर ही सकते हैं कि वह भले ही मुक्तबाजारी व्यवस्था के तिलिस्म से भारतीय जनगण को तत्काल निजात दिला नहीं सकें ,देश बेचो अभियान के अंत और भ्रष्ट राजतंत्र के दागी मठाधीशों से देश को मुक्त कराने की पहल तो वे ही कर ही सकते हैं।

अगर वे ऐसा करने का कोई प्रयास नहीं करते और राजकाज का तौर तरीका पूर्ववर्ती सरकारो की तरह बनाये रखते हैं हर कीमत पर करिश्माय़ी लोकलुभवन करतबों की तरह तो हम क्या,हमारी औकात क्या,भारत का इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा।

वैसे ही जैसे ,अदालतों से भले ही बरी हो जाने या अमेरिकी वीसा हासिल करने से मोदी गुजरात नरसंहार की छाया से निकल ही नहीं सकते और कहीं न कहीं से चीखें सुनायी पड़ती रहेंगी।

चीखों का क्या जो कातिल के खून सने पंजे से छटफटाते हुए अक्सर ही छूट जाती हैं और हालात बयां भी कर देती हैं।

मोदी अगर धर्मोन्मादी चक्रब्यूह से निकलकर हिंदुत्व के एजंडे से भारत को मुक्त करने का कोई महाप्रयत्न कर गुजरते हैं तो समझ लीजिये गंगा नहाकर उन्हें मोक्ष प्राप्ति अवश्य होनी है।


ऐसा हो सका तो देश का इतिहास बचेगा ,संविधान बतचेगा और लोकतंत्र भी।

इसलिए भारत के प्रधानमंत्री को धन्यवाद कि धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का दमान छोड़कर वे शौचालय आंदोलन चलाने लगे।

अंधभक्त संघियों से क्षमायाचना के साथ।दृष्टि अंध  वाम धर्मनिरपेक्ष खेमे से भी क्षमा याचना के साथ।

Swachh Bharat Abhiyan

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Swachh Bharat Abhiyan
DateOctober 2, 2014
Swachh Bharat or Swachh Bharat Abhiyan (Campaign Clean India) is an national level campaign by government of India covering 4,041 statutory towns to clean the streets, roads and infrastructure of the country.[1][2][3] This campaign is being considered as India's biggest ever cleanliness drive.[4]

History[edit]

Swachh Bharat Abhiyan was launched by Prime Minister of India Narendra Modi on 2 Oct 2014, Gandhi Jayanti. On this day, Modi addressed the citizen of India in a public gathering held at Rajpath, India and asked everyone to join this campaign.[5]Later on this day, Modi himself swept a pavement at Valmiki Basti, a colony of sanitation worker, near Rajpath.[6]
Modi government selected nine notable public figures to propagate this campaign. Some of these notable personalities were— Anil AmbaniSachin TendulkarSalman KhanPriyanka ChopraRamdevKamal HassanSashi Tharoor.[7] On 2 October, Anil Ambani told in a statement—
I am honoured to be invited by our respected Prime Minister Shri Narendrabhai Modi to join the "Swachh Bharat Abhiyan". . . I dedicate myself to this movement and will invite nine other leading Indians to join me in the "Clean India" campaign. . .
Indian President Pranab Mukherjee asked every Indian to spend 100 hours annually in this drive. This campaign was supported by Border Security Force, India.[7]

Objectives[edit]

This campaign aims to accomplish the vision of 'clean India' by 2nd October 2019, 150th birthday of Mahatma Gandhi and is expected to cost over Rs 62,000 crore.[8][9]

References[edit]

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