मित्रवर
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी 'उसने कहा था' पहली बारसरस्वती में जून 1915 में प्रकाशित हुई थी। पिछले सौ सालों में यहनिर्विवाद रूप से हिंदी की सबसे लोकप्रिय कहानियों में से एक बनी हुईहै। हिंदी के पाठ्यक्रमों के लिए निर्मित संकलनों को छोड़ भी दें तो भीहिंदी की सर्वकालिक श्रेष्ठ कहानियों का शायद ही ऐसा कोई संकलन होजो इस कहानी के बिना पूरा हो जाता हो। आखिर ऐसा क्यों है! इसमेंऐसी कौन सी खूबियाँ हैं जिनकी वजह से यह अभी भी पाठकों कोअपनी तरफ लगातार आकर्षित कर रही है? यह कहानी हमें अपनी सीक्यों लगती है? हम आज भी इसे पढ़ते हुए कुछ अबूझ सा क्यों महसूसकरने लगते हैं जबकि न जाने कितने प्रेम और प्रेम कहानियाँ हमारेआसपास के वातावरण में तैरती रहती हैं और वे हमें उस तरह से नहींछूतीं। दूसरी तरफ यह कहानी लोककथाओं की तरह हमारी चेतना मेंजज्ब होकर नया नया रूप लेती रहती है। हिंदी समय(http://www.hindisamay.com) पर इस बार हम इस कहानी पर केंद्रितपाँच आलेख प्रकाशित कर रहे हैं। पहला है हिंदी के शीर्षस्थ आलोचकनामवर सिंह का व्याख्यान सौ साल की एक कहानी : उसने कहा था ; साथमें पढ़ें वरिष्ठ आलोचक सूरज पालीवाल का आलेख रेशम से कढ़े सालू कास्वप्न और यथार्थ, युवा आलोचक वैभव सिंह का आलेख उसने कहा था :क्या यह महज प्रेमकथा है?, युवा आलोचक प्रियम अंकित का आलेख प्रेमऔर शौर्य का लोकप्रिय पाठ तथा युवा कवि-आलोचक प्रांजल धर काआलेख 'उसने कहा था' : गुलेरी की व्यापक विचार-भूमि । इनमें से प्रत्येकइस कहानी का एक नया ही पाठ प्रस्तुत करता है। यही इस कहानी कीताकत है कि यह अपने प्रथम प्रकाशन के सौ वर्षों बाद भी अपने भीतरऐसा बहुत कुछ बचाए हुए है जिस पर आज भी नई-नई व्याख्याएँमुमकिन हो पा रही हैं।
कहानियों के अंतर्गत पढ़ें प्रवासी कथाकार नीना पॉल की पाँच कहानियाँ -घर-बेघर , पुराना पैकेज , कागज का टुकड़ा, सिगरेट बुझ गई और आखिरीगीत। भाषांतर के अंतर्गत पढ़ें मलयाली कथाकार अर्षाद बत्तेरी कीकहानी छायांकन। अनुवाद किया है चर्चित कवि-अनुवादक सुमित पी.वी.ने। और देशांतर के अंतर्गत पढ़ें जर्मन कवि एरिश फ्रीड की कविताएँ।प्रसिद्ध कथाकार-चिंतक जैनेंद्र कुमार का निबंध बाजार-दर्शन भी हमारीइस बार की खास प्रस्तुति है। व्यंग्य के अंतर्गत पढ़ें सुशील यादव काव्यंग्य भैंस और लाठी की कथा। रवि रंजन को आप यहाँ पहले भी पढ़ चुकेहैं। इस बार प्रस्तुत है उनका लेख गीतकाव्य : रचना और अभिग्रहण।अखिलेश दीक्षित का लेख जनता का संगीत और चुनौतियाँ भी अपनीप्रस्तुति में विशिष्ट है। और कविताएँ हैं सुशीला पुरी, असीमा भट्ट औररजनी मोरवाल की।
मित्रों हम हिंदी समय में लगातार कुछ ऐसा व्यापक बदलाव लाने की कोशिश में हैं जिससे कि यह आपकी अपेक्षाओं पर और भी खरा उतर सके। हम चाहते हैं कि इसमें आपकी भी सक्रिय भागीदारी हो। आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
सादर, सप्रेम
अरुणेश नीरन
संपादक, हिंदी समय
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